बिलासपुर ( भास्कर मिश्र )- चित्रगुप्त ने यमराज से कहा कि प्रभु इस मानव ने पृथ्वी पर बहुत पाप किया है। इसके लिए क्या सजा है। नाराज होकर भगवान यमराज ने कहा इस घोर पापी को बिलासपुर के टीपीनगर में फेंक दिया जाए। जी हां इस जुमले का प्रयोग कभी दूसरे शहरों के लिए हुआ करता था। अब यदि बिलासपुर के टीपी नगर के लिए किया जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। यहां के हालात देखने के बाद टीपी नगर को प्रदेश का खुला ग्वांतामों जेल कहा जाए तो भी कम है। यहां के व्यापारी रोज घुट-घुट कर मर रहे हैं। व्यापार कम शासन की उपेक्षा को ज्यादा जी रहे हैं।
टीपीनगर व्यापारियों की माने तो उनका कसूर सिर्फ इतना है कि उन्होने अपने पेट के लिए व्यापार का रास्ता अपनाया। यदि ऐसा नहीं किया होता तो हम यहां नहीं होते। प्रदेश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने का जिम्मा उन्होंने भूलवश उठा लिया। जिसका नतीजा है कि प्रशासन ने उन्हें उठाकर टीपी नगर नाम से विख्यात नरक नगर में पटक दिया। सीजी वाल ने जब टीपी नगर का जायजा लिया तो जो मंजर सामने आए वह ना केवल रूह कपाने के लिए बल्कि शासन की अकर्मण्यता को बखान करने के लिए काफी था।
करीब दस साल पहले शहर के चहुंमुखी विकास के मद्देनजर टीपीनगर की परिकल्पना की गयी। व्यवसायियों ने अपने पुरूषार्थ से टीपीनगर को प्रदेश का वाणिज्यिक हब बना दिया। प्रदेश की अर्थव्यवस्था को नई पहचान दी। अब यही पहचान व्यापारियों के लिए नासूर साबित हो गया है।
सुनकर अच्छा लगता है कि बिलासपुर का टीपीनगर प्रदेश की अर्थव्यवस्था की धड़कन है। यहां पहुंचने के बाद सीजी वाल की टीम ने महसूस किया की सरकार किसी को आजीवन कारासवास की बजाए टीपीनगर भेज दिया जाए हैं तो वह बहुत बड़ी सजा होगी।
एक दिन पहले ही सीजी वाल ने व्यापारियों के आक्रोश को कुछ इस तरह से जाहिर किया था कि टीपीनगर तो बना नहीं पाये… चले हैं स्मार्ट बनाने। जब सीजी वाल की टीम ने टीपीनगर को करीब से देखा तो रूह कांप गयी। टीपीनगर गंदगी का सबसे बड़े हब के रूप में सामने आया। यहां के व्यापारी सांस कैसे लेते हैं, सड़कों पर चलते कैसे हैं इसका अन्दाजा सीजी टीपी नगर पहुंचने के बाद ही हुआ।
कागजों की माने तो टीपी नगर में सड़कों का संजाल है। सच्चाई तो यहृ है कि यहां सड़कें ही नहीं है। हां एक अधूरी सड़क जरूर देखने को मिली। जो भ्रष्टाचार की आग में बुरी तरह टूट फूट गयी है। आधे सड़के के दूसरी ओर नहर की तरह बहता पानी है। व्यापारियों ने बताया कि आधी सड़क बनने वाली थी लेकिन भ्रष्टाचार की शिकायत के बाद नहीं बनाया गया। यदि सड़क नहीं बनती तो बेहतर होता। आधी सड़क बनने और पानी के जमाव से ट्रकों का निकालना मुश्किल हो गया है। कार या दो पहिया वाहन ने कभी इधर से गुजरने का दुस्साहस किया तो उसे जिला अस्पताल या फिर अपोलो का ही शरण लेना पड़ता है।
