सुप्रीम कोर्ट ने अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त बनाने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

Shri Mi
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दिल्ली।सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पूर्व नौकरशाह अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी।

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न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने यह देखते हुए जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया कि एक संवैधानिक पीठ पहले ही गोयल की नियुक्ति से संबंधित फाइलों की जांच कर चुकी है।

पीठ ने गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील प्रशांत भूषण से कहा, ”आपको इसके लिए तब दबाव डालना चाहिए था जब सुनवाई चल रही थी।

भूषण ने तर्क दिया कि संविधान पीठ द्वारा मामले की सुनवाई के दौरान गोयल की नियुक्ति जल्दबाजी में मनमाने ढंग से की गई थी।

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गोयल की नियुक्ति का बचाव किया और कहा कि संविधान पीठ “इसे रद्द कर सकती थी लेकिन उसने ऐसा नहीं किया”।

पीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और जनहित याचिका खारिज कर दी। संविधान पीठ के समक्ष भूषण ने तर्क दिया था कि गोयल, जो केंद्र सरकार के सचिव थे, ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन किया था और उसके तुरंत बाद उन्हें चुनाव आयुक्त (ईसी) के रूप में नियुक्त किया गया था।

उन्होंने नियुक्ति के संबंध में एक आवेदन भी दायर किया था जिसमें कहा गया था कि हालांकि संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी, फिर भी सरकार ने नियुक्ति की. संविधान पीठ ने तब गोयल की नियुक्ति से संबंधित फाइलें मंगवाई थीं और केंद्र सरकार से यह तंत्र दिखाने को कहा था कि उन्हें चुनाव आयुक्त के रूप में “कैसे चुना गया”।

तीन सदस्यीय आयोग में एक चुनाव आयुक्त का पद सुशील चंद्रा के सीईसी पद से सेवानिवृत्त होने के बाद खाली हो गया था।

पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने चुनाव आयोगों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए माना था कि मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश के एक पैनल द्वारा की जाएगी।

संविधान पीठ ने यह भी कहा था कि यह वांछनीय है कि चुनाव आयुक्‍त को हटाने का आधार मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त की तरह ही महाभियोग प्रक्रिया के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जैसी होनी चाहिए।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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