Adhik Maas Ka Mahatva :अधिकमास का महत्व, जानिए इस माह के नियम और वर्जित काम, होता है लाभ और नुकसान

Shri Mi
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Adhik Maas Ka Mahatva, अधिकमास का महत्व: 18 जुलाई से अधिमास शुरू हो रहा है। हर 3 साल पर एक अधिमास होता है। शास्त्रानुसार जिस प्रकार प्रत्येक मास का कोई न कोई स्वामी होता है किन्तु अधिकमास का कोई स्वामी नहीं है। इस मास में शुभ-कार्य करना वर्जित है।

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विवाह, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश, मुंडन आदि कोई भी कार्य इस मास में नहीं होते हैं। अधिक मास को पुरुषोत्तम मास भी कहते है।इसके पीछे कारण है कि अधिक मास ने एक बर भगवान विष्णु के पास जाकर अपनी व्यथा सुनाई। वह बहुत दु:खी था कि उसका कोई स्वामी नहीं है।

विष्णु भगवान ने उसे दु:खी देखा तो उन्हेंं उस पर दया आ गई। उसी दिन से ही भगवान विष्णु ने उसे अपना नाम दे दिया और तभी से यह मास पुरुषोत्तम मास के नाम से प्रसिद्ध हो गया।Adhik Maas Ka Mahatva

इस महीने में भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। भगवान विष्णु के पूजन के कारण ही इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है।

ऐसा माना जाता है कि इस माह में भगवान विष्णु की पूजा करने से भक्तों को 10 गुना ज्यादा फल प्राप्त होता है। इस बार अधिमास 18 जुलाई से 16 अगस्त तक रहेगा। इन दिनों में कुछ कार्य करने से जहां पुण्य की प्राप्ति होती है, वहीं कुछ कार्यों से परहेज करना चाहिए। इस बार सावन में अधिकमास है। 19 साल बाद यह विशेष संयोग बना है।

अधिकमास का महत्व
पुरुषोत्तम मास की अवधि के मध्य श्रीमद्भागवत का पाठ, कथा का श्रवण, श्रीविष्णु सहस्त्रनाम, श्री राम रक्षास्तोत्र, पुरुष सूक्त का पाठ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॐ नमो नारायणाय जैसे मंत्रों का जप करके मनुष्य श्री हरि की कृपा का पात्र बनता है।

अधिकमास में निष्काम भाव से किए गए जप-तप पूजा-पाठ ,दान-पुण्य, अनुष्ठान आदि का महत्व सर्वाधिक रहता है। परमार्थ सेवा, असहाय लोगों की मदद करना, बुजुर्गों की सेवा करना, वृद्ध आश्रम में अन्न वस्त्र का दान करना, विद्यार्थियों को पुस्तक का दान कथा संत महात्माओं को धार्मिक ग्रंथों का दान करना, आदि का दान करना सर्वश्रेष्ठ फलदाई माना गया है। इस मास में किए गए जप-तप, दान पुण्य का लाभ जन्म जन्मांतर तक दान करने वाले के साथ रहता है।

अधिक मास में न करे ये काम
अधिकमास के दौरान शहद, चौलाई, उड़द की दाल, राई, प्याज, लहसुन, गोभी, गाजर, मूली और तिल का तेल आदि का सेवन करने से बचना चाहिए।

ऐसा माना जाता है कि इनके सेवन से व्यक्ति के पुण्य नष्ट होने लगते हैं। नए गहनों और कपड़ों की खरीदारी जैसे काम इस माह में नहीं करने चाहिए। इस दौरान मांस मदिरा का सेवन करने से बचें। अधिक मास में जरूरतमंद लोगों को अनाज, धन, जूते-चप्पल और कपड़ों का दान करना चाहिए। अभी बारिश का समय है तो इन दिनों में छाते का दान भी कर सकते हैं। किसी मंदिर में शिव जी से जुड़ी चीजें जैसे चंदन, अबीर, गुलाल, हार-फूल, बिल्व पत्र, दूध, दही, घी, जनेऊ आदि का दान कर सकते हैं।

अधिक मास में न ये काम
इस पूरे महीने जमीन पर सोना बहुत ही शुभ माना जाता है। साथ ही इस दौरान दान-पुण्य करना भी बहुत ही शुभ माना गया है। मलमास के दौरान शरीर और मन को शुद्ध करने के लिए उपवास एक अच्छा तरीका माना गया है।पुरुषोत्तम मास में गेहूं, चावल, सफेद धान, मूंग, जौ, तिल, मटर, बथुआ, ककड़ी, केला, घी, कटहल, आम, पीपल, जीरा, सोंठ, इमली, सुपारी, आंवला, सेंधा नमक आदि का सेवन करने की सलाह दी जाती है। यह भी सलाह दी जाती है कि इस माह केवल एक ही समय भोजन किया जाए।

इस माह में भगवान शंकर और भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से लाभ मिलेगा। अधिक मास में शालीग्राम भगवान की उपासना से भी विशेष लाभ मिलता है। इसलिए हर दिन शालीग्राम भगवान के समक्ष घी का दीपक प्रज्वलित करें।

मान्यता है कि ऐसा करने से साधक को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।अधिक मास में श्रीमद्भागवत गीता के 14वें अध्याय का नियमित रूप से पाठ करें. माना जाता है कि ऐसा करने से कार्यक्षेत्र में उत्पन्न हो रही परेशानियां दूर हो जाती है।Adhik Maas Ka Mahatva

अधिकमास में श्रीहरि यानी भगवान विष्णु की पूजा करना सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। इसलिए अधिकमास में वैसे तो सभी प्रकार के शुभ कार्यों की मनाही होती है। लेकिन भगवान सत्यनारायण की पूजा करना सबसे शुभफलदायी माना जाता है। अधिकमास में विष्णुजी की पूजा करने से माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं और आपके घर में धन वैभव के साथ सुख और समृद्धि आती है।

अधिकमास में ग्रह दोष की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करना सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। बेहतर होगा कि आप किसी पुरोहित से संकल्प करवाकर महामृत्युंजय मंत्र का जप करवाएं। ऐसा करने से आपके घर से सभी प्रकार के दोष समाप्त होंगे और आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ेगा।

अगर आप काफी समय से अपनी किसी मनोकामना को लेकर यज्ञ या अनुष्ठान करवाने के बारे में सोच रहे हैं तो अधिकमास का समय इस कार्य के लिए सर्वश्रेष्ठ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अधिकमास में करवाए जाने वाले यज्ञ और अनुष्ठान पूर्णत: फलित होते हैं और भगवान अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

पुराणों में बताया गया है कि अधिकमास में भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की पूजा करना सबसे उत्तम माना जाता है। अधिकमास के इन 30 दिनों में अक्सर लोग ब्रज क्षेत्र की यात्रा पर चले जाते हैं।Adhik Maas Ka Mahatva

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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