रायपुर। छत्तीसगढ़ प्रदेश तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संध ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की केन्द्र सरकार तथा उनके वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीमारमन, द्वारा केन्द्रीय बजट में आयकर समाप्त न करने व आयकर सीमा को न बढ़ाने के कारण केन्द्रीय कर्मचारियों एवं प्रदेश के लोक सेवकों को फरवरी माह वेतन आधा ही मिल पाया है। चूंकि देश के शासकीय सेवक कोई धंधा व्यवसाय नहीं करते है, इसलिए उनको आयकर सीमा से मुक्त रखना चाहिए। संध के प्रदेशाध्यक्ष विजय कुमार झा एवं जिला शाखा अध्यक्ष इदरीश खाॅन ने बताया है कि फरवरी माह का वेतन जो मार्च माह में देश व प्रदेश के शासकीय सेवकों को प्राप्त हुआ वह प्रतिमाह नगद प्राप्त होने वाले वेतन का आधा हिस्सा ही प्राप्त हो पाया।
अनेक शासकीय सेवक कुछ राशि प्रतिमाह आयकर के रूप में कटौती करा चुके है, किंतु वित्तीय वर्ष 31 मार्च के पूर्व फरवरी माह का वेतन अंतिम वेतन होता है, उसमें शेष आयकर की समस्त बकाया कटौती को एकमुश्त काट लिया गया। अब मार्च माह का वेतन अप्रेल माह में ही प्राप्त होगा। इससे प्रदेश के कर्मचारियों को आधा वेतन ही प्राप्त हुआ है।
उदाहरण स्वरूप एक वरिष्ठ लिपिक को प्रतिमाह लगभग 53,000/-रू. वेतन नगद प्राप्त होता था, उसके बकाया राशि 25,000/-रू. को एकमुश्त काट लिए जाने से मात्र 29,400/-रू. ही वेतन प्राप्त हुआ। इसी प्रकार महिलाओं को आयकर सीमा में कुछ अधिक छूट के बाद भी प्रतिमाह 57,751/-रू. वेतन प्राप्त होता था, उसे एकमुश्त 27,253/-रू. एकमुश्त आयकर कटौती के कारण मात्र 23,398/-रू. ही वेतन प्राप्त हुआ। जिन्होने प्रतिमाह 1,000/-रू. वेतन से आयकर की अग्रिम कटौती कर शासन को भुगतान कर दिया था, उनका भी मूलवेतन जो 57,751/-रू. प्रतिमाह नगद प्राप्त होता था, उनके बकाया आयकर कटौटी राशि एकमुश्त 16,341/- रू. कटौती हो जाने के कारण मात्र 35,077/-रू. ही नगद वेतन प्राप्त हुआ।
ऐसी स्थिति में चूंकि शासकीय सेवक कोई व्यवसाय धंधा नहीं करते और न आय अर्जित करते है, अपितु ‘‘वेतन‘‘ का अर्थ है, अपने तन अर्थात शरीर का दोहन कराने के एवज में पारिश्रमिक प्राप्त करते है, इसलिए उनसे आयकर लेना सर्वथा अनुचित है। केन्द्र व राज्य सरकार कर्मचारियों अधिकारियों से आयकर इसलिए लेती है, क्योंकि शासकीय सेवकों का आय एक नंबर में आॅनलाइन दृष्टिगोचर होता है, तथा आयकर विभाग व केन्द्र या राज्य सराकार को आयकर वसूली हेतु कोई परिश्रम नहीं करना पड़ता, सीधे वेतन से कटौती होकर राजकोष में जमा हो जाता है। देश के ईमानदारी से आयकर दाताओं में 75 प्रतिशत करदाता शासकीय सेवक ही है।
बाकी के लिए वसूली की प्रक्रिया अपनानी पड़ती है। सरकार व लोक सेवक के बीच मालिक व नौकर का संबंध है। एक मालिक अपने नौकर से पैसा ले यह लज्जा को भी लज्जा आती है। बल्कि पुराने जमाने में होली दिपावली में मालिक अपने नौकर को कुछ पुरष्कार देते रहे है, उसी के अनुपालन में केन्द्र व राज्य सरकार अपने कर्मचारियों को बोनस दिया करती थीं। इसीलिए वर्ष 1985 से 1990 के बीच लोक सेवक 12 माह कार्य कर 13 माह का वेतन, अर्थात एक माह का बोनस प्राप्त करते थे। अब 12 माह कार्य कर 11 माह का वेतन प्राप्त कर रहे है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लोक सेवकों की इस पीड़ा का तत्काल निराकरण करने की मांग ंध के प्रांतीय कार्यकारी अध्यक्ष अजय तिवारी, महामंत्री उमेश मुदलियार, संभागीय अध्यक्ष संजय शर्मा, प्रांतीय सचिव विश्वनाथ ध्रुव, सी.एल.दुबे, दिनेश मिश्रा, रविराज पिल्ले, रामचंद्र ताण्डी, आलोक जाधव, नरेश वाढ़ेर, जवाहर यादव, राजू मुदलियार, ए.जे.नायक, डाॅ. अरूंधती परिहार, टार्जन गुप्ता बजरंग मिश्रा, प्रवीण ढिडवंशी, संतलाल साहू, प्रदीप उपाध्याय, ससीम तिवारी, एस.पी. यदु, के.आर.वर्मा, रविशंकर विश्व विद्यालय कर्मचारी संध के अध्यक्ष श्रवण सिंह ठाकुर, महासचिव प्रदीप मिश्रा, नगर निगम कर्मचारी महासंध नेता अजय वर्मा, संतोष पाण्डे आदि नेताओं ने की है।