शिक्षाकर्मियों के हक़ और हालात की कहानी (एक)–पढ़िए कैसे वर्ग तीन–सहायक शिक्षकों की उम्मीदें अब तक टिकी हुईं हैं उम्मीदों के सहारे..?

Chief Editor
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(मनीष जायसवाल )संविलियन के बाद अब तक प्रदेश के सहायक शिक्षकों को क्या मिला ….? यह चर्चा का मुद्दा अब बन चुका है।  प्रदेश के करीब एक लाख नव हजार वर्ग तीन के सहायक शिक्षकों की भावनाएं एवं उनका अर्थिक भविष्य जिस उम्मीद पर टिका हुआ था वह उम्मीद सिर्फ उम्मीद बनकर रह गई है ..? संविलियन के बाद भी  प्रदेश के सहायक शिक्षको का  हक कैसे उनसे दूर है ..?  पूर्व और वर्तमान सरकार के समक्ष क्या समस्या आई जो इस वर्ग तीन को उनकी प्रमुख मांगों से दूर रखे हुए है..? क्या शिक्षक नेताओं में सत्ता की कुर्सी पाने की ललक इसमें आड़े आ रही है..?  क्या यह वर्ग .. संविलियन के बदले वर्गवाद की भेंट चढ़ गया है..? ऎसे बहुत से सवाल है जिसका ज़व़ाब  आम सहायक शिक्षक जानना चाहता है। आईए वर्ग तीन पर हक और दावों के बीच सच्चाई को तलाशते की एक छोटी सी शुरुवात करते है । पेश है इस सीरीज़ की पहली कड़ी ……CGWALL NEWS के व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ने में लिए यहां क्लिक कीजिये

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सीजीवाल न्यूज़ के  सितंबर 2017 में प्रधान संपादक रुद्र अवस्थी द्वारा लिखे  “कहानी शिक्षा कर्मी की” …..  से जुड़े उन तीन अध्यायों की कड़ियाँ.. सहायक शिक्षको  की दशा और वर्तमान दिशा का बोध कराती है।  25 साल पहले 500 रुपये से शुरू हुआ सफर 25 हजार में ही अटका हुआ है। अविभाजित मध्यप्रदेश में शिक्षा कर्मी संघ का गठन 1995 को मुरलीधर पाटीदार की अध्यक्षता में किया गया तब शिक्षा कर्मियों की संख्या 28 हजार के लगभग थी। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद प्रदेश में पहले  शिक्षा कर्मी संघ की नींव पर पहले अध्यक्ष संजय शर्मा बने । जिसमे उनके साथी कालेश्वर सिंह , कृष्ण कुमार नवरंग, सुनील यदु, रामेश्वर जायसवाल आदि की टीम शामिल थी।2003 जोगी सरकार के कार्यालय में शिक्षक मोर्चा के तले आंदोलन हुए । जिसमे कई  शिक्षक गिरफ्तार हुए । जेल गए, लाठियां खाई । 2011 में  कृष्ण कुमार नवरंग,चंद्र देव राय, केदार जैन , वीरेंद्र दुबे ने शिक्षा कर्मी फेडरेशन के  बैनर तले आंदोलन किया ।  राहत के आदेश जारी हुए । पर सहायक शिक्षक का भाग्य बदल नही पाया ..! 

 जैसे – जैसे छत्तीसगढ़ युवा होता गया, नए नए शिक्षक संघो का उदय होता गया। ठीक वैसे वैसे ही छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद धीरे – धीरे नई संविदा नियुक्तियों के साथ शिक्षको की संख्या में वृद्धि होती गयी। संविलियन से पूर्व शिक्षा कर्मियो की संख्या एक लाख साठ हजार पार कर गई। जिसमे वर्ग तीन के सहायक शिक्षको की संख्या सबसे अधिक थी। बीते 25 सालों में कई प्राथमिक शाला के सहायक शिक्षक पदोन्नत होते हुए वर्ग तीन से वर्ग एक में जा पहुंचे हैं ।  किन्तु इसके बावजूद विषयगत पद के आभाव में 10 साल सेवा पूरी करने के बाद भी अधिकांश सहायक शिक्षक (वर्ग तीन) की पदोन्नति नही हुई।राज्य गठन के पश्चात शिक्षा कर्मियों के अनेक संगठन बनते गए  , जिन्होंने शिक्षाकर्मियों के हित के लिए सरकार से संघर्ष किया। उस दौर में भी प्रमुख माँग शिक्षको के शासकीयकरण किये जाने की होती थी। शिक्षक नेता ऑफ द रिकॉर्ड कहते थे कि संविलियन हो गया तो बाकी मांगे भी हम मनवा ही लेंगे। इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि आंदोलनों में कई लोग बर्खास्त और फ़ि बहाल  भी हुए । इस दौरान सरकार के दबाव को मानसिक रूप में सहा भी…..।  कई शिक्षक आंदोलनों की वजह से मौत के गाल में समा गए। उनके परिजन आज भी अनुकम्पा नियुक्ति के लिए भटक रहे है। उनकी फाइलें अब भी धूल खा रही है।

