चुनाव पर विशेष लेखः “जो मुश्किलों का अंबार है…… वही तो मेरे हौसलों की मीनार है “……क्या अबकी बार 400 पार है ?

Chief Editor

व्यक्ति पूजा भारत की राजनीति में सफल क्यों ?? देश के वरिष्ठ एवं सर्वमान्य पत्रकार यह कह रहे हैं, लिख रहे हैं कि भाजपा में संगठन से ज्यादा व्यक्ति का महत्व हो गया । अभी,कुछ दिन पहले आदरणीय शेखर गुप्ताजी ने अपने कालम में लिखा है ,आरोपित किया है। पर हकीकत ये है देश मे आजादी की लड़ाई हो या आजाद भारत में सफलता का पैमाना, व्यक्ति विशेष के नेतृत्व पर सफल होते हैं ।चाहे आजादी का आंदोलन हो स्वर्गीय बापू राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हों फिर आजादी के बाद स्वर्गीय पंडित जवाहरलाल नेहरू, स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी ,स्वर्गीय राजीव गांधी स्वर्गीय, अटल बिहारी वाजपेयी जी और आज के दौर में पूरा देश जिसे हीरो मानता है आदरणीय नरेंद्र मोदी जी,,,,। 1974 में स्वर्गीय लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी के आव्हान पर बिहार से प्रारंभ हुआ आंदोलन पूरे देश में जन आंदोलन का रूप ले लिया । प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय बाबू जयप्रकाश नारायण जी के नेतृत्व में देश के जनमानस की आस्था थी।  जिससे देश में रक्तहीन क्रांति हो गई।आपातकाल लग गया…आपातकाल समाप्त होने के पश्चात 1977 में जब चुनाव हुए तब सत्ता परिवर्तन हो गया  ।सत्ता परिवर्तन के वाहक लोकनायक ही थे । परिवर्तन पश्चात् लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी ने सत्ता का नेतृत्व नहीं किया और विभिन्न दलों में आम सहमति के पश्चात स्वर्गीय मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री बने । परंतु बहुत जल्द आपस में मतभेद होने के कारण चौधरी चरण सिंह और स्वर्गीय चंद्रशेखर जी के प्रधानमंत्री बनने के पश्चात जनता पार्टी की सरकार का विसर्जन हो गया  ।यह सत्ता विसर्जन इसलिए संभव हुआ क्योंकि स्वर्गीय जयप्रकाश नारायण जी के बाद कोई ऐसा व्यक्तित्व नहीं था  ,जिसके नेतृत्व पर विभिन्न दल और आम जनमानस की आस्था हो ।

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देश की स्वाभाविक मानसिकता है वह ईमानदार चरित्रवान नेतृत्व पर तभी विश्वास करता है जब इसका नेतृत्व करने वाला पारदर्शिता के साथ निस्वार्थ त्याग बलिदान देकर जनता के सामने आए । बीच-बीच में सत्ता परिवर्तन हुआ जनता दल बना । जन् मोर्चा के सहयोग से स्वर्गीय वी पी सिंह प्रधानमंत्री बने  ।कुछ दिन पश्चात उन पर भी युवा वर्ग और देश की जनता को विश्वास था । ईमानदार व्यक्तित्व था । परंतु धीरे-धीरे इनका प्रभाव एक सीमित दायरे में होने के कारण सरकार चली गई ।  फिर स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई थे । जिनके नेतृत्व का प्रभाव उत्तर भारत हिंदी क्षेत्र में बहुत अधिक था और दक्षिण भारत में विभिन्न राजनीतिक दल के जो नेता थे उनका उनका सम्मान करते थे  । उनके साथ संगठन मजबूत था  ।जनसंघ  – आरएसएस का अपना संगठन जरूर ….। परंतु जनता के बीच में अपील परम श्रद्धेय वाजपेई जी की अधिक थी । वह सरकार कुछ दिन रहने के बाद माननीय वाजपेई जी ने त्यागपत्र दिया । विश्वास मत में पराजित होने के कारण…..। फिर उनके नेतृत्व में 5 साल के लिए सरकार बनी  ।परंतु दोबारा वह सत्ता में नहीं आ पाए । माननीय भारतरत्न लालकृष्ण आडवाणी जी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया  ।लेकिन सफलता नहीं मिली  ।

