हसदेव अरण्य बचाओ आंदोलन से अब क्यों डरने लगे छत्तीसगढ़ के नेता…? सियासत के दांवपेंच की पूरी पड़ताल

Shri Mi
10 Min Read

सरगुजा इलाके में परसा कोल ब्लॉक के नाम पर पेड़ों की कटाई का विरोध कर रहे गांव के लोगों को इंसाफ कब मिलेगा और उनकी मांग कब पूरी होगी…? इस बारे में अभी कोई कुछ नहीं कह सकता। लेकिन पेड़ों को बचाने के लिए उनकी लंबी लड़ाई का असर छत्तीसगढ़ की राजनीति पर गहराता जा रहा है। और लगता है कि जन आंदोलन से उपजे बादलों के झुंड अब सूबे की सियासी फिजां पर मंडराने लगे हैं। हाल के दिनों में जिस तरह इस मुद्दे पर सियासी बयान बाजी, वार पलटवार का सिलसिला चल पड़ा है, उससे साफ संकेत हैं कि अब तक इस आंदोलन को अगर हल्के में लिया जा रहा था तो अब इसे लेकर प्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी और प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी दोनों ही संजीदा हो गए हैं।

Join Our WhatsApp Group Join Now

पेड़ों की कटाई के खिलाफ बढ़ते जा रहे गुस्से की आंच अब इन राजनीतिक दलों की चौखट तक पहुंच गई है और उन्हें एहसास होने लगा है कि आने वाले समय में इसका असर प्रदेश की सियासत और चुनाव पर भी हो सकता है । साफ देखा जा सकता है कि एक तरफ जहां प्रदेश सरकार के मंत्री ने आंदोलन स्थल पर जाकर एक तरह से उनके साथ खड़े हो गए। वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी कह दिया कि अगर विरोध है तो पेड़ों की कटाई क्या…. एक डगाल भी नहीं काटी जाएगी।

उधर बीजेपी भी पीछे नहीं है और जंगल बचाने की इस लड़ाई में वह भी आदिवासियों के साथ नजर आने की कवायद करती दिखाई दे रही है। इससे लग रहा है कि आंदोलन की वजह से कम से कम छत्तीसगढ़ में तो हसदेव अरण्य का मुद्दा गरमा गया है और इस बात को लेकर बहस शुरू हो गई है कि क्या पेड़ों को काटने की बजाए और कोई रास्ता निकाला जा सकता है…?

घने जंगलों से और हरे भरे पेड़ पौधों से भरपूर हसदेव अरण्य इलाके में कोयला खदान की अनुमति दिए जाने के बाद बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई रोकने के लिए आसपास इलाके के गांव में पिछले काफी समय से आंदोलन चल रहा है। हसदेव बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले गांव के लोग इकट्ठे होकर अपनी लड़ाई खुद लड़ रहे हैं। इस मुद्दे पर सरगुजा से रायपुर तक की लंबी पदयात्रा भी निकली। हरिहरपुर में एक बार फिर बेमुद्दत धरना चल रहा है। समय-समय पर प्रदेश के दूसरे हिस्से के लोग भी इस मुहिम में अपनी हिस्सेदारी निभाते रहे हैं।

छत्तीसगढ़ से बाहर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी इस मुद्दे की चर्चा होती रही है। बीच-बीच में ऐसे प्रदर्शन भी हुए हैं, जिन्हें मीडिया में भी जगह मिली।बिलासपुर में भी कोन्हेर गार्डन में पिछले काफ़ी दिनों से धरना चल रहा है। इसमें शामिल हो रहे पर्यावरण प्रेमियों ने विश्व पर्यावरण दिवस पर बिलासपुर से हरिहरपुर तक बाइक रैली भी निकाली थी। जिसके जरिए रास्ते भर के गांवों में भी लोगों के बीच जनजागरण किया गया । इसी कड़ी में हफ्ते की शुरुआत के दिन यानी सोमवार को जब छत्तीसगढ़ सरकार के स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास मंत्री टी एस सिंहदेव हरिहरपुर पहुंचे तो एक बार फिर यह खबर सुर्खियों में आ गई।

जहां टी एस सिंहदेव ने आंदोलनकारियों से रूबरू होते हो हुए उनकी पूरी बात सुनी और अपनी बात भी रखी। हरिहरपुर में टी एस सिंह देव ने पेड़ कटाई के विरोध में डंडा – गोली खाने तक की बात कर दी। जाहिर सी बात है कि यह सवाल भी अब चर्चाओं में आ गया कि टी एस सिंहदेव की ओर से कही गई इस बात का अब सरकार की ओर से क्या जवाब आता है। जब यह सवाल सीएम भूपेश बघेल के सामने आया तो उन्होंने भी एक तरह से टी एस सिंह देव की बातों का साथ देते हुए कहा कि अब गोली चलाने की नौबत नहीं आएगी।

