बिलासपुर। बस्तर में पहले चरण में सात नवंबर को मतदान हो चुका है, अब सत्रह नवंबर को प्रदेश के सत्तर सीटो पर मतदान होना है।कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए ही बिलासपुर और सरगुजा संभाग महत्वपूर्ण है।
सरगुजा संभाग को देखे तो वहां की सभी 14 सीटों पर अभी कांग्रेस का कब्जा है। कांग्रेस अपना नुकसान नहीं होने देना चाहेगी, वहीं भाजपा ने अपनी सीट बढ़ाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है।
इधर बिलासपुर संभाग की 24 विधानसभा सीटों पर मुकाबला दिलचस्प है। अभी इसमें से 12 सीट कांग्रेस और सात सीट भाजपा के पास है। बाकी दो सीटें बसपा व तीन जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के पास गई थीं। दोनों प्रमुख पार्टियों ने बिलासपुर संभाग में अपनी संख्या बढ़ाने के लिए नए चेहरों पर अधिक भरोसा किया है।
सियासी पंडितो की माने तो बस्तर के बाद सरगुजा संभाग को विधानसभा चुनाव में सत्ता में जाने का दूसरा रास्ता माना जाता है। बीते विधानसभा चुनाव में सरगुजा ने सभी 14 सीटें कांग्रेस की झोली में डाल दी। भाजपा का वहां से सूपड़ा साफ हो गया था। यही कारण है कि यह चुनाव दोनों ही पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण हो गई हैं। कांग्रेस ने दस पुराने चेहरों पर ही भरोसा किया है और केवल चार सीटों पर नए प्रत्याशी उतारे हैं।
जबकि भाजपा ने 14 सीटों में से 12 सीटों पर नए चेहरों को मौका दे दिया है, केवल दो पुराने चेहरों को ही दोबारा प्रत्याशी बनाया है।इन नए चेहरों में केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह, सांसद गोमती साय, विष्णुदेव साय जैसे बड़े नाम भी शामिल हैं।
बिलासपुर संभाग को देखे तो यहां की 24 सीटों में से 13 पर अभी कांग्रेस का कब्जा है। कांग्रेस ने इस चुनाव में 12 सीटों पर नए चेहरों को अवसर दिया है और इतने ही प्रत्याशियों को दोबारा टिकट दे दिया है।
जबकि भाजपा की बात करें तो बीते चार चुनावों में उसे वर्ष 2018 के चुनाव में सबसे कम केवल सात सीट मिली है और सबसे ज्यादा वर्ष 2013 के चुनाव में 12 सीट मिल सकी थी। अबकी भाजपा ने चुनाव में 17 उम्मीदवार नए खड़े किए हैं, जिनमें भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव और सांसद लखनलाल देवांगन शामिल हैं। लखन की सीट बदली गई है।
केवल सात पुराने चेहरों को भाजपा ने इस बार प्रत्याशी बनाया है। बिलासपुर संभाग में बसपा और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के प्रदर्शन पर भी नजर रखनी होगी। बीते चुनाव में बसपा ने दो सीट और जोगी कांग्रेस ने तीन पर कब्जा किया था।