सर्वाधिक सीट लोकसभा की 1971 मे काग्रेस की सरकार बैक का राष्ट्रीय करण ,प्रिंविपर्स समाप्त,बंग्लादेश का निर्माण जनता के मध्य बहुत बड़ा प्रभावी संदेश था  ।तब 518 सीट मे से 358 सीट मे पर काग्रेस विजयी हुई थी । फिर 1984 मे स्वर्गीय ईंदिरा गांधी की हत्या पश्चात सहानुभूति लहर 518 सीट मे से 404 सीट पर ऐतिहासिक विजय हुई । मोदी जी ने इस चुनाव में नारा दिया है अब की बार 400 पार ……क्या संभव है? देश के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है भाजपा भी व्यक्ति आधारित पार्टी बन गई  । व्यक्ति आधारित पार्टी क्या जनता की पहली और अंतिम पसंद है ? पूरे देश में देखिए चाहे परिवार की बात हो या जन आंदोलन से उपजी पार्टी हो ,वहां पर संगठन तो अपना काम करता है  ।परंतु अगर राजनीतिक रूप से व्यक्ति विशेष के नेतृत्व में सफलता के सोपान चढ़ते हैं उस व्यक्ति के आधार पर ही जो नेतृत्व करता है  …..। जिनके काम का आंकलन कर मतदाताओं को विश्वास हो तो वोट देने की अपील होती है । जिस पर मतदाता अपना मत प्रदान करता है  ।देश में एक परंपरा बनी है , व्यक्ति आधारित राजनीति….। चाहे वह परिवारवाद हो क्षेत्रीय दल हो , जन आंदोलन से आया हुआ आम आदमी पार्टी या टीएमसी, टी आर एस व्यक्ति पूजा केंद्रित राजनीति नासूर कब बन जाती है ? जब वह राजवंश के आदर्श को अपना लेती है “””राजा का बेटा राजा हकदार का नही”””” माकपा के स्वर्गीय र्ज्योति बसु जी भाजपा के स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी और मोदी जी परिवार वाद राजनीति के अपवाद हैं  ।

मोदी जी का 15 साल मुख्यमंत्री के रूप में गुजरात मे काम, उसके पूर्व लगभग 15 वर्ष संगठन मे काम करना तत्पश्चात 2014 में संपूर्ण देश में एक नई शक्ति ऊर्जा के साथ राष्ट्रीय राजनीति में आना -आम जनता को उनमें एक करिश्माई व्यक्तित्व नजर आया  । सफल हुये फिर 2019 में आम जनता ने दूसरी पारी मे भरोसा किया  ।मोदी जी को पहले से अधिक सीटों पर विजयी बनाकर सत्ता की चाबी सौपी ।
2024 का चुनाव प्रारंभ हो गया  ।आम जनता का मोदी जी के ऊपर विश्वास और मोदी जी का आत्मविश्वास और भारतीय जनता पार्टी का संगठन क्या उनके नारा 400 पार को मंजिल तक पहुंचाएगा ? देश में अभी 1971 के समय जो कांग्रेस के लिए जज्बा था , वह दिखाई दे रहा है… ? क्योंकि 1971 का चुनाव काम के आधार पर मजबूत गतिशील सक्षम नेतृत्व की विजय थी …क्या अभी देश में माननीय मोदी जी के ऊपर वह आस्था उनके काम पर मजबूत नेतृत्व उनके विश्वास की लहर पर मतदाता का क्या रूझान रहेगा ? इसकी जानकारी तो 4 जून 2024 को ही पता चलेगा  ।परंतु इसे अभी नकारा भी नहीं किया जा सकता 45 वर्ष पश्चात यह दौर आएगा जब सत्तारढ़ पार्टी को सकारात्मक जनादेश प्राप्त होगा सबको इसका इंतजार और प्रतीक्षा है ? “””
मंजिल क्या और रास्ते क्या
जब जज्बा हो दिल में तो फासले क्या””””
दीपक पांडेय
राजनीतिक विश्लेषक
(ग़ैर पेशेवर)
बिलासपुर

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