मेरी नज़र में-राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का घोषणा-पत्र – ” लिफ़ाफ़े” में अढ़तालिस पेज़ का “लतीफ़ा”

Chief Editor

“””” कभी-कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है ,
जिन बातों को खुद नहीं समझे, औरों को समझाया है…

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भारत के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस का घोषणा पत्र कुछ ऐसा ही है .. कांग्रेस के घोषणा पत्र में बिंदुवार जितनी बातें हैं वह पूर्णतः अव्यवहारिक और धरातल से कोसों दूर है .. घोषणा पत्र को अमलीजामा कैसे पहनाया जाएगा ? इस पर पार्टी के नेता-प्रवक्ता निःशब्द है ,उनमें सिर्फ अंतहीन खामोशी दिख रही है ..उनके पास फ़िलहाल कोई विकल्प नहीं है ..
राजनीति में, सत्ता पक्ष दावा करता है लेकिन विपक्ष “दावा” नहीं “वादा” करता है..
याद है मुझे “””2019 का घोषणा पत्र जब राहुल गांधी जी द्वारा RBI के भूतपूर्व गवर्नर प्रसिद्ध अर्थशास्त्री रघुराम राजन जी के मार्गदर्शन पर ₹72000 सालाना, (6000 मासिक) प्रत्येक परिवार को देने का वादा किया था ..
लेकिन इस वादा पर जनता ने विश्वास नहीं किया ? किसी भी क्षेत्र में विश्वसनीयता सर्वोपरि है , विश्वास का संकट बेहद ख़तरनाक होता है…उस समय एक कहावत पूरे देश में चर्चा का विषय बना था “”हरियाणा में मतदान केंद्र से बाहर आ रहे “ताऊ से मीडिया वालों ने पूछा-
के ताऊ तूने के किया आज वोट में
“”ताऊजी ने मीडिया से कहा – 72000 नूं लात मार के आऊ सूं””
ताऊ को अच्छी तरह पता था ₹6000/ मासिक प्रत्येक परिवार को दिया जाना कतई संभव नहीं है , इसलिए उसने लात मार दी.. याद रखिए घोषणा पत्र नहीं बल्कि घोषणा करने वाले कंठ की विश्वसनीयता अधिक महत्वपूर्ण है..
क्या आज के समय में जागरूक मतदाता को ऐसे प्रलोभन देकर धोखा दिया जा सकता है? यह काम तो फर्जी चिट फंड कंपनी के द्वारा किया जाता है परंतु उस पर विश्वास कम लोग ही करते हैं जैसे अभी ₹100000 एक लाख रूपए वार्षिक प्रत्येक महिला को दिया जाएगा मतलब की 8300₹ आठ हजार तीन सौ मासिक.. क्या यह वादा पूरा हो पाएगा? इस वादे पर सवालिया निशान तो है ?समस्त कृषि उपज पर एमएसपी की घोषणा देश की आर्थिक व्यवस्था को दृष्टिगत रखते हुए क्या संभव है ? प्रसिद्ध अर्थशास्त्री भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का संसद में कथन था कि-“पैसे पेड़ में नहीं लगते” बेरोजगारों को एक निश्चित रकम प्रति माह दिया जाना क्या संभव है? जब तक शीर्ष नेतृत्व नौकरी और रोजगार में अंतर नहीं समझेगा तब तक 140 करोड़ के देश में स्पष्ट नीति कोई भी राजनीतिक दल नहीं बना पाएगा …
घोषणा पत्र की रूपरेखा बहुत कुछ बजट जैसे ही होना चाहिए..स्पष्ट आँकड़े के साथ जिसे सदन में पेश किया जाता है घोषणा पत्र आप जनता की सदन में प्रस्तुत करते हैं, ₹1 आएगा कहां से और किस-किस मद में जाएगा ? यह स्पष्ट हुए बिना बजट नहीं बनाया जा सकता..ऐसे घोषणा पत्र में घाटे की वित्तीय व्यवस्था की संभावना भरपूर रहती है हम आजादी के बाद से यह सब देख रहे हैं..
