बिलासपुर— शिक्षक मोर्चा संचालक संजय शर्मा ने मंत्रालय में बैठक के बाद बयान दिया है कि मध्यप्रदेश में संविलियन घोषणा के बाद छत्तीसगढ़ में भी संविलियन, शासकीयकरण, समान काम समान वेतन, क्रमोन्नत वेतनमान वर्ग तीन का समानुपातिक वेतनमान, समेत 9 सूत्रीय मांगो को प्रदेश सरकार को गंभीरता से लेना होगा। सरकार एक तरफ कहती है कि संविलियन ना हुआ और ना होगा। बावजूद इसके लोक सुराज के आवेदन में शिक्षाकर्मियों के संविलियन को लेकर जवाब मांगा गया है। इसके बाद कोरिया सीईओ के जवाब से शिक्षाकर्मियों में फिर आक्रोश भरने लगा है।संजय शर्मा ने बताया कि मध्यप्रदेश सरकार ने शिक्षाकर्मियों के संविलियन का ऐलान कर दिया है। लेकिन छत्तीसगढ़ में शिक्षाकर्मियों को लेकर सरकार की मंशा अभी सामने नहीं आयी है। इस बीच कोरिया सीईओ ने लोकसुराज में मंगाया गए आवेदन पर कहा है कि शिक्षाकर्मियों का संविलियन संभव नहीं है। जिला पंचायत सीईओ के इस कार्यवाही के बाद शिक्षाकर्मियों में भंयकर आक्रोश है। क्योंकि जिला पंचायत सीईओ का बयान शासन का आदेश नहीं समझा जा सकता है। क्योंकि संविलयन वाला आवेदन सरकार ने मंगाया है। इसलिए जरूरी है कि अधिकारियों को बयान देने या संविलियन के आवेदनों को निराकरण करने से पहले सोच समझकर निर्णय लेना चाहिए।
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नहीं करना तो…आवेदन क्यों मंगाया
संजय शर्मा ने कहा कि जब सरकार को संविलियन नहीं करना है तो लोकसुराज में आवेदन मंगाये ही क्यों गए। शिक्षक मोर्चा संजायल के अनुसार लोक सुराज अभियान में शिक्षाकर्मियों के संविलियन के पक्ष में प्रदेश से हजारों आवेदन आए हैं। ग्रामीणों से लेकर जनप्रतिनिधियों का शिक्षाकर्मियों को समर्थन मिला है। लोगों ने राज्य सरकार को आवेदन देकर शिक्षाकर्मियों को संविलियन की मांग की है। लेकिन कोरिया जिला पंचायत सीईओ ने आवेदन का निराकरण करते समय कार्रवाई का विवरण दिया है कि पंचायत संचालनालय के आदेशानुसार शिक्षाकर्मी पंचायत संवर्ग के कर्मचारी नहीं हैं। आवेदन देने वाला संबंधित पंचायत का कर्मचारी है। इसलिए संविलियन संभव नहीं है।
सरकार को संविलियन का अधिकार
संजय ने बताया कि यह जानते हुए भी संविलियन का मामला संवेदनशील है। केवल राज्य सरकार ही निर्णय ले सकती है। मामला जिला पंचायत सीईओ के अधिकार क्षेत्र के बाहर का है। संविलियन करना है या नहीं राज्य सरकार को निर्णय लेना है। ऐसे में संविलियन के मुद्दे पर जिला पंचायत सीईओ का इस तरह का आदेश आक्रोशित करने वाला है। यह जानते हुए भी कि सरकार ने ही लोकसुराज आवेदन का पार्मेट तैयार किया है। बावजूद इसके आवेदन पर सीईओ का गैरजिम्मेदारना कमेंट उचित नहीं है।
कहां से आयी गजब की फूर्ति
हैरानी की बात है कि लोक सुराज में मिले आवेदनों का पहले परीक्षण किया जाना था। तीसरे चरण में निराकण होना है। लेकिन जिला पंचायत सीईओ ने गजब की फुर्ती दिखाते हुए पहले ही चरण में संविलियन वाले आवेदनों का निराकण कर दिया। दो साल पुराने शासन के आदेश को आधार बनाकर बोर्ड पर चस्पा भी कर दिया। सवाल उठना लाजिम है कि जब करना ही नहीं था तो लोकसुराज में संविलियन पर आवेदन मंगाये ही क्यों गए।