शिक्षाकर्मियों की उपेक्षा की एक और कहानी…व्याख्याता अब अगली सीढ़ी का कर रहे इंतजार,प्राचार्य के खाली पदों पर क्यों नहीं हो रहा प्रमोशन.?

Shri Mi
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रायपुर।पंचायत कर्मी, शिक्षाकर्मी से एलबी तक के सफर में शिक्षको का उच्च वर्ग का पद व्याख्याता वर्ग … व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों की वजह से उपेक्षा का शिकार हुआ है…। ऐसे कई व्याख्याता शिक्षक है जो 1998 से आज तक उसी पद में रह कर सेवा दे रहे है। पदोन्नति व कामोन्नति का लाभ नही मिलने की वजह से इस वर्ग को लाखों का आर्थिक नुकसान हो चुका है।
वर्ग तीन के सहायक शिक्षक पदोन्नति पाकर वर्ग दो के शिक्षक बन गए वर्ग दो के शिक्षक व्याख्याता बन गए और वर्ग एक का व्याख्याता आज भी वही का वही है। जबकि कई सहायक शिक्षक भी आज पदोन्नति पाकर व्याख्याता बन चुके है। प्राचार्य पद पर कभी पदोन्नति हुई ही नहीं है।

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जबकि प्राचार्य पद प्रदेश में बहुत बड़ी तादात में खाली है । प्रदेश के अधिकांश स्कूलों में प्रभारी प्राचार्य के भरोसे शिक्षा व्यवस्था चल रही है। मुट्ठी भर व्याख्याताओ ने प्रभारी या प्रतिनियुक्ति के दम पर इस पद का मान बढ़ाया है। इस शॉर्ट कट पदोन्नति में बाहुबलियों ने अपना सिक्का जमा लिया है। जो जितना बड़ा बाहुबली व्याख्याता वो उतने पद पर बाहुबल दिखाते हुए बैठा हुआ है।इनके सामने सत्ता पक्ष के बड़े से बड़े चेहरे भी कुछ बोलने में कतराते है।

आम व्याख्याताओं का यह मानना है कि उनकी पदोन्नति को लेकर कोई कुछ कहने वाला नहीं कोई कुछ करने वाला नहीं बस जुगाड़ में रसूखदार व्याख्याता मलाईदार पदों पर प्रभारी की भूमिका में या प्रतिनियुक्ति पर बैठे हुए हैं । जो आम व्याख्याताओं का हक लूट रहे हैं। जिसकी वजह से सरकार भी व्याख्याताओ को दबाव समूह नही मानती है इसका सबसे बड़ा उदाहरण वन टाइम रिलैक्सेशन में व्याख्याताओं को नजरअंदाज किया गया।

शिक्षा से जुड़े कुछ लोग सवाल उठाते हुए कहते है कि किस शैक्षणिक विशिष्ट योग्यता के तहत राजीव गांधी समग्र शिक्षा मिशन के अंतर्गत जिला मिशन समन्वयक से लेकर प्रभारी ब्लॉक शिक्षा अधिकारी जैसे महत्वपूर्ण पदों पर व्याख्याता की प्रतिनियुक्ति या नियुक्ति की गई है। देखा जाए तो ऐसा लगता है की प्रदेश के अधिकारी राजपत्र के पवित्र लेख का अपमान कर रहे है। नीति नियम जेब में लेकर चल रहे हैं।

शिक्षकों का मानना है कि संविलियन के बाद नई सरकार में जोड़ जुगाड़ से महत्वपूर्ण पदों पर बैठे करें करीब 100 व्याख्याताओं के लिए सरकार करीब पैतालीस हजार व्याख्याताओं को सीधे-सीधे नाराज कर रही है।सरकार 100 व्याख्याताओं के मामले में धृतराष्ट्र बन गई है। 45,000 के करीब व्याख्याताओं को सरकार पांडू पुत्र समझ रही है। जिसका जवाब अगले चुनावी संग्राम में दिखाई देने वाला है।

कुछ शिक्षक नेताओं का कहना है कि संविलियन के बाद सरकार व्याख्याताओं को उच्च पदों पर अस्थाई रूप से नियुक्त कर रही है यह अच्छी बात है लेकिन इसमें योग्यता का निर्धारण होना चाहिए ..। वरिष्ठता का निर्धारण होना चाहिए आरक्षण रोस्टर का पालन होना चाहिए …। तब जाकर आम व्याख्याता को यह पद और इस सरकार के नीति नियम सही लगेंगे…। वरना लगता तो यही है की आम व्याख्याता शिक्षक हमेशा दबा और सहमा रहेगा । जिसका रसूख होगा जिसका धनबल बोलेगा वही राज करेगा अंचल क्षेत्र और वनांचल क्षेत्रों में काम करने वाला व्याख्याता ऐसी पदोन्नति की कल्पना भी नहीं कर सकता है।

शिक्षा व्यवस्था पर हुई चर्चा में सवाल उठता है कि प्रभारवाद से आम विद्यार्थी का आम पालक का नुकसान होगा क्योंकि जब मॉनिटरिंग तंत्र ही जुगाड़ जंतर से बना हुआ होगा तो गैर विशिष्ट योग्यता धारी व्यक्ति की व्यवस्था पर पकड़ कितनी होगी इसका अंदाज लगाना बहुत ही सरल है । हाल ही में प्रदेश के कई जिलों में संकुल समन्वयक की नियुक्ति में हुई गफलत से बड़ा प्रमाण और कुछ नहीं हो सकता है।

सरकार के शुभ चिंतक शिक्षा मामलों के जानकारों का कहना है कि व्याख्याताओ समग्र शिक्षा के विभिन्न पदों में प्रतिनियुक्ति के बजाय प्राचार्य के रिक्त पदों पर विधिवत रूप से जब तक प्राचार्य पद पर पदोन्नति नहीं होती तब तक राज्य शासन को वरिष्ठता के आधार पर प्रभारी प्राचार्य के रूप में नियुक्ति प्रदान की जानी चाहिए ताकि उन्हें प्रशासनिक एवं वित्तीय कार्यों का अनुभव हो सके ।

इनका मानना है कि सरकार को इस प्रकार व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने के बजाय सामूहिक हित को ध्यान में रखते हुए 4 मार्च 20219 को छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग (शैक्षिक एवं प्रशासनिक ) भर्ती एवं पदोन्नति नियम 2019 को प्रकाशित निहित नियमो के तहत पदोन्नति प्रक्रिया को लागू करना चाहिए तथा पदोन्नत से वंचित शिक्षक (एल बी)संवर्गो को क्रमोन्नति का लाभ देकर वेतन विसंगति को दूर करना चाहिए ।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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