बिलासपुर(करगीरोड)।डाॅ.सी.वी.रामन् विश्वविद्यालय में शोध कार्य के लिए सेंटर आॅफ एक्सीलेंस की स्थापना की गई है, जिसमें विद्यार्थियों के शोध के लिए बायोटेक्नालाॅजी की एडवांस लैब और हर्बल गार्डन तैयार हो गया है। इसे 10 एकड़ भूमि पर 5 करोड़ रूपए की लागत से स्थापित किया गया है। बायोटेक्नालाॅजी लैब में विश्व स्तरीय रिसर्च के लिए एडवांस उपरकण भी स्थापित किया जा रहा है। साथ ही विलुप्त होते जा रहे औषधीय पौधों के संरक्षण व संवर्धन के लिए हर्बल गार्डन को बनाया गया है। इसमें ग्रीन हाउस, पाॅली हाउस और टिशु कल्चर के माध्यम से पौधों को संरक्षित एवं संवर्धित किया जाएगा।
शैलेष पाण्डेय ने बताया कि इंजीनियरिंग के साथ-साथ हमने विज्ञान के क्षेत्र में भी काम करना शुरू कर दिया है। इसमें रिसर्च के क्षेत्र से ही शुरूआत की जा रही है। बीते 1 साल के जमीनी सर्वे के बाद विश्वविद्यालय में बायोटेक्नालाॅजी की एडवांस लैब और हर्बल गार्डन स्थापित करने का निर्णय लिया गया था। जिसमें विश्व स्तरीय रिसर्च किए जाने की सुविधा और अवसर जुटाने का फैसला लिया गया था। चंूकि विश्वविद्यालय वनांचल क्षेत्र में स्थापित किया गया है, इसलिए यहां जैव प्रौद्योगिकी की अपार संभावनाएं हैं। इस क्षेत्र में पाए जाने वाले हजारों प्रजातियों के औषधीय पौधे विलुप्त होते जा रहे हैं। इसलिए आज इस क्षेत्र में जैव प्रोद्योगिकी में सबसे ज्यादा रिसर्च करने की जरूरत है। इस बात को ध्यान में रखते हुए ही सेंटर आॅफ एक्सीलेंस में बायोटेक्नालाॅजी के क्षेत्र में शोध कार्य किया जा रहा है। जिसमें बायोटेक्नालाॅजी एडवांस लैब और हर्बल गार्डन तैयार किया जा चुका है। श्री पाण्डेय ने बताया कि इसमें ग्रीन हाउस और पाॅली हाउस के माध्यम से अन्य प्रदेशों में खेती किए जाने वाले फल,सब्जियों और फूलों को उगाया जा रहा है। इसके लिए अनुकुल वातावरण, समय-समय पर दवा और उर्वरक दिया जाता है।
बायोटेक पार्क व हर्बल गार्डन से शोध में नए आयाम-कुलसचिव
श्री पाण्डेय ने बताया कि प्रयोगशाला में विश्व स्तरीय अत्याधुनिक उपकरण मंगाया गया है। जो कि वर्तमान व भविष्य में होने वाले सभी वैज्ञानिक शोध स्तर को नवीन एवं उत्कृष्ट करेगा। इसमें एचपीएलसी, पीसीआर मशीन, जैलडाक, बायोकैमिस्ट्री एनालाइजर,लायोफिलाइजर,फ्लोसेंट बाइनोकुलर माइक्रोस्कोप, डबल बीम यूवी-वीज स्पेक्ट्रोफोटोमीटर, डीप फ्रिजर, काॅलम क्रोमेटोग्राफी सहित कई अत्याधुनिक उपकरण शामिल हैं। श्री पाण्डेय ने बताया कि इसमें एचपीएलसी जटिल कार्बनिक योगिकों के विषलेशण में इसका उपयोग किया जाता हैं। पीसीआर के माध्यम से एक उपयोगी डीएनए के टुकड़े की कई कापी की जा सकती हैं। डबल बीम यूवी-वीज स्पेक्ट्रोफोटोमीटर से पदार्थ में उपस्थित सूक्ष्म से सूक्ष्म रसायन की पहचान की जाती है। लायोफिलाइजर और डीप फ्रीजर के माध्यम से जर्म प्लाजम को संरक्षित किया जाता है। बाइनोकुलर माइक्रोस्कोप से जीवाणु और कवकों का सूक्ष्म अध्ययन किया जाता है। बायोकैमिस्ट्री एनालाइजर उपकरण से खून और पेशाब में पाए जाने वाले रसायन की जानकारी मिलती हैं।
एंटी कैंसर तत्व पर शोध-डाॅ.दुबे
विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ.आर.पी.दुबे ने इस संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि आज के समय में आधुनिक बीमारियों में खर्च अधिक होते हैं और सुविधाओं का भी अभाव रहता हैं। ऐसे में वनांचल के बैगा आदिवासी बीमारी के लिए औषधीय पौधों का उपयोग करते है और काफी बेहतर लाभ भी होता है। ऐसे आज सबसे ज्यादा जरूरत इस क्षेत्र में ही शोध करने की है। हर्बल गार्डन में ऐसे पौधों को शोध के लिए तैयार किया जा रहा है।
योगा,सफाई,सास्कृतिक कार्यक्रम व बौद्विक चर्चा अमने में
कोटा ब्लाक के अमने गांव में डाॅ.सी.वी.रामन् विश्वविद्यालय के एनएसएस के 50 विद्यार्थियों ने 7 दिवसीय कैंप लगाया हैं। जिसमें 28 फरवरी से 5 मार्च तक विद्यार्थी गांव में रहकर स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है। सुबह से शाम तक यहां ग्रामीणों को सभी प्रकार की जानकारी दी जा रही है। इसमें बीमारी से बचने और बच्चों की देखरेख सहित कई विषय शामिल है। सुबह गांव वालों को योग कराया जाता है। इसके बाद प्रभात फेरी निकाल कर स्वच्छता के बारे बताया जाता है। सभी लोगों को साथ लेकर विद्यार्थी सड़क,नाली,तालाब को साफ करने में मदद करते हैं। इसके बाद शाम को नुक्कड़ नायक और सांस्कृति कार्यक्रम के माध्यम से योजनाओं की जानकारी दी जा रही है। शाम को चैपाल और गुड़ी में बौद्विक चर्चा की जाती है, जिसमें विश्वविद्यालय हर विभाग के विभागाध्यक्ष क्रमावार शामिल होते है। इस तहर 7 दिनों तक यह अभियान चलाया जा रहा है। इससे गांव के लोगों को लाभ हो रहा है और वे स्वच्छता अभियान को समझ रहे हैं।