2013 में शिक्षा कर्मियों ने एक ऐतिहासिक आंदोलन किया । जो लगभग 38 दिन का आंदोलन था । यह आंदोलन शून्य पर समाप्त हुआ । अर्थात सरकार के साथ कोई समझौता नहीं हो पाया किंतु इस आंदोलन के पश्चात शिक्षाकर्मियों में जो आक्रोश था उसे शांत करने के लिए सरकार ने पुनरीक्षित वेतनमान प्रदान करने के लिए एक नीति बनाई  । जिसके तहत शिक्षा कर्मियों को 8 वर्ष की सेवा अवधि पूर्ण करने के पश्चात पुनरीक्षित वेतनमान देने का प्रावधान रखा गया। पुनरीक्षित वेतनमान की घोषणा होने के पश्चात शिक्षाकर्मी खुशी के मारे फूले नहीं समा रहे थे।शिक्षाकर्मियों के वेतन में अच्छा खासा इजाफा हुआ था ।  किंतु एक वर्ग इस बात से अनभिज्ञ था कि पुनरीक्षित वेतनमान में उसे भारी नुकसान होने वाला है । वह वर्ग सहायक शिक्षक पंचायत शिक्षा कर्मी वर्ग तीन था। 

पुनरीक्षित वेतनमान में वर्ग 1 एवं वर्ग 2 के वेतन के बीच में 1000 से 2000 का अंतर था  । वही वर्ग 2 एवं वर्ग 3 के बीच वेतनमान में लगभग 10,000 का अंतर हो गया। शुरुवात में शिक्षाकर्मी वर्ग 3 को यह अंतर समझ नहीं आया । किंतु धीरे-धीरे वे लोग समझने लगे और इस अंतर को दूर करने के लिए आवाज बुलंद करने की कोशिश करने लगे। इसी उद्देश्य से एक संघ का निर्माण हुआ , जिसका नाम था सहायक शिक्षक पंचायत कल्याण संघ…….।  इस संघ से भूपेंद्र सिंह बनाफर एवं प्रदीप पांडेय ने अनेक मंचों पर वर्ग 3 की वेतन विसंगति के लिए आवाज बुलंद करना शुरू कर दिया ।  किंतु वह दौर सोशल मीडिया का नहीं था ।  जिसके कारण इन लोगों की बात आम शिक्षाकर्मियों तक नहीं पहुंच पाती थी । किंतु फिर भी इनके द्वारा वर्ग तीन की समस्याओं को लेकर लगातार आवाज उठाया जाता रहा ।  इसी बीच विधानसभा चुनाव 2018 आने वाला था और शिक्षाकर्मी अपने विभिन्न मांगों को लेकर लामबंद हो रहे थे…….।

विधानसभा सभा चुनाव 2018 से ठीक पहले दबाव समूह के रूप अपनी मांगों को मनवाने के लिए संघर्ष मोर्चा का गठन हुआ । संजय शर्मा, केदार जैन, विरेंद्र दुबे,विकास राजपूत और चंद्रदेव राय के नेतृत्व वाले मोर्चा की अगवाई में प्रदेश स्तर का बड़ा आंदोलन किया गया। शिक्षक नेताओं को जेल हुई ।  रायपुर में आंदोलन बिखर गया । मोर्चे के अग्रिम पंक्ति के नेता जेल में या फिर भूमिगत होकर नेतृत्व कर रहे थे। पुलिस प्रशासन शासन के निर्देश पर शिक्षकों पर पुलिसिया रंग रंगने लगी थी । तत्कालीन कलेक्टर ओ.पी. चौधरी की मध्यस्ता में शून्य में जेल में मोर्चा ने हड़ताल वापिस ले लिया ।इस बीच शिक्षको और शासन के मध्य संघर्ष और डॉ रमन सिंह का वादा चुनाव के पूर्व  नई सरकार के भविष्य का समीकरण ‘जय संविलियन’ के नारे के रूप में  राष्ट्रीय अध्यक्ष तक पहुँच चुका था। अंततः अम्बिकापुर में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रैली में  शिक्षकों के संविलियन पर मुहर लग गई। सरकार तीन महीने में एक कमेटी के माध्यम से सभी शिक्षक संघो से विचार विमर्श कर आठ साल की सेवा पूर्ण करने वालो शिक्षकों के संविलियन के नीति नियमो का प्रकाशन कर संविलियन की प्रक्रिया पूरी कर दी। और एक बड़े वर्ग का संविलियन हो गया। पर संविलियन से वंचितों में गहरा असंतोष उभर आया।

