अफसोस बाघ वोटर नही हैं

Shri Mi
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 “बाघों को यदि वोट देने की व्यवस्था होती तो हमारे प्रदेश मे उनका नाम बीपीएल कार्ड धारियों की सूची मे होता , उन्हे रियायती दर पर मांस उपलब्ध कराया जाता और खूब शराब पिलाई  जाती अरे हां ! कमजोर आर्थिक  स्थिति  का हवाला देकर किसी बाघिन से सरकारी खर्चे पर विवाह भी करवाया जाता पर अफसोस बाघ वोटर जो नही हैं ।”
caption_spp(सत्यप्रकाश पाण्डेय)अफ़सोस छत्तीसगढ़ में सब सामान्य होता तो कवि  यूँ  कटाक्ष ना करता । कवि अजय पाठक ही क्यूँ और भी लोग हैं जो सामाजिक, राजनैतिक और बौद्धिक क्षेत्र में अपनी अलग पहचान रखते हैं वो भी शासन के निक्कमेपन पर तंज कसते हैं । रामप्रताप सिंह कहते हैं “इस संबंध मे वर्तमान शासन और शासक दोनो ही इस ओर ध्यान नही दे रहे … कागजो मे जंगली कुत्तों को भी शेर बता सकते है। बाघ हमारे देश व पर्यावरण की शान हैं इनको बचाया जाना अत्यावश्यक है।” सुनील कुमार जी कहते हैं “सरकारी लापरवाही हर क्षेत्र में जगजाहिर है पर लुत्पप्राय वन्यजीवों के साथ खिलवाड़ अक्षम्य है , पर सुने कौन ?”
                          बिल्कुल, यहाँ कोई सुनने वाला नहीं है । सब जानते हैं शासन बहरा है, प्रशासन की मर्ज़ी के आगे किसी की चलती नहीं, तभी तो अचानकमार अभ्यारण्य से टाईगर रिजर्व बनने तक के सफ़र में बाघ बढ़ते चले गए । दरअसल ये कॉमेंट्स सोशल मिडिया पर मेरी उस पोस्ट में है जिसमें बाघ और उनके संरक्षण का जिक्र है। अचानकमार अभ्यारण्य में साल 2000 से 2005 में बाघों की संख्या 15 से 17 थी  । साल 2009 तक बाघ बढ़कर 26 हो गए, वर्तमान में 28 बाघ है । ये बाघ वन महकमें की फाइलों में देखे जा सकते हैं, जंगल में इनको खोज पाना उतना ही कठिन है जितना आसमान से तारे तोड़ लाना । सरकारी दस्तावेजों में बढ़ते बाघों की गुर्राहट जमीनी अमले से लेकर राजधानी में बैठे जंगली अधिकारी और मंत्री को सुनाई देती है, मगर पर्यटक या फिर उस इलाके से गुजरने वाले राहगीरों को आज तक बाघ की लीद के दीदार नही हुए ! साक्षात बाघ तो दूर की कौड़ी है ।
                        PicsArt_03-21-03.46.39साल 2009 में अचानकमार अभ्यारण्य को टाईगर रिजर्व का दर्जा मिला ।इसके लिए वन महकमें के एक नामचीन अफ़सर ने दिन का चैन, रातों की नींद हराम कर दी।जानकार बताते हैं उस अफ़सर ने दिल्ली से आई टीम को घुमाघुमाकर बाघ दिखाए, जमकर खातिरदारी की ! नतीजा अभ्यारण्य, टाईगर रिजर्व बन गया ।अफ़सोस वो अफसर अभी भ्रष्टाचार के मामले में सरकारी तंत्र के हत्थे चढ़ा।खैर सवाल बाघ और उनके संरक्षण का है।
                           पिछले दिनों पडोसी राज्य मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने वहां बाघों की मौत पर चिंता जताते हुए वन महकमें को कड़ी फटकार लगाई और बाघों के संरक्षण की बात कही । अखबार से लेकर दृश्य मिडिया में मध्यप्रदेश के पर्यटन को लेकर दिखाई पड़ता उत्साह बताता है, सरकार टूरिज्म को लेकर बेहद गंभीर है । हम उसी मध्यप्रदेश से अलग होकर अपनी पृथक पहचान बनाने के दम्भ भरते हैं । शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग के क्षेत्र में जाने क्या क्या दावे । सूबे के सरदार डाक्टर हैं मगर राज्य जमीनी तौर पर काफी बीमार है ।
                            सरकार नहीं मानती, माने भी क्यूँ ? छत्तीसगढ़ को पर्यटन के क्षेत्र में काफी पहचान दिलाई जा सकती है, मगर कोई सकारात्मक पहल नज़र नही आती । प्रदेश का इकलौता टाईगर रिजर्व, अचानकमार जहां आज भी बाघों के वास्तविक आंकड़ों पर बड़ी बहस हो सकती है । जंगल विभाग नें रिजर्व फारेस्ट में ट्रैप कैमरे भी लगा रखें हैं, उन कैमरों में आज तक कितने बाघ कैद हुए ? ये सवाल भी पूछना गुनाह है हुजूर ।
                           वन्य प्राणियों को लेकर प्रदेश में सरकार और विभागीय अमले की उदासीनता की जितनी तारीफ़ की जाये कम है । पिछले 2 साल में मौत के आंकड़ों पर नज़र डालें तो मालूम पड़ेगा सरकार वन्य प्राणियों के संरक्षण को लेकर कितनी गंभीर है । कानन मिनी जू में सत्तापक्ष के एक विधायक की बर्थडे पार्टी के बाद अचानक 22 चीतलों की मौत । हाल ही में बारनवापारा में जहरीला पानी पीने से दर्जनों वन्यजीवों की अकाल मौत । दिसंबर में सिंहावल सागर (अचानकमार टाईगर रिजर्व क्षेत्र) में हथिनी पूर्णिमा की मौत। ग्राम बिन्दावल में जंजीरों से जकड कर रखे गए हाथी पर जुल्म के किस्से किसी से छिपे नहीं हैं। हाईकोर्ट में याचिका लगने के बाद जंगली अधिकारी होश में आये और सोनू नाम के हाथी की जान बचाई जा सकी । कई और मामले जिसमें वन्य प्राणियों की मौत जो आज तक जांच का हिस्सा है ।
                      जांच करने और करवाने वाले महकमें के ही लोग हैं । अफ़सोस इन सभी मामलों और मौत पर सरकार का रवैय्या सकारात्मक नहीं रहा । मूक वन्य प्राणियों की अकाल मौत की आंच किसी अफ़सर पर नहीं आई । ठीक उसी तरह बाघों की दस्तावेजों में बढ़ती संख्या पर सूबे के मुख्यमंत्री को कभी ख़ुशी नहीं हुई, यक़ीनन वे हकीकत से वाकिफ़ होंगे । मुझे याद नहीं पड़ता पिछले 13 साल के शासनकाल में प्रदेश का डॉक्टर कभी अचानकमार टाईगर रिजर्व में बाघ देखने गया हो, हाँ उनकी इस अनदेखी को अन्य वीवीआईपी ने जरूर पूरा किया ।
                    कहते हैं कुछ वीवीआईपी को बाघ दिखा मगर वो ‘मनरेगा’ का निकला..और ये इस प्रदेश की उपलब्धि है जहां वीवीआईपी के लिए मनरेगा के बाघ उपलब्ध हैं।आप सोच रहें होंगे ये ‘मनरेगा’ बाघ क्या है,जानना है तो एक बार किसी वीवीआईपी के साथ अचानकमार टाईगर रिजर्व आइये!
By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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