अईसन होते कातनहारी त…

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SHASHI_KONHERBSP00 संदर्भ, स्मार्ट शहरों की दूसरी सूची में भी शामिल न होना बिलासपुर का ! 00

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(शशिकांत कोन्हेर) देश के सौ स्मार्ट सिटीज की सूची में बिलासपुर का नाम शामिल कराने के लिये यहां के चंद सरकारी अधिकारी जिस तरह से हवा में हाथ-पैर मार रहे हैं, उस पर छत्तीसगढी की यह कहावत सौ टक्के खरी उतरती है कि “अईसन होते कातनहारी, त काहे फिरते…”ये ओपन सिक्रेट सरीखा ही है कि बीते दस पंद्रह सालों से बिलासपुर शहर और यहां के गली कूचों व सडकों नालियों-नालों की जैसी बदहाली है, उसे देखते हुए इसका नाम स्मार्ट शहरों की सूची में शामिल होना किसी चमत्कार से कम नही होगा । जरा सोचिये ! जिस सूची में पूणे, जयपुर, सूरत, कोच्चि और विशाखापट्टनम सरीखे टीपटाप व नामी गिरामी शहरों का नाम शामिल हो रहा हो, उसमें बिलासपुर का नाम शामिल कराने की बात सपनों की सौदागिरी से अधिक कुछ भी नहीं लगती।

                                हाल ही में जारी हुई स्मार्ट शहरों की दूसरी सूची में प्रदेश के जिस रायपुर, नया रायपुर को इसमें जगह मिली है उसके आगे आज का बिलासपुर, कहीं भी टिकता है क्या? छत्तीसगढ राज्य गठन के बाद आरंभिक ढाई तीन बर्षों में तब के कलेक्टर आर .पी .मण्डल के कार्यकाल में जरूर बिलासपुर की सडकों और चौक चौराहों को कांट-छांटकर इसे महानगर का स्वरूप देने की कोशिश शुरू हुई थी, लेकिन बाद के वर्षों में सीवरेज की मनमानी और भ्रष्टाचार ने इन कोशिशों पर पूरी तरह से पानी ही फेर दिया । जरा बताईये कि स्मार्ट शहरों की जिस दूसरी सूची में चंण्डीगढ, नया कोलकाता, रांची,लखनऊ, पणजी, इम्फाल और वारंगल सरीखे चमाचम और झकास शहरों के नाम शामिल हों ,उनमें बिलासपुर का नाम कहां शुमार हो सकता है ? यह बात जरूर है कि शहर के विधायक श्री अमर अग्रवाल जी का बहुत बडा नाम है,राष्ट्रीय स्तर पर भी भाजपा में उनका बहुत दबदबा है । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, वैंकैया नायडू से लेकर गडकरी और जेटली तक सब उन्हे जानते व मानते हैं । अब इसी आधार पर भले ही बिलासपुर को स्मार्ट सिटी की लिस्ट में पिछले दरवाजे से जगह मिल जाये । लेकिन अभी तक जारी हुई स्मार्ट सिटीज की दो सूचियों में जैसे-जैसे और जिस तरह के शहरों का नाम शामिल हुआ है, उसे देखते हुए तो बिलासपुर के लिये अभी दिल्ली दूर ही लगती है। क़हते हैं न कि, ये मुंह और मसूर की दाल ….।इस मामले में कुछ वैसा ही बिलासपुर का हाल ….।

                            वैसे तो कायदे से बिलासपुर को ही छत्तीसगढ की राजधानी बनना था । नांदघाट और उसके के चारों ओर सरगांव से सिमगा तक की जगह भी तय हो रही थी । वहां पानी-जमीन सब भरपूर था । फिर वहां से बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग, मुंगेली और राजनांदगांव, कवर्धा सब समान दूरी पर पड़ते । लेकिन इन सबके बावजूद छत्तीसगढ के पहले मुख्यमंत्री बने बिलासपुर के ही श्री अजीत जोगी ने राज्य की प्रस्तावित नई राजधानी के मामले में बिलासपुर जिले की सरहद पर स्थित नांदघाट को तिलांजलि देकर रायपुर को नई राजधानी बनवा दिया और उसके बाद से रायपुर की तुलना में विकास की दौड में बिलासपुर का पिछडऩा एक बार जो शुरू हुआ तो आज तक पिछड़ता ही जा रहा है ।आज इस शहर की जो हालत है, यहां की सडकें जिसतरह सीवरेज की भेंट चढकर जर्जर हो चुकी हैं ।पूरे शहर के नाले- नालियों में गंदगी का बाहरमासी जाम लगा हुआ है । जिला कलेक्टर द्वारा हर सप्ताह ली जाने वाली टाईम लिमिट या कहें टीएल की बैठकों के बावजूद यहां कोई भी योजना या निर्माण कार्य तय समय-सीमा में कभी पूरा नहीं होता ।

                            वहीं रखरखाव के मामले में यहां का हाल और भी खराब है । मंत्री अमर की पहल पर सौदर्यीकरण के जितने भी काम यहां किये गये, सबके सब रखरखाव के अभाव में नष्ट हो गये य़हां के मुक्तिधाम, अज्ञेयनगर और मधुबन सरीखे श्मसान घाटों को चकाचक कर दिया गया था, ट्रेफिक पार्क, जोरा तालाब, हेमुनगर व तारबाहर के तालाबों का सौदर्यीकरण कर झकास कर दिया गया, लेकिन रखरखाव की नाउम्मीदी ने उन्हे एक बार फिर उजाड बना कर रख दिया । अब तो हालत यह है कि रेलवे स्टेशन से उतरकर शहर की ओर आने वालों को तारबाहर व तोरवा या जगमल चौक से आगे बढते ही बिलासपुर की दुर्दशा, यहां का सच खुद ब खुद दिखने लगता है । मजे की बात यह है कि जो नगर निगम और अधिकारी, पदाधिकारी , इस शहर की बदहाली के लिये जिम्मेदार हैं, वहीं अधिकारी और नेता, बिलासपुर का नाम स्मार्ट सिटी में शामिल कराने के लिये हांथ पैर मारते नजर आ रहे हैं । अफसोस कि इस शहर ने अपने सिर पर बिठाकर जिन अहसानफरोश नेताओं और अफसरों को रातों रात स्मार्ट बना दिया उनकी ही करतूतों ने आज बिलासपुर की सूरत के साथ ही उसकी स्मार्टनेस का ऐसा बाजा बजा डाला कि अब इसे देश के सौ स्मार्ट शहरों में अपना नाम शामिल कराने के लिये दर-दर की ठोकरें खाना और दिल्ली वालों के आगे गिड़गिड़ाना पड़ रहा है ।

00 आखिरी बात हौले से 00

              यह सवाल आप पूछ सकते हैं कि जब वाकई साफ-सफाई समेत कई मोर्चों पर शहर की हालत इतनी ही खराब है तो फिर चंद अधिकारी बिलासपुर का नाम देश के स्मार्ट सिटिज की सूची में शामिल करने के नाम पर क्यों शोर मचा रहे हैं । तो चर्चा है कि बिलासपुर को इसमें शामिल करने के लिये एक अभियान छेडऩे के नाम पर चार पांच करोड रूपये खर्च किये जा रहे हैं । कहीं ऐसा तो नहीं है कि शहर के कई “चिंदी चोरों” की नजर इस रकम की बंदरबांट पर लगी हुई हैं और शायद इसीलिये वे स्मार्ट सिटी के नाम पर हुआ-हुआ का शोर मचा रहे हों …?

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