देखें VIDEOःराहत इंदौरी बोले-आज इंसान की जिंदगी ही बन गई है शायरी..बड़ी आवाज के लिए करना पड़ेगा इँतजार

drrahat_index1बिलासपुर(भास्कर मिश्र)।देश-दुनिया के जाने – माने शायर राहत इंदौरी का मानना है कि कविता या शायरी के लिए बड़ी आवाज सामने आए इसके लिए वक्त का इँतजार करना पड़ता है। अभी भी वही स्थिति है। आज शायरी के मायने बदल गए हैं। कभी दरबारों में जो शायरी कही जाती थी , उसमें और आज के दौर में बड़ा फर्क आ गया है। आज इँसान की जिंदगी हा शायरी बन गई है..।बिलासपुर  मेंआयोजित एक कवि सम्मेलन में शिरकत करने आए- राहत इँदौरी ने ये बातें cgwall.com के चँद सवालों के जवाब में कहीं। उनसे सवाल किया गया था कि आज के दौर में शायरी किस तरह की हो रही है। उन्होने कहा कि बेहतर शायरी के लिए वक्त का इँतजार करना पड़ता है। उन्होने इस सिलसिले में मीर से गालिब और फिराक गोरखपुरी तक के सफर की याद दिलाई। उन्होने कहा कि शायर या कवि , वहीं लिखता है , जो आज के माहौल में दिखाई देता है। कभी दरबारों में जो शायरी की जाती थी , आज उसकी परिभाषा बदल गई है। आज इंसान की जिंदगी ही कविता है। इंसान की जिंदगी ही शायरी है….। कभी कहा जाता था कि औरत से गुफ्तगू या औरत की गुफ्तगू पर ही शायरी करना शायरी है। लेकिन आज आज ऐसा नहीं है। आज सिर्फ एक शब्द से कुछ नहीं होगा…।

Join WhatsApp Group Join Now

drrahat_indori_2_indexएक सवाल के जवाब में उन्होने कहा कि अगर  कुछ लिखा जा रहा है तो पहली शर्त होती है कि उसे पढ़ा भी जाए। अगर पढ़ा जा रहा है, तो यह एक अच्छा शगुन है। राहत इंदौरी कहते हैं कि पहले दो – चार गजल या कविता पर लोग पचास बरस गुजार लेते थे। लेकिन आज जो लिखा जा रहा है, वह एक दिन में ही पुराना हो जाता है। इसकी वजह यह भी है कि आज सब कुछ आसानी से पूरी दुनिया में पहुंच जाता है।शहरों के नाम बदले जाने के सवाल पर उन्होने इससे अगरर मसाइल के हल निकलते हों तब तो इसका स्वागत है। नहीं तो यह सियासी रवायत के अलावा और कुछ नहीं है। अवार्ड लौटाए जाने से संबंधित सवाल पर उन्होने कहा कि निजी तौर पर वे कभी इसके पक्ष में नहीं रहे।

(मशहूर शायर राहत इंदौरी से बिलासपुर में हुई इस गुफ्तगू को आप यू ट्यूब पर भी देख सकते हैं।)

One thought on “देखें VIDEOःराहत इंदौरी बोले-आज इंसान की जिंदगी ही बन गई है शायरी..बड़ी आवाज के लिए करना पड़ेगा इँतजार

  1. खुशामदीद… बेशकीमती मुलाकात और आला ख़्यालों का इज़हार.. शुक्रिया..!
    नकाब या नाम बदलो, हैसियत से इज़्ज़त बदलो,
    बदलाव तो फितरत रहा ज़माने का तो नया क्या,
    ग़र बदलो तो ज़हनी रंज और तंज़ के तर्ज़ बदलो..!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

close