हम लोग छत्तीसगढ़ में रहते हैं। हमारे सूबे के नाम के आगे “छत्तीस” लिखा है इसलिए छत्तीस के आँकड़े पर अधिक भरोसा करते हैं। छत्तीस के आँकड़े को कोई हिंदी में लिखे या अंग्रेजी में लिखकर देखे तो ऐसा दिखता है , जैसे दो लोग एक-दूसरे की तरफ पीठ करके बैठे हैं…..। हमारे यहाँ राज-काज वाले तो छत्तीस के आँकड़े को खूब मानते हैं। हाँ….. कभी यह आँकड़ा किसी को दुखी कर देता है तो किसी को खुशी का तोहफा दे जाता है। तभी तो राज-काज वाले उस वक्त का बेसब्री से इंतजार करते हैं , जब लोग एक-दूसरे की तरफ पीठ करके बैठेंगे , तो उनके साथ “सेल्फी” लेकर तस्वीर को वायरल कर दें। जिससे “कहीं खुशी –कहीं गम” का माहौल बन जाए। इसी से तो अपने से छत्तीस रखने वालों की ताकत का अहसास करने का मौका मिल जाता है।
छत्तीस का पहाडा पढ़ने वाले लोगों ने कुछ मिसालें भी कायम कर रखी हैं। जिससे उनकी कामयाबी का भी पता चलता है। एक दिलचस्प नमूना देख लीजिए ना….पड़ोसी राज्य झारखंड अपने छत्तीसगढ़ के साथ वजूद में आया। जँगल-खनिज, लोक-लोग वगैगह के मामले में हम और झारखंड एक ही जैसे हैं। लेकिन सियासी स्थिरता के लिहाज से देखें तो छत्तीसगढ़ और झारखंड के बीच छत्तीस का हिसाब है। झारखंड में राजनैतिक अस्थिरता की स्थिति रही । वहाँ पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में कई नाम और कालखँड हैं। हमारे यहाँ तो पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में अब तक एक नाम ही चल रहा है। झारखंड में निर्दलीय भी मुख्य मंत्री की कुर्सी की शोभा बढ़ा चुके हैं।हमारे यहां यह ओहदा पहले कांग्रेस के पास था और पिछले तीन चुनावों से इस पर भाजपा काबिज है। एक दिलचस्प छत्तीस का मामला यह भी है कि लोग झारखंड में अस्थिरता की वजह से नुकसान हुआ मानते हैं। लेकिन किसी को छत्तीसगढ़ के बारे में भी यह कहते सुना जा सकता है कि इस प्रदेश को जो भी नुकसान हो रहा है, उसकी वजह स्थिरता भी हो सकती है। पड़ोस में लोग अस्थिरता की वजह से जल्दबाजी में अपना काम करते रहे हैं, जिससे हल्ला अधिक हो जाता है। और हमारे यहाँ स्थिरता के साथ आराम से काम हो रहा है। न जल्दीबाजी और हल्ला-गुल्ला……। याद आ जाता है- पहले राज्य परिवहन के जमाने में जगह-जगह लिखा रहता था – “सौजन्य से सभी खुश रहते हैं।“ खुशी होती है यह देखकर कि पीडब्लूडी वालों का यह नारा सभी महकमों तक पसरकर टेबलों –आलमारियों में रखी फाइलों से लेकर सरकारी कम्प्यूटर के स्क्रिन पर भी वायरल हो रहा है। और सौजन्यता से मिल रही खुशियों का इजहार उनके चेहरों से हो रहा है।
