‘मोदी मिशन’ को फटका

Shri Mi
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caption_sppसत्यप्रकाश पाण्डेय।इस देश के वजीरे आजम [प्रधानमंत्री] चाहतें हैं हम साफ़-सुथरे रहें, गंदगी से तौबा कर लें और आस-पास के वातावरण को भी स्वच्छ बनाने में सहयोग दें। गुलामी से  मुक्त होने के बाद हम आज तलक गंदे हैं, ऐसा हमारा मुखिया मानता है । असंख्य कुर्बानियों के बाद हम गोरों से आजाद तो हो गए मगर मानसिक गंदगी ने अब तक हमारा साथ नहीं छोड़ा। अटूट रिश्ता है गंदगी से, तभी तो भारतीय तहज़ीब और तमीज़ के बीच रहने वालों को आज भी स्वच्छता से रहने का सलीका सिखाना पड़ रहा है। हमको आज भी बताया जा रहा है खुले में शौच नहीं करना चाहिए, करोड़ों रूपये जागरूकता में खर्च करके विद्या बालन से कहलवाया जा रहा है ‘जब सोच और इरादा नेक हो तो सब सुनते हैं।’ 

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                                vbमुझे तो किसी के इरादे और सोच नेक नज़र नहीं आती तभी तो “स्वच्छ भारत” की सोच पर आज भी केवल “जहां सोच वहां शौचालय” और “एक कदम स्वच्छता की ओर” का शोर सुनाई देता है। जमीनी हकीकत, शहर से गाँव आज भी दुर्गन्ध और सड़ांध मारते दिखाई पड़ते हैं। वजह फिर वही ‘जब सोच और इरादा नेक हो तो सब सुनते हैं।’ यकीनन इसी की कमी रह गई। हाँ सरकारी तस्वीरें देखें तो भारत के गाँव और शहर स्वच्छता की ओर एक दो नहीं बल्कि कई कदम आगे बढ़ा चुके हैं लेकिन मैं जो तस्वीर खींचता हूँ उसमें सिर्फ गंदगी दिखाई पड़ती है। शासन-प्रशासन के बे-सुध होने के साथ-साथ हमारी मानसिक गंदगी का प्रमाण मेरी तस्वीरों में साफ़ दिखाई देता है। आप ये भी कह सकते हैं कि मुझे या मेरे कैमरे को गंदगी देखने की आदत है या मैं गंदगी पसंद इंसान हूँ। बेशक आपका मत हो सकता है लेकिन मुझे बिना खोजे ही सड़ांध मारती गंदगी अक्सर यहां-वहां दिखाई पड़ जाती है। हमारे मुल्क के प्रधान [मोदी जी] ने दिल्ली की कुर्सी पर बैठते ही बता दिया था भारत गंदगी से अटा पड़ा है जिसे मिलकर स्वच्छ बनाना है। हम, हमारा हिन्दुस्तान दशकों से स्वच्छता के लिए किसी मसीहा के इंतज़ार में था। ऐसे में एक जमीन से जुड़े इंसान को काम करने का अवसर हम सब ने मिलकर दिया। दो साल पहले बापू की जयन्ती पर स्वछता को लेकर एक बड़े अभियान की शुरुआत की गई। देश की राजधानी दिल्ली से झाड़ू लगाने का काम शुरू हुआ जो अलग-अलग प्रांतों के रास्ते गाँव-गाँव पहुंचा। उदेश्य ‘क्लीन इंडिया’
                  वैसे पिछले दो वर्ष में झाड़ू काफी सुर्ख़ियों में रहा। सियासत के गलियारे में झाड़ू चली तो बड़े-बड़े जमीन तलाशते नज़र आये। दिल्ली में झाड़ू ने नया इतिहास रचा। पुराने दिगज्जों का सफाया कर झाड़ू ने जनता के मुताबिक़ साफ़-सुथरा केजरी [अरविन्द केजरीवाल] दिया। अब उनकी कथनी-करनी का हिसाब दिल्ली वाले जाने लेकिन जिस झाड़ू के जरिये भारत को स्वच्छ रखने का सन्देश वजीरे आजम ने दिया उसमें काफी लोगों ने बड़ी सफाई से हाथ साफ़ किया। इंडिया को क्लीन बनाने के लिए करोड़ों रूपये गंदगी के बीच बहा दिए गए। सफाई के नाम पर खरीदी गई झाड़ू और कचरा साफ़ करने के व्ही.व्ही.आई.