बिलासपुर(करगीरोड)।डॉ.सी.वी.रामन् विश्वविद्यालय के कुलसचिव शैलेष पाण्डेय ने शासन के पेड़ काटने के फैसले के खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, भोपाल में याचिका लगाई है। जिसमें अधिकरण के निगरानी में पुनः सर्वे करके पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने मांग की गई है।याचिका में कहा गया है कि तकनीकी नियमों में व्यवहारिक शिथिलता देखकर व सभी बातों को ध्यान में रखकर इस संवेदनशील विषय पर प्रकृति के पक्ष में निर्णय लिया जाए। मामले की सुनवाई जुलाई माह के पहले सप्ताह में होगी।
इस संबंध में जानकारी देते हुए विश्वविद्यालय के कुलसचिव शैलेष पाण्डेय ने बताया कि पर्यावरण की रक्षा करना और पर्यावरण को प्र्रदूषित होने से रोकना हम सभी का नैतिक कर्तव्य है। सकरी-कोटा मार्ग में सड़क चौड़ीकरण के लिए लगभग 4 हजारा पेड़ों को काटने की तैयारी की जा रही थी। इसके लिए स्थानीय स्तर पर लोगों के साथ जुड़कर अनेक माध्यम से पेड़ों को कटाने से रोकने के कोशिश की गई। जिसमें मानव श्रृंखला, जनजागरूता रैली सहित कई आयोजनों से जनता के माध्यम से जिम्मेदार लोगों तक गुहार लगाई गई। इसमें सभी समाज और सभी वर्ग के लोगों ने एकजुट होकर साथ दिया। अब लोग यही चाहते हैं कि सड़क चौड़ीकरण के लिए पेड़ों को न काटा जाएा।
प्रस्तावित सड़क के दोनों किनारों के वृ़क्ष हर दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं, इसमें नील गिरी का पेड़ पेपर बनाने एवं तेल बनाने में काम आता है। औषधीय अर्जुन का पेड़ बुखार और पीलिया की दवा बनने में काम आता है। इसी तरह हर्रा भी उपयोगी है, ये कफ त्रिफला, ब्लड प्रेशन एवं अपच की दवा बनाने में उपयोग किया जाता है। बहेरा वृक्ष त्रिफला, ब्लड प्रेशन एवं अपच की दवा बनाने में काम आता है। सड़क के किनारे आंवला का पेड़ भी हैं जो अपच और बालों के लिए उपयोगी है। साल का पेड़ त्वचा रोग में काम आता है और इससे तेल भी बनाया जाता है। बरगद व पीपल का पेड़ धार्मिक महत्व है और हिन्दुओं की आस्था से जुड़ा है।
साथ ही प्रकृति की ओर से देखा जाए तो ये दोनों पड़े सबसे ज्यादा अधिक मात्रा में आक्सीजन छोड़ते हैं। बेल के फल से गैस, अपच की दवा के लिए बेहद उपयोगी है। शीशम इमारती लकड़ी है इससे दर्द के लिए तेल बनाया जाता है। कोटा रोड़ में आयुर्वेद ग्राम भरनी और गनियारी आयुर्वेदिक ग्राम हैं। यहां दुलर्भ औषधीय के पौधे है। पूरे इलाके में ऐसे पेड़ों की बहुतायत है। सकरी से कोटा मोड के 4 हजार पेड़ काटे जाने के कारण ये दुलर्भ पेड़ भी काट दिए जाएंगे। इसके बदले पुनः इन्ही पेड़ों को लगाया जाना संभवन नहीं है। ऐसे में इस आयुर्वेद ग्राम का अस्तित्व ही खतरे में है। समय रहते ही हम इसे न रोंके तो अंचल को बड़ी क्षति होगी।