अचानकमार प्रबंधन का खत्म हुआ पानी…जानवरों के हिस्सा डकार गए अधिकारी…गर्मी खत्म हो रही…सौंसर में नहीं पहुंचा पानी

BHASKAR MISHRA
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मुंगेली/ बिलासपुर—अचानकमार टाईगर रिजर्व में वन्यप्राणियों के लिए पानी के माकूल इंतजामात की धूप में तपती यह तस्वीरें कागजी दावों पर किसी बदनुमा धब्बे से कम नहीं हैं । गर्मी के मौसम में वन्यप्राणियों को पानी के संकट से बचाने के लिए विभागीय अफसरों के निर्देश पर कइयों सौंसर बनाए गए ताकि उनमें पानी भरकर जानवरों के साथ साथ पक्षियों की प्यास बुझाई जा सके, अफ़सोस ऐसा कुछ हो ना सका । सौंसर सूखे पड़े हैं, देखकर यकीन से कहा जा सकता है कि निर्माण के बाद से आज तलक उसमें किसी भी माध्यम से पानी नहीं भरा गया । 
             
        हर साल गर्मी के मौसम में जंगल के भीतर पानी का संकट मुंह बाये खड़ा रहता है, पहाड़ी नाले और क्षेत्र से गुजरने वाली मनियारी नदी करीब करीब सूख जाती है । समस्या सालों पुरानी है, अफसर बदलते रहे मगर इस भीषण जल संकट का स्थाई हल नहीं निकल सका । समय समय पर पानी के इंतजाम को लेकर विभाग ने योजनाएं बनाई, कुछ नए काम हुए तो कुछ पुराने कामों पर भ्रष्टाचार की सीमेंट कांक्रीट और रेत का मिश्रण लेप दिया गया ।
       
सवाल इस बात का नही हैं कि वन्यप्राणियों की प्यास बुझाने के नाम पर कितने लोगों को फायदा पहुंचाया गया, मूल सवाल ये है कि आखिर उन इंतजामों का उद्देश्य इस गर्मी में पूरा क्यूं नही हो सका जो वन्यजीव का गला तर करने के लिए बनाए गए ?  पानी का टैंकर उन सभी सौंसर की तपिश और वन्यप्राणियों की प्यास बुझाने में क्यों नाकाम रहा ?  जवाब यकीनन असंवेदनशीलता और वन्यप्राणियो के प्रति उपेक्षा का भाव होगा । यकीन मानिए,  गर्मी में पानी के लिए विभाग के द्वारा बनवाया गया सभी सौंसर पानी की बाट जोहता रह गया और विभागीय अमला प्यास बुझाने के दावों के बीच केवल नए निर्माण की प्राथमिकता में लगा रहा । बाहरी लीपापोती, चकाचौंध के बीच जंगल के भीतर वन्यप्राणी पानी की तलाश में भटकते नजर आए । 
                 बड़ी हिम्मत का काम है किसी की प्यास बुझाने का इंतजाम करके उसे प्यासा छोड़ देना, जवाब आज नही तो कल देना ही होगा मगर इस भागदौड़ में तात्कालिक लाभ का टीका माथे पर लगाने वालों को कल की फिक्र नहीं सताती । कल 14 जून को हमने अचानकमार टाईगर रिजर्व के रूट नंबर एक में सफारी की । भीषण गर्मी में जंगल की खूबसूरती के बीच आंखें वन्यजीव को तलाशती अचानकमार, आमानाला से सराईपानी होते हुए चुरही तालाब की ओर बढ़ी । जल्दा,  बिंझरा नाला होते हुए सफारी तय वक्त पर छपरवा होते हुए अचानकमार में खत्म हो गई । इस बीच कइयों सौंसर सफारी मार्ग पर दाए बाएं नजर आए । कई सौंसर ऐसे थे जिनके पास कैमरा ट्रैप भी लगा हुआ है । इन सौंसर के पास कैमरा ट्रैप लगाने का मूल उद्देश्य यह रहा कि कोई भी वन्यजीव अगर वहां पानी पीने आता है तो उसका फोटो रिकार्ड विभाग के पास होगा । अफसोस पानी की तलाश में न सिर्फ जानवर भटकते दिखे बल्कि सूखे सौंसर अपनी चमक बिखेरते इंतजामअलियों का चेहरा देखने बेताब थे । 
            बेतरतीब तरीके से बनाए गए सौंसर इस गर्मी में भी प्यासे रह गए, मानसून अगर समय पर दस्तक दे गया तो कुछ ही दिनों बाद पानी के संकट से वन्यजीव राहत पा लेंगे मगर इन सब के बीच एक बात बड़ी ईमानदारी से कही जा सकती है कि तमाम कोशिशें और बातें केवल बातों बातों में रह गईं । धरातल पर भागदौड़ करते अफसरों और मातहत कर्मचारियों की कर्तव्यनिष्ठा का सच हम नही ये सौंसर बया कर रहें हैं । साहब ये पाप है, इस पाप से सबको बचना चाहिए । अंत में फिर से वही बात …. शर्म तुमको मगर आती नहीं  !”
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