पी इंतज़ाम में साहब से लेकर चाकर तक लाल हो गए। देश के प्रधानमन्त्री से लेकर मंत्री-अफसर और संत्री सबने जरूरत के हिसाब से फटका मारा। स्वछता अभियान के लिए सरकारी कार्य योजना तैयार की गई। शासन-प्रशासन का हर नुमाइंदा झाड़ू मारकर सफाई की वकालत में जुट गया। कुछ महीने पहले तक हालात ये थे की जिसे पूछो … जवाब में झाड़ू-फटका मारने की बात कहता । साफ़-सुथरी जगहों पर व्ही.व्ही.आई.पी  झाड़ू मारते रहे और गंदगी के माहौल को साफ़ करने का ठेका स्कूली बच्चों से लेकर आम जनता के मथ्थे मढ़ दिया गया। मोदी की परिकल्पना पर झाड़ू मारकर सफाई का सन्देश फैलाने वाले मंत्री-संत्री और अफसर अक्सर मुंह में भरी गंदगी के निशान सड़क पर छोड़ आगे बढ़ जाते। वो दरअसल सबूत होता है हमारी स्वच्छता का। हमारे उजले तन के भीतर की गंदगी अक्सर लोगों को दिखाई नहीं पड़ती। यक़ीन मानिए हमारे भीतर छिपी उसी गंदगी के प्रमाण शहर की गलियों, चौक-चौराहों पर दिखाई पड़ते हैं जिनसे मानवीय प्रवित्ति की बू आती है।
                          कल ही मैंने अपने सूबे [छत्तीसगढ़] की राजधानी रायपुर के पंडरी इलाके में कुछ तस्वीरें खींचीं। कई दिन से उस गंदगी को देख रहा था, अक्सर उसी रास्ते मेरा आना-जाना होता है। दफ्तर उसी ओर है इस लिहाज से पेट के लिए रोज गंदगी लांघना पड़ता है। गंदगी देखने की करीब-करीब आदत ही पड़ गई है, वो किसी भी तरह की हो। मुझे रोज दिखाई देने वाली गंदगी से आती बू का भी अहसास है। अब नाक बंद करने की जरूरत नहीं पड़ती क्यूंकि उस इलाके में पहुँचते ही दिमागी तौर पर मैं तैयार हो जाता हूँ। इस गंदगी के बीच से गुजरते वक्त मुझे कल कुछ गाय दिखाई पड़ी जो बजबजाहट के बीच पेट के मुक्कमल इंतज़ाम में जुटी हुई थी। मुझे थोड़ी पीड़ा हुई, फिर गौ माता के जयकारे लगाने वालों की सूरत का ख्याल आया। मैंने काफी कुछ सोचा फिर तस्वीरें लीं और दफ्तर की ओर बढ़ गया। ये गंदगी ना मोदी ने फैलाई थी, न ही शासन-प्रशासन का कोई नुमाइंदा सड़क पर कचरा छोड़ गया था ।
                   अक्सर हम साफ़-सुथरा होने का भ्रम पाल लेते हैं और अपने घर से निकाली गई गंदगी को दूसरे की चौखट पर फेक आते हैं। शहर की सड़कें, चौक-चौराहों से लेकर सरकारी और निजी उपक्रमों में घात लगाकर पहले हम गंदगी करते हैं फिर सरकारी तंत्र की राह ताकते हैं। सोचता हूँ सफाई कर्मी न होते तो शायद हम गंदगी के बीच ही कहीं बदबू मारते पड़े होते। मैं अक्सर उन लोगों के बारे में भी सोचता हूँ जो मोदी के खुले में शौच अभियान के लिए बाटी जाने वाली राशि में भी बंदरबाट करने से नहीं हिचकते। दरअसल सिस्टम की गन्दगी को साफ़ किये बिना स्वच्छ भारत अभियान की परिकल्पना सिर्फ कागजों पर सफल और साफ़ नज़र आएगी। कागज़ पर स्वच्छता बिखेरती भारत की तस्वीर को जब-जब जमीन पर उतरकर देखने की कोशिश कीजियेगा तब-तब चारो ओर सिर्फ और सिर्फ गंदगी …गंदगी और गंदगी ही दिखाई पड़ेगी।  वजह हम खुद है, सफाई अभियान की जितनी भी तस्वीरें अखबारों या इलेक्ट्रानिक मीडिया के जरिये अब तक सामने आई हैं वो कहीं ना कहीं ये भी बताती हैं हम दोहरा चेहरा लिये आज नहा-धोकर साफ़ कपडे पहनकर सड़क झाड़ने की औपचारिकता के बीच ‘मोदी मिशन’ को फटका मारने निकले हैं।

अब ऐसे मे जरा सोचिये जहां सोच वहां…. ?  

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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