पदोन्नति तिहार के रंग में भंग: प्रदेश के संयुक्त संचालक और दो दर्जन से अधिक जिलों के जिला शिक्षा टूलकिट का होंगे शिकार? 

Chief Editor
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रायपुर।संविलियन हुए तीन साल की सेवा पूरी कर चुके शिक्षको व सहायक शिक्षको की पदोन्नति के लिए वन टाइम रिलेक्सेशन के तहत लाई गई योजना पूरी होने के अंतिम चरण में सेल्फ गोल का शिकार होकर छत्तीसगढ़ के शिक्षा विभाग के इतिहास में एक नए विवाद की ओर चल पड़ी है…!

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इसकी गूंज विधानसभा में उठे प्रश्नों में भी दिखाई दी है। शिक्षा मंत्री के जवाब ने स्पस्ट तो किया है कि विभागीय भर्ती तथा पदोन्नति नियम के तहत नियोक्ताधिकारी को पदस्थापना के संबंध में अधिकार प्रदत्त है।

लेकिन लोक शिक्षण संचालनालय अपने आधे अधूरे दिशा निर्देश पर अपने ही निम्न संभागीय कार्यालयों और जिला शिक्षा कार्यालय के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप कर उनको सिर्फ रबड़ स्टाम्प का नियोक्ता बनाने की ओर चल पड़ा है। या फिर टूलकिट काम नही कर पाई कही।

शिक्षक पदोन्नति मामले में नियोक्ता के अधिकार में हस्तक्षेप होते रहे तो आने वाले समय व्यवस्था के संचालन में लेने वाले निर्णय पर स्थानीय नियोक्ता टालमटोल नीति पर चलेंगे।

जैसे हाल ही में डीपीसी हुए शिक्षको की पदोन्नति के शेष दस प्रतिशत पदों पर पदोन्नति अटक गई है। छुटे हुए पदों के विरुद्ध भी यही हाल है। डीपीआई अब यह कहना चाह रहा है कि हम करे तो रासलीला है तुम करो तो करेक्टर ढीला है।

मंत्रालय के गलियारों पर नजर रखने वाले संकेत दे रहे है कि 19 जुलाई 2023 को अवर सचिव के दस्खत से जारी आदेश के क्रमांक एक से तीन में वर्णित तथ्य में यह स्पस्ट हो रहा है कि पदस्थापना स्थान में संशोधन करते हुए काउंसलिंग के माध्यम से पदस्थापना किए जाने को निर्देश का उल्लंघन बताया जा रहा है।

जिसे आधार बनाते हुए …! जिला स्तर पर सहायक शिक्षक से प्राथमिक स्कूल के हेडमास्टर के पद पर हुई पदोन्नति…! संभागीय स्तर पर सहायक शिक्षक से मिडिल स्कूल के शिक्षक पदोन्नति…!

शिक्षक से मिडिल स्कूल के हेडमास्टर के पद पर हो चुकी पदोन्नति के लिये हुई काउंसलिंग के बाद जारी हुए पदांकन आदेश में संशोधन किये जाने वाले मामले में प्रदेश के चारो संभाग के शिक्षा संयुक्त संचालको और करीब दो दर्जन से अधिक जिलों के जिला शिक्षा अधिकारियों और लिपिकों को भी निलंबित किया जा सकता है …?

बड़े पैमाने पर निलंबन हो सकते है यह संभावना इसलिए लग रही है क्योकि शिक्षको की पदोन्नति के आदेश जारी होने के बाद प्रदेश के लगभग दो दर्जन से अधिक जिलों के जिला शिक्षा अधिकारियों और सभी संभागीय शिक्षा कार्यालय में पदोन्नति आदेश जारी होने के बाद संशोधन हुआ है।

बिलासपुर में हुए एक अधिकारी और एक लिपिक के निलंबन में जो आधार बनाये गए है। उसमें स्कूल शिक्षा की ओर से जारी काउंसलिंग निर्देश में कही भी इस बात का जिक्र नही है कि किसी भी सूरत में एक बार पदांकन आदेश जारी करने के बाद उसका स्थान परिवर्तन नही जाए। स्कूल शिक्षा विभाग सहित शासन को इस बात की भी जानकारी थी कि काउंसलिंग के बाद संसोधन के आवेदन आये थे।

इसकी समय सीमा तय की गई थी। नियोक्ता कार्यालय आवेदनों पर विचार करते हुए संशोधन कर रहा है। संशोधित आदेश की प्रति नियमतः सभी को भेजी जा रही है। पदोन्नति से जुड़ी खबरे मीडिया में प्रसारित हो रही है। जिला स्तर पर हुए प्राथमिक स्कूल हेडमास्टरों की काउंसलिंग में माध्यम से हुई पदोन्नति और उसमें हुए संशोधनो को तो कई महीने गुजर गए। इस ओर विभाग के आला अधिकारियों का ध्यान क्यो नही गया ..?

गड़बो नवा शिक्षा विभाग में आलम कहीं ऐसा तो नही है कि आपसी राजनीतिक गुटबाजी को देखते हुए अफसरों के अपने कैडर में वर्चस्व की होड़ ने नए झमेले को जन्म दे दिया है।निम्न कार्यालयों के नियोक्ताओं के सारे अधिकार रायपुर केंद्रित कर वही से निर्णय थोपने की कयावाद ठीक खेल गढ़िया योजना, स्वच्छता सामग्री वितरण, फर्नीचर, यूनिफॉर्म वितरण मार्कशीट और अंसार शीट जैसे टूल किट का प्रयोग नही होने की खीज तो नही है।

या फिर अफसरों के अपने एक्जिट पोल ने कही सरकार के अलविदा होने के संकेत मान कर अगली सरकार में अपनी कुर्सी बड़ी करने की तैयारी तो नही है। इस बात में दो मत नही है कि पोस्टिंग के दौरान बहुत से मामलों में पैसों का खेला उसी तरह हुआ जिस तरह 2019 और 2022 में तबादला नीति में हुआ था।

माननीयों की अनुशंसा उस वक़्त घोषित थी इस वक़्त लेटरपैड में है दोनों भी जांच और चर्चा का विषय ही है। संसोशन और ट्रांसफर दोनों में समानता यही कि लेने और देने वालो के पांच प्रतिशत भी प्रमाण सामने नही आये है।जब प्रमाण ही नही तो भूपेश सरकार की छवि को चुनाव से तीन महीने पहले बदनाम करने का क्या मकसद हो सकता है…..?

शिक्षको की पदोन्नति के बाद हुए स्थान परिवर्तन के संशोधन में शिक्षा विभाग की ओर कौंवा कान ले गया यह बता कर हल्ला मचाया जा रहा है…..सब कौवे को देख रहे है। पर कान की ओर नजर ही नही है। जब नियोक्ता को विभागीय भर्ती तथा पदोन्नति नियम के तहत नियोक्ताधिकारी को पदस्थापना के संबंध में अधिकार प्रदत्त है।

तो उसके निर्णय पर चेहरे देख कर सवाल उठाने की मंशा क्या हो सकती है। मामला जब उठेगा तो आग जिले के शिक्षा अधिकारियों की ओर से किये गए सहायक शिक्षक से प्राथमिक स्कूल के हेडमास्टर की पदोन्नति में हुए संशोधन और विकास खण्ड में व्यवस्था के तहत हुए बदलाव पर भी आंच आनी तय है।

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