पुरानी पेंशन योजना का एलान….खुशियों के बीच अपने ही सवालों से क्यों घिरे हैं…शिक्षाकर्मी…?

Chief Editor
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रायपुर। छत्तीसगढ़ में सरकार की ओर से सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना लागू किए जाने का व्यापक असर हुआ है। कर्मचारियों – अधिकारियों ने इसे एक बड़ी सौगात के रूप में देखा है और सभी ने इस ऐलान के बाद खुशियां मनाई है। सभी मान रहे हैं कि यह कर्मचारियों के लिए एक बड़ी घोषणा है और इसके जरिए छत्तीसगढ़ की मौजूदा सरकार ने जन घोषणा पत्र में किया गया अपना एक बड़ा वादा पूरा किया है। लेकिन इस ऐलान के बाद छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों में काम करने वाले शिक्षकों के मन में अभी भी कई तरह के सवाल हैं। खासतौर से शिक्षाकर्मी से संविलियन के बाद शिक्षाकर्मी से शिक्षक बने सरकार के कर्मचारियों के मन में यह शंका है कि उन्हें पुरानी पेंशन योजना का पूरा फायदा मिल पाएगा या नहीं ….? ऐसे शिक्षकों की संख्या एक लाख से ऊपर है। उनके सामने सबसे बड़ा प्रश्न यही है की 2018 में संविलियन के पहले उनकी सेवाओं की गिनती प्रथम नियुक्ति दिनांक से की जाएगी या नहीं…..? इस सवाल की पैदाइश इस वज़ह से हुई हा, चूँकि फिलहाल शिक्षाकर्मियों की नियुक्ति संविलियन के बाद से ही मानी जा रही है ।

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जहां तक पेंशन का सवाल है मोटे तौर पर प्रावधान यही है कि 33 साल की सेवा के बाद किसी भी कर्मचारी को पेंशन की पात्रता होती है। 33 साल की सेवा पूरी करने के बाद ही उन्हें पूर्ण पेंशन मिल पाता है। जो कि  उनके मूल वेतन का 50 फ़ीसदी  होता है। छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में ऐसे शिक्षक हैं जिन्होंने अविभाजित मध्यप्रदेश के जमाने से 1998 से शिक्षाकर्मी के रूप में अपना कैरियर शुरू किया था और अब तक अपनी सेवाएं दे रहे हैं। संविलियन के पहले उन्हें पंचायत विभाग का कर्मी माना जाता रहा है। लेकिन जब सरकार ने 2018 में उनके संविलियन का फैसला किया तो अब तक की स्थिति में उनके सभी आर्थिक देयकों का निर्धारण 2018 से ही किया जा रहा है। इसका मतलब है कि 2018 के पहले उनकी सेवाओं को शून्य माना गया है। भले ही उन्होंने बरसों बरस तक अपनी सेवाएं दी है ।

जाहिर तौर पर शिक्षाकर्मियों के दिमाग में यह सवाल है कि यदि यही स्थिति बनी रही और  प्रथम नियुक्ति दिनांक से उनकी सेवाओं की गणना नहीं की गई तो उन्हें पेंशन का पूरा लाभ नहीं मिल पाएगा और यह घोषणा उनके लिए एक छलावा मात्र हो जाएगी । वैसे घोषणा के मुताब़िक तो हरएक कर्मचारी को पुरानी पेंशन योज़ना का लाभ मिलेगा। लेकिन सर्विस के साल ( सेवाकाल ) कम होने से आनुपातिक आधार पर ही पेंशन की गणना होगी। तब कम सेवाकाल की वज़ह से शिश्राकर्मियों को नुक़सान उठाना पड़ सकता है। सीधी सी बात है कि 1998 से काम कर रहे कोई भी एलबी संवर्ग शिक्षक यानी शिक्षाकर्मी  अपने रिटायरमेंट तक 35 साल की सेवा पूरी नहीं कर पाएंगे। मिसाल के तौर पर यदि एक शिक्षा कर्मी ने 1998 में अपनी सेवा की शुरुआत की थी….। उस समय उसकी उम्र करीब 23 साल रही होगी । 2017 तक उसने 19 साल की सेवा पूरी कर ली है और यह समय आते-आते उसकी उम्र करीब 42 साल हो चुकी है। आज की स्थिति में जब रिटायरमेंट की आयु 62 साल है औऱ 1998 से गिनती की जाए तो उसकी सेवा केवल 20 साल बची है। अब यदि पेंशन मामले में सेवा की गणना पूर्व सेवा को शून्य मानक़र 2018 से की जाती है तो  रिटायरमेंट के समय 40 साल की सेवा पूरी करने के बाद भी वे पुरानी पेंशन योजना का पूरा लाभ नहीं ले सकेंगे। क्योंकि वह यदि 2038 में सेवानिवृत्त होगा तो उसकी सेवा केवल 20 वर्ष ही मानी जाएगी। यहाँ फिर से ध्यान दिलाना जरूरी है कि पुरानी पेंशन स्कीम के पूर्ण लाभ के लिए 33 साल की सेवा जरूरी है । रिटायरमेंट के समय दी जाने वाली ग्रेच्युटी की पात्रता भी 33 साल की सेवा के बाद ही मिलती है। कुछ लोग ऐसा भी मान रहे हैं कि 33 साल से कम सेवा की वज़ह से पेंशन की गणना में यह भी मुमकिन है कि ज्यादातर  शिक्षकों के लिए न्यू पेंशन स्कीम ही अधिक फायदेमंद हो सकता है।

हालांकि अभी पुरानी पेंशन योजना की घोषणा हुई है और इसे लेकर नियमावली तैयार नहीं हुई है  लेकिन यदि इस पुरानी पेंशन स्कीम के प्रावधानों को जस का तस लागू किया गया तो एल बी शिक्षक संवर्ग के लिए और एलब़ी शिक्षक संवर्ग के लिए किसी प्रकार का संशोधन नहीं किया गया तो उनके पूर्व सेवा की गणना नहीं होने की स्थिति में पुरानी पेंशन स्कीम इन कर्मचारियों के लिए लॉलीपॉप साबित होगी। जानकार यह भी मानते हैं कि न्यू पेंशन स्कीम के मुकाबले उन्हें नुकसान भी हो सकता है। वैसे शिक्षा कर्मियों को अपना पुराना इतिहास याद है कि उन्हें आज तक बिना आंदोलन या सड़क की लड़ाई लड़े कुछ भी हासिल नहीं हुआ है। अब देखना है की शिक्षाकर्मी से शिक्षक बने इन कर्मचारियों के सामने खड़े इस सवाल का जवाब उन्हें कब तक मिल पाता है।।

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