DEO ऑफ़िस के सामने अपना आवेदन फाड़कर क्यों रोती हुई चली गई एक शिक्षिका…. ? महिला कर्मचारियों का दर्द सुनने वाला कोई नहीं….

Chief Editor
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सुरजपुर (मनीष जायसवाल ) । : जिला शिक्षा अधिकारी सुरजपुर के पास फरियाद लेकर आई एक अनजान महिला शिक्षक कार्यालय से कुछ दूर रोते हुए अपना आवेदन फाड़ कर चली गई। जाते हुए उस महिला ने बताया कि वह शिक्षक है। उसका सात माह का शिशु है। वह सिर्फ यह समस्या बताती है कि प्रसूति अवकाश के बाद प्रसूति प्रसूविधा अधिनियम 1961 व इसके अन्य प्रावधानों का लाभ देने में संस्था प्रमुख व अन्य द्वारा रोड़े अटकाये जा रहे है। मुझे इनके ही साथ काम करना है अगर मैं शिकायत करती हूं मुझे आगे यही लोग तकलीफ देंगे। ऐसा बता कर अनजान महिला शिक्षक चली गई।

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पर बात निकली है तो दूर तलक जाएगी …. ! व्यवस्था के जिम्मेदार लोग महिला कर्मचारियों का दर्द समझे ….. महिला कर्मचारियों पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए देश मे बहुत से कानून है । जिनका उपयोग महिलायें जानकारी के अभाव में यदा कदा ही कर पाती है। क्योकि कुछ पुरुष प्रधान नियोक्ता संस्था प्रमुख , कार्यालय प्रमुख इन नीति नियम अधिनियम को अपनी जेब मे लेकर चलते है।इनसे टकराने का इनके खिलाफ बोलने का साहस महिला कर्मचारी नही कर पाती है। विडंबना यह है कि स्कूल शिक्षा विभाग के अंतर्गत काम करने वाले शिक्षक संवर्ग की शासकीय महिला कर्मचारी माताएं प्रसूति प्रसूविधा अधिनियम 1961 का पूरा लाभ नही ले पाती है। और रोते हुए कार्यलयों से चली जाती है।

प्रसूति प्रसूविधा अधिनियम 1961 देश की हर महिला वर्ग के प्रमुख अधिकारों का प्रतिनिधित्व करता है। यह अधिनियम देश की महिलाओं की गरिमामयी स्थिति को बनाये रखने के लिये बनाया गया है। अधिकांश कर्मचारी व श्रमिक प्रसूता महिलाओं को पता ही नहीं हो पाता कि उनके कौन कौन से अधिकार प्राप्त हैं । जिसका फायदा नियोक्ता उठाकर महिला कर्मचारियों के साथ तानाशाही रवैया अख्तियार करते है। जिसकी वजह से सरकारों व महिला आयोगों के द्बारा किये गए प्रयासों को धक्का लगता है। जिससे सरकार प्रशासन की छवि अलग खराब होती है।

अधिकारों की विवेचना करे तो भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 के अनुसार ‘‘भारत राज्य क्षेत्र के किसी ब्यक्ति को विधि के समक्ष समता से अथवा विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा …! बात राष्ट्र निर्माता शिक्षकों की ही करेंं तो क्या महिलाओं के लिए सबसे लाभकारी कानून प्रसूति प्रसूविधा अधिनियम 1961 का शत प्रतिशत लाभ महिला शिक्षको को समान संरक्षण मिल पा रहा है …? इस पर चिंतन व्यवस्था में बैठे जिम्मेदार लोगों को करना चाहिए।

कहते हैं कि एक महिला बच्चे को जन्म देती है तो उस महिला को उसे दूसरा जीवन मिलता है । देश के नीति निर्माताओं और संवेदनशील सरकारों ने प्रसूति प्रसूविधा अधिनियम 1961 में समय-समय पर संशोधन करके इस कानून को सशक्त बनाने का प्रयास किया इस अधिनियम धारा 11 कहती है कि पोषणार्थ विराम हर प्रसूता स्त्री को जो प्रसव के पश्चात काम पर वापस आती हैं उसे विश्रामार्थ अंतराल के अतिरिक्त जो उसे अनुज्ञात हैं अपने दैनिक काम की चर्या में विहित कालावधि के दो विराम शिशु के पोषण के लिए तब तक अनुज्ञात होंगे, जब तक वह शिशु पंद्रह मास की आयु पूरी न कर ले ।इस नियम नियम की धारा और उपबंधो को भी नियोक्ता नियोक्ता संस्था प्रमुख और संस्था प्रमुखों की पुरुष मंडली की टेढ़ी नजर हमेशा से बनी रही है।

प्रसूति प्रसूविधा अधिनियम 1961 की विवेचना से यह तथ्य सामने भी आता है कि नीति निर्माताओं ने महिलाओं को हक और अधिकार दिए हैं । वहीं इसे ना मानने वालों कानून का उल्लंघन करने वाले के लिए नियम यह भी कहता कि नियोजक इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबन्धों का उल्लंघन करेगा तो वह, यदि ऐसे उल्लंघन के लिए इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन अन्यत्र कोई अन्य शास्ति उपबंधित नहीं की गई हैं, ऐसे कारावास से, जो एक वर्ष तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा ।

कहते हैं कि जंगल में रहना है तो शेर से बैर कौन मोल लेगा …….। स्कूल शिक्षा विभाग के अंतर्गत यह शेर संस्था प्रमुख अपनी मर्जी का जंगल कानून चला रहे । दुर्भाग्य है पीड़ित खुलकर सामने नहीं आ पाते क्योंकि रीति नीति … निभाने के फेर में पड़ी महिला कर्मचारी खुलकर सामने अपने हक की आवाज उठाने के लिए सामने आना नहीं चाहती । वे यह चाहती हैं कि अंधेरे में रहकर कोई इनके लिए तीर निशाने पर चला दे । आज की यह खबर यहीं खत्म नहीं होती सीजीवाल पीड़ितों की आवाज सिस्टम तक पहुंचाने का हर संभव प्रयास करेगा ।

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