अधूरे औऱ निश्चित संविलियन के बाद भी शिक्षक तीन प्रमुख मांगो को लेकर रमन सरकार से नाराज थे। जिसमे सबसे बड़ी वर्ग तीन की वेतन विसंगतियों को नजर अंदाज कर दिया गया था। न ही सभी को पदोन्नति दी गई न हो क्रमोन्नत वेतनमान का प्रावधान किया गया। जिस से शिक्षको में रोष था। वही हड़ताल में शामिल शिक्षको को लगता था  सरकार ने संविलियन  का बड़ा फैसला तो किया पर सम्मानित ढंग से नही किया। 2018 का आंदोलन का दमन भी इसी रोष का हिस्सा था।वर्ग तीन के संविलियन स्वीकार किये हुए  और संविलियन से वंचितों ने एक नए दबाव समूह का गठन की भूमिका रखी । जिसमे  संविलियन आंदोलन से जुड़े और संविलियन से दूरी बनाए हुए कुछ शिक्षक संघ लाम बंद होना शुरू कर दिए। संविलियन की घोषणा के कुछ दिनों बाद बिलासपुर के कोन्हेर गार्डन में विधानसभा चुनाव के पूर्व कुछ शिक्षाकर्मी संगठन से जुड़े पदाधिकारियों ने एक बैठक की । जिसमें सहायक शिक्षकों की वेतन विसंगति दूर करने के लिए राज्य स्तर पर कैसे मुहिम चलाई जाए इसके लिए विचार मंथन शुरू हुआ….।

बिलासपुर के कोन्हेर गार्डन की बैठक रंग लाई  । दूसरे संगठन से जुड़े लोग अपना संगठन छोड़ एक मंच के बैनर तले इकट्ठा हुए औऱ कुछ दिनों की कई बैठकों के बाद करीब दो साल पहले रायपुर में जाकेश साहू, इदरीस खान ,शिव सारथी, अश्वनि कुर्रे  शिवा मिश्रा ,सीडी भट, रंजीत बैनर्जी की अगुवाई में सहायक शिक्षकों ने रायपुर के  ईदगाह भाटा में जबरदस्त रैली की थी। सरकार के खिलाफ आक्रोश इतना था कि हजारों  की संख्या में वर्ग तीन के सहायक शिक्षक इस रैली में खुद से शामिल हुए थे।

इस रैली के बाद शिक्षाकर्मियों में एक उम्मीद जगी कि अब वर्ग तीन अपनी मांगों को लेकर स्वयं लड़ाई लड़ेगा और वेतन विसंगति को दूर करवाएगा धीरे-धीरे संगठन का विस्तार होने लगा लोग जुड़ने लगे किंतु लोगों की उम्मीदें तब धराशाई होने लगी जब वर्ग तीन से जुड़े नेता वर्ग तीन की समस्याओं के खिलाफ लड़ने की बजाए एक दूसरे के खिलाफ पद को लेकर लड़ाई लड़ने लगे । इस तरह वर्ग तीन का संगठन अलग-अलग धड़ों में बंटने लगा । नेता एक दूसरे के ऊपर आरोप-प्रत्यारोप लगाने लगे। इस बीच वर्ग तीन को दिलासा  देने के लिए लगातार आश्वासन दिया गया कि इस तारीख को या इस महीने वेतन विसंगति दूर हो जाएगी …..। इस बजट में वेतन विसंगति को दूर कर दिया जाएगा । इस तरह की अनेक बातें सहायक शिक्षकों को बताई गई । लेकिन  बताए गए समय पर सहायक शिक्षकों के लिए ना तो कोई घोषणा हुई और ना ही उनके वेतन विसंगति को लेकर कोई बातचीत भी हुई।  आलम यह है कि शिक्षा कर्मी वर्ग तीन या सहायक शिक्षक एलबी संवर्ग 2013 में जिस स्थिति में था आज भी उसी स्थिति में है । बल्कि उससे भी ज्यादा बदतर स्थिति में पहुंच चुके हैं।

शिक्षको का वेतन का अंतर लगातार बढ़ते जा रहा है।  किंतु समाधान की कोई भी उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है । कमी कहां पर है..?  नेतृत्वकर्ता की कमी है..?नेतृत्वकर्ता की नियत की कमी है, या फिर विषय ही कुछ ऐसा है ,जिसका समाधान होना मुश्किल है । यह तो वही लोग बता पाएंगे जो इस प्रक्रिया से जुड़े हुए हैं और इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं । किंतु हजारों सहायक शिक्षकों को यह पूछने का हक तो जरूर है । संविलियन के बाद इतनी मशक्कत करने के बावजूद आखिर सहायक शिक्षकों को मिला क्या क्या….? क्या  सहायक शिक्षकों की किस्मत में विसंगति पूर्ण वेतन प्राप्त करते रहना अलग-अलग लोगों से लगातार धोखा खाते रहना ही लिखा हुआ है।

(शिक्षा कर्मियों के हालात पर यह सीरीज़ अभी जारी है । यदि इस पर कोई सुझाव या प्रतिक्रिया हो तो मनीष जायसवाल को उनके मोबाइल – वाट्सएप नंबर – 9340272787  पर दे सकते हैं।)

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