अगर बाबा साहब नहीं चाहेंगे तो वहां पेड़ क्या एक डगाल भी नहीं काटी जाएगी। इस बीच भारतीय जनता पार्टी के नेता भी इस मुद्दे को लेकर तेजी से सक्रिय हुए हैं। भाजपा की ओर से पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और केदार कश्यप ने राजधानी में संवाददाताओं से कहा कि भूपेश सरकार के मंत्री कह रहे हैं हसदेव जंगल उजाड़ने के लिए अगर गोली चली तो पहली गोली मैं खाऊंगा…। उन्हें हसदेव बचाना है तो इस्तीफा देकर लड़ाई में हिस्सा लेना चाहिए। इस मामले में बीजेपी का रुख़ अब साफ हो गया है और पार्टी ने ऐलान कर दिया है कि बीजेपी पूरी तरह से आदिवासियों के साथ है। बीजेपी इस मुद्दे पर प्रदेश सरकार को भी निशाने पर रख रही है और पार्टी का कहना है कि अगर छत्तीसगढ़ सरकार फॉरेस्ट क्लीयरेंस नहीं देती तो पेड़ों की कटाई शुरू नहीं होती। बीजेपी ने भूपेश सरकार पर छत्तीसगढ़ के हितों की अनदेखी का भी आरोप लगाया है।

अब तक का अपडेट यही है कि हसदेव अरण्य के मुद्दे पर एक तरफ जंगल में आंदोलन चल रहा है और दूसरी तरफ सियासत के मैदान में तलवारे भांजी जा रही हैं। लेकिन इस लड़ाई में कौन – कितने मन से साथ जुड़ रहा है….. इस पर भी लोगों की नजर है। और यह भी देखा जा रहा है कि चुनावी राजनीति को निशाने पर रखकर तमाम सियासी नेता किस तरह बयान बाजी कर खुद भी सवालों में उलझे हुए नजर आ रहे हैं। इसका एक दिलचस्प पहलू यह है कि प्रदेश में सरकार चला रही कांग्रेस पार्टी इस वजह से निशाने पर है कि उसने हसदेव अरण्य में पेड़ कटाई के लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस दिया।

जबकि 2018 के चुनाव से पहले उस इलाके के दौरे पर आए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने साफ तौर पर कहा था कि वे आदिवासियों के साथ हैं। आज यही सवाल कांग्रेस के चारों तरफ़ मंडरा रहा है और लोग जवाब की उम्मीद कर रहे हैं। यह बात भी सामने आई है कि बिजली के लिए कोयला निकालना जरूरी है। ऐसे में अपने घर की बत्ती बंद कर विरोध के लिए आगे आना चाहिए। जवाब में लोगों के बीच से यह प्रतिक्रिया भी आई है कि पिछले डेढ़ सौ साल से ही बिजली की सुविधा मिल रही है । लेकिन प्रकृति से मिलने वाले हवा – पानी – ऊर्जा के सहारे जिंदगी तो पहले भी रही है। क्या अब कुदरत से मिलने वाली इस एनर्जी के एवज में आधुनिक ऊर्जा की सुरक्षा की कीमत पर समझौता किया जा सकता है।

सियासी मैदान पर चल रही इस कवायद का दूसरा दिलचस्प पहलू भी गौर करने लायक है । उधर बीजेपी भले ही खुद को इस मुहिम में हिस्सेदार बता कर आदिवासियों के समर्थन में खड़ी हो रही हो। लेकिन बीजेपी के भी सामने यह सवाल उठ रहा है कि क्या पूरी भूमिका सिर्फ राज्य सरकार की है ? कोयला खदान की मंजूरी तो केंद्र सरकार से मिली है। यदि सही में पेड़ों की कटाई का विरोध करना है तो केंद्र सरकार पर दबाव बनाकर खदान की मंजूरी को निरस्त कराया जाना चाहिए। छत्तीसगढ़ में बीजेपी के कार्यकाल में भी कोयला खदान और इसके एवज में पेड़ों की कटाई की गई है।

ऐसे में सवाल उठाने वाले भी सवालों के घेरे में दिखाई दे रहे हैं और सूब़े के लोग इस सवाल का जवाब भी तलाश रहे हैं कि कौन – किस अंदाज़ में सियासत कर रहा है…। और इससे होने वाले नफ़ा – नुक़सान का गणित क्या है…. ? सियासत अपनी जगह है और अपने रास्ते पर आगे बढ़ रही है। लेकिन हसदेव अरण्य में पेड़ों को बचाने का मुद्दा भी अपनी जगह है। जिसने फ़िलहाल तो छत्तीसगढ़ की सियासत में हलचल मचा कर एहसास करा दिया है कि आम लोग यदि अपने पर्यावरण को बचाने के लिए लड़ाई के मैदान पर उतरते हैं तो उसकी गूँज़ कभी ना कभी तो ज़िम्मेदार लोगों तक पहुंचेगी ही… । उनकी बातों को सुनना नहीं चाह रहे सियासी लोग भी अपने कान बंद नहीं कर सकते। इसे अब तक चल रहे एक लंबे आंदोलन का बड़ा हासिल माना जा सकता है ।

By Shri Mi
Follow:
पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
close