हार्ट मरीजों को अपोलो का तोहफा…डॉ.श्यामल की टीम ने किया कमला…पहली बार प्रदेश में बिना तार का लगाया पेस मेकर

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर–छत्तीसगढ़ राज्य में पहली बार बिना वायर वाला पेसमेकर लगाया गया। यह करामात अपोलो हॉस्पिटल्स के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एम पी सामल टीम कर दिखाया। प्रेसवार्ता कर सामल और उनकी टीम ने बताया कि नई तकनिकी बहुत ही कारगार है। पेस मेकर को दुनिया की सबसे पुरानी और विश्वनीय कम्पनी ने बनाया है। पेस मेकर का उपयोग 60 से अधिक उम्र वालों के लिए लाभदायक और विश्वनीय है।
अपोलो की टीम ने प्रदेश में पहली बार मरीज के हृदय में सफल लीड लेस पेसमेकर लगाकार प्रदेश के लिए रिकार्ड बनाया है। ह्रदय में लगाया जाने वाला नई तकनिकी का पेसमेकर में तार भी नहीं है। विशेषज्ञों की टीम ने पत्रकारों को बताया कि लीड लेस पेसमकर बिना चीर फाड़ के पैर की नस के जरिए हृदय तक पहुंचाया जाता है। छत्तीसगढ़ का पहला बिना वायर का पेसमेकर इंप्लांटेशन होने की वजह से यह प्रदेश के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है।
अपोलो ने उठाया क्रांतिकारी कदम
अपोलो हॉस्पिटल्स बिलासपुर के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एमपी सामल ने बताया कि पपारंपरिक कृत्रिम पेसमेकर से जुड़ी समस्याओं से बचने के लिए ही वायरलेस पेसमेकर लगाए जाते हैं। लीडलेस पेसमेकर पारंपरिक पेसमेकर से 90 प्रतिशत यानि बहुत ही छोटा होता है। लीड लेस पेसमेकर बहुत ही छोटा होता है। सीधे हृदय में भेजा जाता है।संबंधित मरीज की छाती में चीरा लगाने की भी जरूरत नहीं होती है।
डॉ सामल ने जानकारी दिया कि मरीज देव आशीष नंदी की उम्र 66 वर्ष है। इमरजेंसी में पल्स कम ज्यादा होने और पेट को लेकर शिकायत थी। उच्च और निम्न रक्तचाप की शिकायत पर उन्हें अपोलो में भर्ती किया गया। जांच पड़ताल के दौरान पता चला कि उन्हें पेसमेकर लगाना जरूरी है। देवाशीष ने पहला सवाल किया कि कोई ऐसा पेसमेकर होता है जिसमें वायर ना हो। उन्हें नई तकनीक के बारे में बताया गया।
देवाशीष की सहमति से प्रदेश में पहली बार सफलतापूर्वक बिना वायर वाला पेसमेकर लगाया गया। इस दौरान देवाशीष नंद ने खुशी जाहिर करते हुए कहा डॉक्टर सामल और उनकी टीम बधाई के पात्र हैं। अब उन्हें सब कुछ सामान्य महसूस हो रहा है।
 
 
चीरफाड़ की जरूरत नहीं..तार भी नहीं
डॉक्टर एमपी सामल ने बताया कि संबंधित मरीज लिडलेस पेसमेकर लगाए जाने के बाद पूरी तरह से स्वस्थ है। वायरलेस पेसमेकर लगाने की प्रक्रिया एंजियोग्राफी की तरह होती है। मरीज की जांघ के पास एक छोटा छेद किया जाता है । इसके बाद लीडलेस पेसमेकर शरीर मैं प्रवेश कराया जाता है। और मशीन के सहारे पेस मेकर को मरीज के हृदय में ही प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। पूरी प्रक्रिया में जरा सा भी रक्तस्राव नहीं होता। इस तकनीक को अपनाने वालों की संख्या में इजाफा होना निश्चित है। छत्तीसगढ़ में पहला लिड लेस पेसमेकर इंप्लांटेशन से अपोलो परिवार में खुशी है। डॉक्टर ने बताया कि यह सब टीम के संयुक्त प्रयास से संभव हुआ है। इस अभियान में खासकर वरिष्ठ सीटीवीएस सर्जन डॉक्टर संजय जैन और कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर मिलन सतपति का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
 
 
खर्च ज्यादा लेकिन जीवन आसान
बिना वायर वाले पेसमेकर की लाइफ अमूमन 10 वर्ष की होती है। नवीन तकनीक होने के कारण इसमें खर्च थोड़ा ज्यादा आता है। लेकिन हम इससे होने वाले फायदों को देखते हुे कहा जा सकता है कि यह विशिष्ट तकनीक है जो मरीज की दैनिक दिनचर्या को सकारात्मक रूप से बदल देती है।
 
 
अब महानगरों से छुटकारा
अपोलो हॉस्पिटल बिलासपुर के यूनिट हेड डॉ मनोज नागपाल ने इस उपलब्धि पर खुशी जाहिर करते हुए कहा नवीन तकनीकों को मरीजों तक पहुंचाना अपोलो की परंपरा रही है। वायरलेस पेसमेकर इंप्लांटेशन प्रदेश में मील का पत्थर साबिल होगा। अब राज्य के मरीजों को अत्याधुनिक ट्रीटमेंट के लिए महानगरों की ओर रुख करने की जरूरत नहीं है। इसके लिए डॉ महेंद्र प्रसाद सामल, डॉ संजय जैन एवं डॉक्टर मिलन सतपथी का कार्य विशेष रूप प्रशंसनीय हैं।
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