आज जब प्रत्येक गांव, किसी भी माध्यम से सारे महानगर और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था से सीधा जुड़ गया है तब आपके ऐसे प्रलोभन पर कौन विश्वास करेगा ? ऐसे घोषणा पत्र से घोषणा करने वाला हास्यास्पद बन जाता है…
घोषणा पत्र के संबंध में जन-जन को वाकिफ होने मे 24 घंटे खबरिया चैनल टेलीविजन समाचार पत्र सोशल मीडिया की अहम भूमिका है .. घोषणा पत्र का महत्व 2014 के चुनाव पश्चात अधिक होने लगा आम मतदाता उसे पढ़ने लगा कि- कौन सा दल क्या-क्या करेगा ? इसके पूर्व किस दल के घोषणा पत्र में क्या अहम विषय था ? ये सब बातें पहले आम मतदाता के पहुंच से बाहर था !
विशेष कर घोषणा पत्र भारतीय जनता पार्टी जब सत्ता में आई तब उनके घोषणा पत्र में किए गए सामाजिक राजनीतिक वादे “तीन तलाक की समाप्ति” धारा 370 की समाप्ति” “राम मंदिर निर्माण के लिए माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश पश्चात समर्पित होकर कार्य करना'” वादा पूरा करने से भाजपा के घोषणा पत्र की विश्वसनीयता प्रमाणित हुई, आम मतदाता को समझ आने लगा फिर इसके साथ मतदाता की नजर उसके अपने व्यक्तिगत हित सामाजिक हित और राष्ट्रहित पर भी होती है..चाहे वह घर-घर उज्जवला गैस योजना हो ,प्रधानमंत्री आवास व्यवस्था हो ,किसानों का कर्ज माफी किसानों के फसल में MSP में वृद्धि, स्व रोजगार हेतु आसान किश्तों में ऋण योजना, शिक्षा-चिकित्सा व्यवस्था आम जन को जरूरतमंद को कितना सुलभ है यह सब भी मतदाता के लिए गहन विचार के महत्वपूर्ण बिंदु बनते हैं… मतदाता अधिक जागरूक हो गया है, जागरूक मतदाता यह जानता है कि मुझे प्रलोभन के नाम पर ठगा नहीं जा सकता देश का मतदाता वाकिफ है कि,कौन उसके हित की रक्षा करेगा ? किसके वादे पर वह भरोसा करे ? कौन फर्जी चिट फंड कंपनी खोला है ? पारदर्शिता के साथ जो उनके हित की बात करता है उसके साथ वह जुड़ता और दूसरों को जोड़ता है..
मतदाता की जवाबदेही दल से अधिक होती है , यह आवश्यक है कि लोकतंत्र में वह जिम्मेदारी से अपने मत का उपयोग करे… आज का जागरूक मतदाता अपनी ज़िम्मेदारी से पूरी तरह वाक़िफ़ है, इस बात को जनता जनार्दन ने हमेशा साबित किया है…
घोषणा पत्र 2024 में कम से कम बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का होना अनिवार्य है किसी भी धर्म विशेष को सामाजिक न्याय के विरुद्ध अतिरिक्त सुविधा दिया जाना आज के दौर में संभव नहीं है…
यदि कोई दल ऐसा करता है तो उसे मतदाता के रोष-आक्रोश का सामना करना पड़ेगा..सिर्फ ग़ैर ज़िम्मेदाराना घोषणा पत्र जारी कर लोक लुभावना नारों से चुनावी सफलता संभव नहीं… “””””

जादू है ना तिलिस्म,आपकी जुबान पर कि ,
आप झूठ बोलें, और मुझे यकीन आ जाए”””

दीपक पाणडेय
राजनीतिक विश्लेषक (गैर पेशेवर) बिलासपुर (छत्तीसगढ़ )

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