बिलासपुर। १५ जनवरी रेलवे जोन के लिए हुए ऐतिहासिक जन आंदोलन की आज २७वी बरसी पर छात्र युवा रेल जोन संघर्ष समिति ने रेलवे की आम यात्रियों के विरोध में चलाई जा रही नीतियों की कड़े शब्दों में निंदा की है. समिति ने कहा कि वर्तमान रेलमंत्री पहले रेलवे को इंजिन सप्लाई करने वाली निजी कंपनी चलाते थे और अब वो पूरा रेलवे विभाग ही निजी हाथो में देना चाहते है इसके लिए यात्री गाड़ियों और यात्री सुविधाओं को अस्त व्यस्त कर दिया जा रहा है. समिति ने कहा की २०१४ के बाद से रेलवे सारे फैसले दिखावा वाले ले रहा है और उसकी आड़ में यात्रियों से सुविधाएं छीनी जा रही है.
गौर तलब है कि १५ जनवरी १९९६ को हुए ऐतिहासिक आंदोलन के बाद बिलासपुर रेल जोन का सपना साकार हुआ था. २००३ में उद्घाटन होने के बाद १०-१२ सालो में बड़ी संख्या में यात्री गाड़िया कहली और यात्री सुविधा बढ़ी थी. परन्तु २०१४ के बाद से ही नयी गाड़ियों में कमी आती गई है. केंद्र सरकार ने अलग से रेल बजट पेश होने की परंपरा को भी बंद कर दिया।
जिससे सांसद अपनी मांग संसद में रख कर उसे पूरी करने का दबाव बनाते थे. समिति ने आरोप लगाया कि कोयला का लदान आगे जाकर बढ़ेगा यह बात केंद्र सरकार को २०१४ से ही पता थी परन्तु इन आठ सालो में नयी लाइन बनाने का काम शुरू नहीं हुआ और आज यात्री गाडी रोक कर कोयला माल गाडी चलाई जा रही है.
समिति ने रेलवे प्रशाशन को रेल जोन आंदोलन की याद दिलाते हुए चेताया कि ऐसे ही लगातार जनता की मांग की उपेक्षा से उपजे आक्रोश ने १५ जनवरी १९९६ को इतहास रच दिया था. रेलवे चाहती है कि फिर एक बार लोग हज़ारों की संख्या में सड़को पर आये और पूरे रेल प्रशाशन को पटरी से उतार दे. आज जिस तरह का आक्रोश रेलवे के खिलाफ पुरे इलाके में फ़ैल रहा है वह साधारण नहीं है, कहीं ऐसा ना हो की यह टाइम बम अचानक किसी दिन फट जाए. रेलवे को इसके पहले सारे स्टॉपेज, ट्रैन और समय आदि बहाल कर दिया जाए.
प्रमुख मांगो में बिलासपुर से पेंड्रा रोड के बीच के सारे स्टेशनो के स्टॉपेज, बिल्हा, सिलयारी आदि के स्टॉपेज, सीनियर सिटीजन को मिलने वाली छूट, सभी यात्री गाड़िया लगातार चलाये जाने की जरुरत है और साथ ही घंटो लेट चलाने की परिपाटी बंद की जाए.