जो कुछ छत्तीस की गलबहियाँ डाले पड़ोस के साथ अपनी नाप-तौल में नजर आता है। कुछ वैसी ही छत्तीस वाली तस्वीर प्रदेश के अँदर भी है। बानगी देखिए …… हर एक सूबे में सत्ता चलाने वाले आपस में लड़ते हैं। औऱ अपोजीशन वाले बिना आपस में लड़े एकजुटता के साथ जनता की लड़ाई लड़कर सत्ता में वापसी के लिए ताकत जुटाते रहते हैं। हमारे यहां इसका ठीक उल्टा नजर आएगा। सत्ता में बैठे लोग एकजुट हैं और विपक्ष बिखरा हुआ है। कोई भी कह सकता है कि सरकार चला रही बीजेपी में सब लोग एक नेता के पीछे चल रहे हैं। और विपक्षी दल काँग्रेस में लोग एक नेता के पीछे पड़े हुए हैं। यह सच है कि सत्ता में कहीं तोड़-फोडड़- खींचतान की गुंजाइश बन ही जाती है। वहीं विरोधी बेंच पर बैठने वालों के लिए एखजुटता का माहौल बनता है। लेकिन हम छत्तीस का आँकड़ा वाले हैं । और हर आँकड़े को उलट-पलट कर छत्तीस पर ही “लिवा” लाते हैं।
अपने सूबे के सियासी मँजर में जो हवा तैर रही है, उसमें भी समय-समय पर छत्तीस नम्बर की सुगँध या कभी-कभी दुर्गँध महसूस की जा सकती है। ऐसा नहीं है कि सत्ता पक्ष के गलियारे इससे अछूते हैं। वहां भी छत्तीस के आँकड़े जहाँ-तहाँ मंडरा रहे हैं। लेकिन सत्ताधारियों के कैम्प मे “हिट” की तरह ऐसी दवा का धुआँ हमेशा सुलगता रहता है कि छत्तीस का आँकड़ा दूर के लोगों की नजरों से ओझल हो जाता है। जिससे हम बीजेपी के अंदर चल रहे “छत्तीस” के बारे में कहीं पढ़ नहीं पाते या जान नहीं पाते….। मतलब बीजेपी में सब ठीक-छाक है मान लेते हैं। लेकिन किसी ने ऐसी गारंटी भी नहीं दी है कि इसे ही सच मान लिया जाए।
इधर विपक्ष में बैठे लोग तो छत्तीस के परम उपासक बन गए हैं। काँग्रेस के शिविर में तो यह आँकड़ा इतना लोकप्रिय हो गया है कि ताकत की नुमाइश करने वाले छत्तीस के तीन और छः अँकों को भी अपने साथ दूर-दूर —-बहुत दूर ले जाना चाहते हैं। इस चक्कर में यह भी भूल बैठे हैं कि छत्तीस को अगर तिरसठ बनने की इच्छा भी होगी तो दोनों अँक चाहकर भी तिरसठ बनाने के लिए एक साथ नहीं आ पाएँगे। खेमा कोई भी हो उसे अच्छी तरह पता है कि मीडिया में सुर्खियां तभी बनेंगी , जब किसी अपने की तरफ उंगली उठेगी। लिहाजा पिछले कई महीनों से एक नेता के निष्कासन के गोल-मोल ही कांग्रेस की पूरी सियासत घूम रही है।उन्हे “घोर-घोर रानी….” का यह खेल इतना पसंद आ गया है कि अब उसे छोड़कर वापस घर नहीं आ सकते और यह भी नहीं बता सकते कि यह खेल कब बंद होगा। दरअसल सूबे में छत्तीस नम्बर के बीज की बोनी छत्तीसगढ़ राज्य बनते ही , पहली सरकार के गठन के समय से ही यहाँ की कृषि प्रधान जमीन पर हो गई थी। यह पौधा अब धीरे-धीरे सोलह साल में बड़ा पेड़ बन गया है। पार्टी के लोग इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि नौजवान हो चुका पौधा हर समय मजबूत – तंदरुस्त रहे । तभी तो सही वक्त पर कोई-न-कोई इस पर खाद-पानी उड़ेल जाता है। पेड हरा-भरा है और अब फल-फूल रहा है । जिसके छाँव तले एक-दूसरे की तरफ पीठकर बैठे लोग दिन-दहाड़े सपना देख रहे हैं कि प्रदेश अपनी सरकार बन रही है।
नीचे से ऊपर तक हर जगह, हर डगर चल रहा छत्तीस का यह खेल दिलचस्प तो है और हमारे नाम से मेल भी खाता है। लेकिन यह खेल चलेगा कब तक यह न हम जानते हैं न वो जानते हैं । इसका जवाब सिर्फ छत्तीसगढ़ के मतदाताओँ के ही पास है कि वे छत्तीस के पहाड़ा का मतलब कब समझेंगे।