संयुक्त से एकल..फिर भी टूट रहा परिवार..बुद्धिजीवियों ने किया मंथन.. विचार मंच से बोलीं उषा..फिर..यहीं से होता है विखराव

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—- विचारमंच के बैनर तले टूटते परिवार : निदान एवं उपचार पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में समाज के प्रबुद्ध वर्ग के सम्मानित लोगों ने टूतते परिवार को लेकर गंभीर चिंता जाहिर की। साथ ही विखाराव के निदान पर मंथन भी किया। प्रमुख वक्ता के रूप में समाज सेवी उषाकिरण वाजपेयी ने सार्थक विचार पेश किए।
 
        विवाचर मंचल के बैनर तले टूटते परिवारः निदान एवं उपचार विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में नगर सम्मानित और प्रबंद्ध वर्ग के लोगों ने शिरकत किया। कमोबेश सभी वक्ताओं ने अपने विचारों को खुलकर पेश किया।
 
               विचार मंच की प्रमुख वक्ता उषा किरण ने कहा कि एक समय हमारे समाज में संयुक्त परिवार की अवधाराणा थी। मुखिया का आदेश सब मानते थे। नौकरी में परिवार के सदस्य बाहर जाने लगे, लोगों का घर से बाहर निकलना शुरू हुआ। साथ ही आपस में मिलना जुलना कम होता गया। संयुक्त परिवार एकल परिवारों में परिवर्तित हो गए। अब एकल परिवार व्यक्तिपरक होते जा रहे हैं। जिसमें दो व्यक्तियों के साथ रहने में भी समस्या उत्पन्न होने लगी रहै। 
 
               उन्होने बताया कि शिक्षा के प्रसार से लड़कियों में जागरूकता आयी है।  विचारों में  स्वतंत्रता का भाव विकसित हुआ है। घर सँभालने के अलावा महिलाएं धनोपार्जन में भी सक्रिय हो गयी हैं। इसलिए सोच में परिवर्तन आया है। विवाह के बाद लडकियां अब अपने मायके का ‘सरनेम’ भी जोड़ने लगी हैं।
 
          परिवार से तय किए गए विवाह हों या प्रेम विवाह, जब परिवार का व्यवहारिक पक्ष चालू होता है तब गड़बड़ी शुरू होने लगती है। यहीं से पति और पत्नी के मध्य विवाद शुरू होता है। अब महिला थानों और अदालतों तक पहुँच रही हैं। इन घटनाओं से परिवार कमजोर हुआ है।प्रभाव समाज पर भी पड़ा है।
                 उषा किरण ने जानकेरी देते हुए बताया कि अकेले बिलासपुर में इन विवादों के 3000 मामले अदालतों में हैं। दो अदालते हैं, दो और शुरू होने वाली हैं।  पति-पत्नी के बीच के विवाद को पति-पत्नी ही आपस में सुलझा सकते हैं। , किसी तीसरे के वश में नहीं होता। न्याय द्वारा हमारी नियुक्ति परामर्शदाता के रूप में हुई है। इसलिए हम हम  दोनों से बात कर इस बात को समझने की कोशिश करते हैं कि विवाद की मुख्य वज़ह क्या हैर। फिर बात को आधार बना कर दोनों को समझाने की कोशिश करते हैं। मिलजुल कर साथ रहने में ही भलाई है। इसमें ही बच्चों और परिवार का कल्याण है।
 
              ग्रामीणों में इस समझाइश का सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। लेकिन शहरी जोड़े बहुत कम फिर से साथ रहने के लिए तैयार होते हैं।  भौतिकवादी युग में पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव बहुत अधिक पड़ रहा है। भारतीय संस्कृति साथ मिलकर रहने की रही है। नयी पीढ़ी में बहुत अच्छाई है लेकिन उनके तौर-तरीके थोड़े भिन्न हैं।. यदि समझबूझ कर, एक दूसरे को समझते हुए आगे बढ़ेंगे तब ही परिवारों के टूटन कम हो सकती है।
 
उपरोक्त विचार विचार मंच की विचार गोष्ठी में डा. उषाकिरण बाजपेयी ने व्यक्त किए. कार्यक्रम में नगर के बुद्धिजीवी, साहित्यकार, पत्रकार एवं महिलाओं ने सक्रियता पूर्वक भाग लिया.

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