देखिए स्कूल मे पहले दिन के यादगार पल…टन-टन-टन घंटी बजी…पिंजरे से निकले पंछी की तरह स्कूल पहुंचे नौनिहाल…जब शिक्षकों और बच्चों की छलक पड़ी आँखें…

Shri Mi
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रूद्र अवस्थी-सवेरा हो गया है………. चिड़िया घोंसलों से निकल गई है……. स्कूल की घंटी बज गई है …….बच्चे सब स्कूल जा रहे हैं …..हम भी तैयार हैं… स्कूल चले हम…. मिलकर स्कूल चले हम….. बरसों से दूरदर्शन पर यह वीडियो फ़ीचर लोग देखते रहे हैं । जिसमें बच्चों के साथ खड़े होकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई इन पंक्तियों को बोलते हुए नज़र आते हैं।   इस वीडियो में आगे की लाइन यह भी है कि ….सवेरे – सवेरे यारों से मिलने घर से निकले हम… इससे हम को जीने की वजह मिलती जाती है…. रोके ना रुके हम…. मर्जी से चले हम…. बादल सा गरजें हम….. सावन सा बरसे हम….. सूरज सा चमके हम…. स्कूल चले हम …….। कुछ इसी तरह के एक वीडियो में सिनेमा कलाकार रणबीर कपूर स्कूल की घंटी बजाते हुए दिखते हैं और गाना बजता है …….टन टन टन सुनो घंटी बजी….. स्कूल तुमको पुकारे…. पल पल पल रोशनी जो मिली ….जो स्कूल की…. जगमगाओगे तुम बन के तारे। कुछ मिनटों में खत्म होने वाले इस तरह के वीडियो फ़ीचर का संदेश सुनकर वर्षों से पता नहीं कितने लोग,,,, कितने बच्चे स्कूल जाने को प्रेरित हुए होंगे। लेकिन कोरोना की वजह से करीब 11 महीने तक बंद रहे स्कूल 15 फरवरी सोमवार के दिन जब बच्चों के लिए खुले तो यह वीडियो और यह गाना फिर से याद आ गया। और लगा की चंद मिनटों के इस वीडियो को महसूस करने के लिए 11 महीने का वक्त लग गया। वाकई कोरोना की शुरुआत और लॉक डाउन की वजह से जिंदगी की रफ्तार जहां पर थम गई थी, वहां तक फिर पहुंचने में करीब ग्यारह महीने का वक्त लग गया।

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स्कूलों में घंटियां बजीं ……दरवाजे खुले और बच्चे पहुंचे। स्कूल वही…. टीचर वही… बच्चों के यूनिफार्म वही …….। लेकिन यूनिफॉर्म के साथ चेहरे पर मास्क भी जुड़ गया था। स्कूल की दहलीज पर खड़े बच्चों के चेहरे पर कोई भी पढ़ सकता था कि अपने स्कूल….. अपने टीचर… और अपने  दोस्तों-  मित्रों के करीब पहुंचकर वो कितने खुश हैं। और टीचर भी बच्चों को अपने साथ पाकर पिछले ग्यारह महीने की हर कमी को पूरा होते देख रहे हैं। महीनों बाद बजी स्कूल की घंटी ने कई चीजों का एहसास एक साथ कराया। एक तो यह कि स्कूल और शिक्षक के बिना शिक्षा नामुमकिन है। बच्चों के लिए स्कूल और  अपने टीचर के बिना सब कुछ अधूरा है । उसी तरह टीचर के लिए बच्चों के बिना स्कूल अधूरा है। महीनों बाद स्कूल पहुंचे बच्चों से बात करके यह भी लगा की उनके अंदर भी जज्बात हैं …..फीलिंग है। जिसे वे महसूस भी करते हैं और जाहिर भी करते हैं ।  इन बच्चों ने उन लोगों को साफ झुठला दिया – जो सोचते हैं कि आज के दौर के बच्चों में  पहले जैसी भावनाएं नहीं है।

छत्तीसगढ़ में हायर सेकंडरी और हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी स्तर पर 9वीं से लेकर 12वीं तक की कक्षाएं शुरू की गई है। सोमवार के दिन जब आसमान पर खुलकर सूरज चमक रहा था और हल्की गर्माहट के साथ मौसम में बदलाव का एहसास करा रहा था। ऐसे समय में किसी भी सरकारी या प्राइवेट स्कूल के भारी भरकम गेट पर खड़े होकर कोई भी महसूस कर सकता था कि  उसके भीतर दाखिल होने वाले टीचर और मासूम बच्चों की आंखें नम है….। अपने स्कूल की दहलीज …..उसकी दीवारों …..उसकी सीढ़ियों और अपने डेस्क को छू लेने के लिए उनके मन में कितनी व्याकुलता है ।  अपने टीचर से रूबरू होने की ललक भी उनके चेहरे पर पढ़ी जा सकती थी। बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों के चेहरों पर भी कोई पढ़ सकता था कि वे  कितने भावुक होकर इस पल को ज़ी रहे हैं। कोई शिक्षक हो या स्टूडेंट हर किसी की जिंदगी में यह  अपने तरह का पहला अनुभव था ,जब इतनी लंबी छुट्टी मिली। आमतौर पर हर एक इतवार ……कोई तीज त्योहार …..दीपावली और शीतकालीन की छुट्टियों के बाद गर्मियों की लंबी छुट्टी ….सभी को इसे जीने का मौका मिला है । लेकिन ग्यारह  महीने की छुट्टी की उम्मीद ना तो किसी को थी और न कभी मिली। वैसे तो हर एक छुट्टी सुकून और मौज-मस्ती दे जाती है। और यह छोटे-छोटे बच्चों के लिए सबसे अच्छा गिफ्ट भी माना जाता है ।  लेकिन इन्हीं छोटे बच्चों ने एहसास कर लिया की छुट्टी मौज मस्ती तो देती है । लेकिन अगर वह बहुत लंबी हो जाए तो बोर भी कर देती है और ऊब आने लगती है । मौज़ – मस्ती वाली छुट्टी इतनी तक़लीफदेह भी होती है, इसका अहसास कोरोना काल में बच्चों ने कर लिया ।

