बिलासपुर—गुणवत्तायुक्त न्याय देना जज का पहला कर्तव्य है। जज का कार्य संविधान और कानून को अपहोल्ड करना है। संविधान में निहित बातों को दिमाग में रखकर कार्य करना है। न्याय बेचने की चीज नहीं है। फैसला ऐसा होना चाहिए कि समाज को गर्व हो। जजों का निर्णय समाज और कानून के बीच पुल होना चाहिए। यह बातें सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अर्जुन सिंह सिकरी ने आज हाइकोर्ट बिलासपुर के आॅडिटोरियम में छत्तीसगढ़ राज्य न्यायिक अकादमी के नवनियुक्त सिविल जज वर्ग-2 के प्रथम इंडक्शन ट्रेनिंग कार्यक्रम में कही।
जस्टिस सिकरी ने कहा कि चयनित जजों का न्यायिक परिवार में शामिल होने का स्वागत करता हूं। आप हजार दो हजार या उससे अधिक प्रतियोगियों के बीच से चुनकर आए हैं। आपको बात समझ लेनी है कि न्याय का क्षेत्र कठिन परिश्रम वाला होता है।
जस्टिस सिकरी ने कहा कि उचित न्याय करने में अधिवक्ता की भूमिका तो होती है पर जजों का विवेक और अनुभूति महत्वपूर्ण है। आप जब न्याय करने जाते हैं तो यह निश्चित कर लेना चाहिए कि कौन सही है और कौन गलत। सुको जज ने कहा कि न्याय में देरी करना …एक तरह से अन्याय है। इसलिए निर्णय की गुणवत्ता को बनाए रखते हुए त्वरित न्याय प्रदान करने का प्रयास करना होगा। ध्यान रखें कि आपके फैसले से यह नहीं दिखना चाहिए कि एक मुकदमा कम हो गया..बल्कि आपके फैसले में निष्कर्ष दिखाई देना चाहिए।
जस्टिस सिकरी ने कहा कि हां हम ब्यूरोक्रेट की तरह निर्णय नहीं ले सकते। हमें ध्यान रखना है कि हमारा फैसला समाज और कानून के बीच पुल का काम करे। सिकरी ने सिविल जजों से कहा कि प्रशिक्षण कार्यक्रम इसलिए है कि एक दूसरे से संवाद कर आप अपनी उत्पादकता को किस तरह बढ़ा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की तरह आपके पास अवसर नहीं होता कि दो या चार-पांच जजों के बेंच में बैठकर फैसले लें। आपको अपनी कोर्ट में अकेले ही निर्णय लेना है।
उपस्थित जजों को संबोधित करते हुए हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक गुप्ता ने नव चयनित जजों को नई यात्रा प्रारंभ करने की बधाई दी। सिविल जजों को न्यायदान की शपथ भी दिलाई। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि एक जज को मानवीय संवेदनाओं से भरा होना चाहिए। बुद्धिमान होना जज का एक गुण है लेकिन प्रभाव मानवीय होना चाहिए। जस्टिस सिकरी के थर्ड जेंडर और निःशक्तों के अधिकारों के लिए दिए गए फैसले, छत्तीसगढ़ की ऋचा मिश्रा के मामले में दिए गए निर्णयों का उल्लेख करते हुए जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा है कि यह सब फैसले उनकी संवेदनशीलता की परिचायक है।
जस्टिस गुप्ता ने कहा कि कोई भी व्यक्ति अदालत के दरवाजे पर अपनी परेशानी लेकर आता है। आप दस्तावेजों को देखें, तथ्यों को समझें तो आपकी दृष्टि संवेदनशील होनी चाहिए। ध्यान रखना होगा कि हम अधिकारी नहीं जनता के सेवक हैं। फैसले देते समय डर, तरफदारी, आकर्षण, उपेक्षा जैसे भाव नहीं आने चाहिए। कोई वकील आपको पसंद नहीं तो इसका असर फैसले में नहीं दिखे। ध्यान रखना होगा कि हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, विविध वर्ग समुदाय, निर्णय लेते समय इसे भी ध्यान में रखना होगा। संविधान ही आपके लिए गीता-बाइबिल है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में राज्य न्यायिक अकादमी के सदस्य और हाई कोर्ट के जज जस्टिस मनीन्द्र मोहन श्रीवास्तव ने जस्टिस सिकरी और अन्य अतिथियों के स्वागत में उद्बोधन और परिचय कराया। राज्य न्यायिक अकादमी के चेयरमेन जस्टिस प्रशांत मिश्रा ने कहा कि आज का दिन अविस्मरणीय है। नए सिविल जजों के प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्घाटन में आने के लिए हमारे अनुरोध को जस्टिस सिकरी ने स्वीकार किया।
कार्यक्रम के अंत में जस्टिस सिकरी को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट और न्यायिक अकादमी की तरफ से स्मृति चिन्ह दिया गया। उद्घाटन सत्र में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर, हाईकोर्ट के सभी जज, न्यायिक अधिकारी, बार एसोसिएशन के पदाधिकारी, पूर्व न्यायाधीश और विधि छात्र उपस्थित थे।