टीपी नगर में जाकर सीजी वाल ने देखा कि सड़कों में गड्ढे कैसे होते हैं। दो तीन सड़क पर इतने बड़े गड्ढे हैं कि उसमें कार डूब जाए। बाकी सड़कें मोटर सायकल चलने के काबिल भी नहीं हैं।
टीपीनगर व्यावसायी संघ के अध्यक्ष जगपाल सिंह ने बताया कि हमने सपने में भी प्रशासन, अधिकारी या फिर नेताओं का अपमान नहीं किया। हमेशा उनका सम्मान ही किया । फिर हमें यहां बसाकर किस बात की सजा दी जा रही है। जगपाल सिंह के अनुसार हमने कई बार अधिकारियों के दरवाजे पर नाक रगड़ा लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। उन्होने बताया कि पौधरोपण के बहाने हमने महापौर को भी बुलाया लेकिन नतीजा ठाक के तीन पात साबित हुए। जगपाल बताते हैं कि महापौर जब यहां पेंड़ लगाने आए थे तो टीपीनगर की हालत को देखकर कहा था कि स्थिति में जल्द ही सुधार किया जाएगा। हमें आज भी उनके जुबान से निकले अच्छे दिन के इंतजार हैं।
युवा व्यवसायी विजय सजवानी ने बताया कि टीपीनगर की ओर प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया तो एक साल के भीतर यहां का व्यवसाय पूरी तरह खत्म हो जाएगा। बाहर से आने वाले ट्रक अन्दर नहीं आने चाहते हैं। उन्हें डर रहता है कि कहीं ट्रक धंस ना जाए। हमें सामान को दुकान तक लाने में अलग से मजदूर करना पड़ता है। कभी कभी मजदूर भी नहीं मिलते। जिसके कारण पूरी रात अंधेरे में चौकीदारी करनी पड़ती है। सजवानी ने बताया कि यहां दिन दहाड़े अपराधिक प्रवृति के लोग अपना काम आसानी से कर जाते हैं। पुलिस भी यहा आना पसंद नहीं करती है। विजय ने बदहाल सड़क की ओर इशारे करते हुए बताया कि आज सुबह इस गड्ढे में एक बूढा आदमी डूबकर मरने से बच गया। यदि समय पर नहीं पहुंचता तो उसके परिवार में आज मातम का माहौल होता।
मोटर पार्टस एसोसिएन के अध्यक्ष हरीश कुमार प्रीथवानी कहते हैं कि हमने बहुत बड़ी भूल कर दी यहां दुकान लेकर। हमने कई बार संत्री से लेकर मंत्री तक अपनी पीड़ा को रखा लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। मीडिया ने भी हमारा सहयोग नहीं दिया। बरसात में हम झील का नजारा देखते हैं तो गर्मी में रेगिस्तान के वासिन्दे हो जाते हैं। लाइट कभी आती है तो कभी नहीं आती। घर से पानी का बाटल ना लाएं तो यहां पम्प आपरेटर की गाली सुनना पड़ता है। मोटर चालू करने के लिए पम्प आपरेटर को दान दक्षिणा देना पड़ता है। वह भी ऐसा क्यों ना करे…क्योंकि निगम ने उसे पिछले दो साल से वेतन भी तो नहीं दिया है।
व्यापारी संघ के सलाहकार प्रीतपाल सिंह ने बताया कि इन दिनों बिलासपुर को स्मार्ट सिटी का रोग लग गया है। मै सभी शहरवासियों को एक बार टीपी नगर दिखाना चाहता हूं कि कहीं उनकी भी स्थिति हमारी तरह ना हो जाए। हम भी यहां बड़े ख्वाब लेकर यहां आए थे आज के हालात को देखने के बाद शहर के भविष्य को लेकर परेशान हूं। उन्होने कहा कि हां हम नरक नगर में रहते हैं। शायद हमने कभी जरूर बहुत बड़ा पाप किया होगा।