स्कूल वापस लौटने पर खुश दिखाई दे रहे कई बच्चों ने कुछ इसी तरह  की भावनाएं सामने रखी। जो बताते हैं कि पिछले साल  कोरोना की वज़ह  से पहले मिली  हफ्ते भर की छुट्टी में खूब मजा आया। फिर कुछ कुछ दिन के लिए बढ़ती गई  छुट्टियां भी खुश करती रही। लेकिन लगातार बढ़ती गई छुट्टियों से मन अघा गया ….. । स्कूल छूट गया…. टीचर छूट गए …..और वे दोस्त – यार भी छूट गए….।  जिनके साथ मौज मस्ती भी होती है । बातें भी होती हैं।  हंसी मजाक भी होता है और कभी – कभी लड़ाई भी हो जाती है ।  बच्चे  11 महीने के लंबे समय तक यह सब मिस करते रहे । स्कूल में डांट लगाने वाले सर या मैडम की भी उन्हें खूब याद आती रही ।   क्योंकि उसके बिना उन्हें पहली बार इस बात का एहसास हुआ कि उनकी इस डांट के सहारे ही वक्त पर होमवर्क भी पूरा होता है और कोर्स भी पूरा हो पाता है । एक बच्चे ने डबडबाई  आंखों से यह भी कहा कि जैसे पंछी को पिंजरे में कैद कर दो तो वह उड़ नहीं पाता …….।  लेकिन  उसे पिंजरे से आजाद कर दो…. तो वह अपने हिस्से का आसमान तलाश लेता है । कुछ इसी तरह हम भी पिंजरे के कैद से आजाद महसूस कर रहे हैं। लंबी छुट्टियों के दौरान ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर भी बात हुई। बच्चों ने बताया कि वे ऑनलाइन सिस्टम के जरिए अपने टीचर से जुड़े रहे। लेकिन अपने टीचर  रूबरू होकर क्लास रूम में पढ़ना ही अधिक अच्छा और कारगर लगता है। इसीलिए स्कूल की याद आती रही।

शिक्षकों ने भी अपने अनुभव बताए कि किस तरह पिछले कुछ महीने से बच्चों के बिना स्कूल आना  उनके लिए तकलीफदेय था। किसी ने कहा कि शिक्षकों के लिए तो बच्चे ही ऑक्सीजन हैं।बच्चे परिवार की तरह हैं।  बच्चों के बिना स्कूल की कल्पना की ही नहीं जा सकती। वह इस बात को भी याद कर के जज्बाती हो गए की कोरोना काल में बंद रहे स्कूल के दौरान ही 15 अगस्त और 26 जनवरी जैसे राष्ट्रीय पर्व भी गुजरे।  इस दौरान बच्चों की गैरमौजूदगी में किस तरह पर्व मनाया गया। खाली मैदान में उत्सव का आयोजन एक बुरे सपने की तरह हमेशा याद रहेगा। सब कुछ बुझा –बुझा सा लगता था । ऑनलाइन क्लास भी मशीनी लगती थी । अब उसमें फिर से जिंदगी नज़र आएगी ।लंबे गैप के बाद स्कूल खुले तो वीरानी के बादल छठ गए ….और कैंपस में रौनक फिर से लौट आई ।  स्कूल के सामने गेट से लेकर क्लासरूम और मैदान तक फिर बच्चों की आवाज गूंजने लगी….. जैसे चिड़िया अपने पुराने पेड़ पर फिर से वापस लौट कर चहचहा रही हो। किसी के भी मन में अब यह सवाल उठ सकता है कि बच्चों ने लंबे अंतराल के बाद स्कूल जाकर पहले दिन पहला पाठ कौन सा पढ़ा होगा। यह नजारा भी दिलचस्प है। स्कूल में एक साथ पर्याप्त दूरी बना कर पीटी परेड के अंदाज में एक – एक हाथ की दूरी बनाकर खड़े स्कूली बच्चों को शिक्षक पहला पाठ यही पढ़ा रहे थे कि अभी कोविड-19 का खतरा टला नहीं है। लिहाजा इससे बचने के लिए किस-  किस तरह के उपाय जरूरी है। यह पहला पाठ उन्हें इस महामारी से जूझने का भी हौसला देगा और जिस तरह अज्ञानता के अंधेरे से बाहर आकर जिंदगी के नए उजालों की ओर आगे बढ़ने की सीख लेने के लिए बच्चे स्कूल जाते रहे हैं। उसी तरह यह नई शुरुआत भी उन्हें महामारी के अंधेरे से दूर करने में नया रास्ता दिखाती रहेगी । ऐसी उम्मीद सभी को करनी चाहिए।

हमने यह रिपोर्ट सीजी वाल के संपादक भास्कर मिश्र के साथ गवर्नमेंट मल्टीपरपज स्कूल के प्राचार्य राघवेंद्र कुमार गौरहा और शिक्षक प्रमेंद्र सिंह सहित कई शिक्षकों और स्कूली बच्चों से हुई बातचीत  के आधार पर तैयार की है।  आइए आप भी देखिए स्कूल का पहला दिन कैसा रहा….. और बच्चों – शिक्षकों ने हमारे सहयोगी से क्या कहा।

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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