Pension के लिए शपथ पत्र की अनिवार्यता को लेकर उच्च न्यायालय में याचिका

Shri Mi
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बिलासपुर।छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष संजय शर्मा ने बताया कि 2028 के पहले रिटायर होने वाले लीला राम साहू एवं अन्य एल बी संवर्ग के शिक्षकों द्वारा माननीय उच्च न्यायालय में याचिका दायर किया गया है,याचिका में उल्लेख किया गया है कि ओपीएस का लाभ उठाने के लिए पुरानी पेंशन योजना के लाभार्थियों पर 01.11.2004 से 31.03.2022 तक जमा करने का बोझ डाला गया। 01.11.2004 से पेंशन नियम 1976 के लाभ को प्रभावी करने के लिए राज्य की ओर से अभिदाता के अंशदान, सरकारी अंशदान और अर्जित लाभांश को सरकारी निधि में जमा करने की मांग करना संभव या उचित भी नहीं है।

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जो रक़म राज्य सरकार केंद्र शासन से नहीं ले पा रही है वहीं रक़म कर्मचारियों को जमा करने के लिए कहा जा रहा है जोकि अवैधानिक ही नहीं अमानवीय भी है।

विकल्प फॉर्म को अनिवार्य रूप से जमा करने से दो अलग-अलग नियमों के सेट द्वारा शासित एक ही सरकार के तहत अलग-अलग वर्ग बन जाते हैं। पुरानी पेंशन योजना एक वैधानिक पेंशन लाभ है और नई पेंशन योजना गैर-सांविधिक पेंशन लाभ है जो किसी भी व्यक्ति के लिए उपलब्ध है चाहे उसकी स्थिति कुछ भी हो। यद्यपि सरकारी कर्मचारी के लिए नई पेंशन योजना में राज्य सरकार द्वारा 10% अंशदान है, लेकिन यह 1976 के नियमों के तहत उपलब्ध वैधानिक लाभ नहीं बनाता है।

व्याख्याता (पंचायत) की स्थिति अब व्याख्याता (स्थानीय निकाय) पंचायत विभाग में प्रदान की गई उनकी सेवा की लंबाई पर विचार करते हुए संबंधित सेवा नियमों और 1976 के पेंशन नियमों द्वारा शासित होता है। विकल्प फॉर्म जमा करने से पेंशन लाभ के लिए पूर्व सेवा पर विचार करने का दावा कमजोर हो जाता है, जो अधिकारों के लिए हानिकारक है।

किसी भी कानून को इस तरह से क्रियान्वित नहीं किया जा सकता है जो किसी सरकारी कर्मचारी के अपने उपक्रम के माध्यम से उसके अधिकार को कुचलता या समाप्त कर देता है, इस प्रकार, आवश्यक सेवा शर्त के रूप में राज्य द्वारा मांगा गया अनिवार्य विकल्प फॉर्म कानून की नजर में जबरदस्ती और अस्थिर है।

याचिकाकर्ता 2012 से नई पेंशन योजना के सदस्य हैं और उनके वेतनमान और नई पेंशन योजना के लिए सरकार द्वारा 10% योगदान सहित अन्य लाभ, जहां से, 01.11.2004 से प्रभावी पुरानी पेंशन योजना द्वारा नई पेंशन योजना को प्रतिस्थापित किया जाता है, तो पुरानी पेंशन योजना की प्रयोज्यता 2012 से स्थानीय निकाय के व्याख्याताओं पर आसानी से लागू की जा सकती है।

पुरानी पेंशन योजना की प्रयोज्यता के साथ 1976 के नियम पेंशन देने की सेवा शर्तों और भविष्य निधि को भी शासित करेंगे, संशोधित कानून के अनुसार कर्मचारियों का नई पेंशन योजना खाते में दिनांक 01.11.2004 से 31.03.2022 तक अंशदान एवं उस पर देय लाभांश का भुगतान नई पेंशन योजना नियमानुसार किया जायेगा। सामान्य भविष्य निधि खाते को बनाए रखने के लिए नियमों और योजनाओं के दो अलग-अलग सेट होने के विचार की कल्पना करना असंभव है। विवादित खंड 6 – 1976 के नियमों में मुख्य संशोधन को निरर्थक बनाता है, जिसे पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू किया गया है और भविष्य निधि के उद्देश्य से भी जीपीएफ नियम पुरानी पेंशन योजना के कार्यान्वयन की तारीख से लागू होंगे और किसी बाद की तारीख से नहीं।

राज्य सेवाओं में अपने कर्मचारियों के लिए लागू नीति पर निर्णय लेने के लिए राज्य सरकार को संविधान द्वारा विधिवत अधिकार दिया गया है। नई पेंशन योजना में सदस्यता स्वैच्छिक और वैकल्पिक थी और यह भी अपरिवर्तनीय नहीं है। नई पेंशन योजना से सैद्धांतिक रूप से हटने के बाद राज्य अपने और कर्मचारियों के अंशदान और उस पर मिलने वाले ब्याज को वापस पाने में विफल रहा है, पुरानी पेंशन योजना के कार्यान्वयन के लिए राज्य द्वारा तैयार किए गए तौर तरीके दोषपूर्ण हैं और इसका लाभ उठाने का पूरा वित्तीय बोझ उस कर्मचारी पर स्थानांतरित हो गया है, जो पुरानी पेंशन योजना के तहत दावा करेगा।

राज्य ने 2013 के पीएफआरडीए अधिनियम के प्रावधानों को लागू नहीं किया है और नियमों को नई अंशदायी पेंशन योजना से बाहर निकलने से पहले बनाया है और पुरानी पेंशन योजना को पूर्वव्यापी तिथि से लागू किया है।

सी.जी.पेंशन नियम, 1976 के नियम 46 के अनुसार पेंशन और ग्रेच्युटी की पात्रता के लिए न्यूनतम 10 वर्ष की अर्हक सेवा आवश्यक है। यहां याचिकाकर्ता पेंशन और ग्रेच्युटी के लिए विचार किए जाने के हकदार हैं यदि उनकी पिछली सेवा को उसी के लिए नहीं माना जाता है या जब वे विकल्प फॉर्म जमा करते हैं तो उन्हें योजना से बाहर कर दिया जाएगा।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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