(गिरिजेय)छत्तीसगढ़ में भानुप्रतापपुर विधानसभा उफचुनाव के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आए हैं। जहां से कांग्रेस उम्मीदवार श्रीमती सावित्री मंडावी ने जीत हासिल की है। इस तरह 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद यह लगातार पांचवा उपचुनाव था, जिसमें कांग्रेस को फतेह मिली और प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव के कई मायने हैं। जिसमें अहम यह है कि 2023 के विधानसभा चुनाव के पहले पॉलीटिकल नेट प्रैक्टिस की तरह हुए इस चुनाव में ने सभी के हिस्से में कुछ न कुछ सबक भी आए हैं।
भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव की एक खासियत यह भी रही कि छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के अध्यक्ष अटल श्रीवास्तव की अगुवाई में बिलासपुरिया टीम ने लगातार तीसरे उपचुनाव का सफल मैनेजमेंट कर एक बार फिर सीएम भूपेश बघेल का भरोसा जीतने में कामयाबी हासिल की।
भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट के उप चुनाव का ऐलान होने के बाद से ही राजनीतिक प्रेक्षकों की नजर मैदान पर रही है। आमतौर पर माना जाता है कि उपचुनाव में सत्ता दल को मदद मिलती है। क्योंकि यह उपचुनाव कांग्रेस के विधायक रहे मनोज मंडावी के निधन की वजह से कराए जा रहे थे , इस लिहाज से सहानुभूति वोट मिलने की भी उम्मीद की जा रही थी । फिर भी इस उपचुनाव को सियासी नजरिए से देखने की एक वजह यह भी थी कि अगले साल यानी 2023 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। इसके पहले भानूप्रतापपुर उपचुनाव में ऐसा मुकाबला हो रहा था , जिसे बड़े मैच में उतरने से पहले नेट प्रैक्टिस के रूप में देखा जा सकता है।
लोग यह भी देख रहे थे कि इस चुनाव में कांग्रेस के कामकाज का मूल्यांकन होगा। वहीं प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी में हाल के दिनों में हुए बदलाव की टेस्टिंग भी हो जाएगी। आने वाले साल के विधानसभा चुनाव को देखते हुए भी भानुप्रतापपुर का उपचुनाव महत्वपूर्ण माना जा रहा था। लिहाजा लोगों की नजर इस उपचुनाव के नतीजे पर टिकी हुई थी। इस कोण से देखें तो भानुप्रतापपुर में जीत के साथ ही कांग्रेस को यह दावा करने का मौका मिल गया है कि विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं ने प्रदेश सरकार के कामकाज पर मुहर लगा दी है। यही स्थिति कांग्रेस के लिए संतोषजनक कहीं जा सकती है।
खास बात यह भी है कि 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद भानुप्रतापपुर में पांचवा उपचुनाव था, जिसे कांग्रेस ने जीत लिया। इसके पहले बस्तर के बीजापुर, दंतेवाड़ा और फिर मरवाही, खैरागढ़ विधानसभा सीट के उपचुनाव में भी कांग्रेस को कामयाबी मिली थी। इत्तेफाक की बात यह भी है कि आदिवासियों के लिए रिजर्व सीट पर यह चौथा उपचुनाव था। जिसमें कांग्रेस कामयाब रही।
इस चुनाव के लिए भी सीएम भूपेश बघेल ने ऐसी रणनीति बनाई थी जिससे जीत हासिल की जा सके। भानुप्रताप पुर, चारामा और दुर्गुकोंदल को अलग-अलग जोन में बांटकर प्रमुख – अनुभवी नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई थी। चारामा में छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के अध्यक्ष अटल श्रीवास्तव की अगुवाई में बिलासपुरिया टीम ने कमान संभाल रखी थी।
उनके साथ अभय नारायण राय, तैयब हुसैन, समीर अहमद बबला, पंकज तिवारी व पूरी टीम के साथ मोर्चा संभाल रखा था और सीएम भूपेश बघेल का भरोसा फ़िर से जीतने में कामयाब़ रहे। अटल श्रीवास्तव की यह टीम उपचुनाव मेनेज़मेंट में एक्सपर्ट हो चुकी है। इस टीम को सीएम ने पहले भी मरवाही और खैरागढ़ में कमान सौंपी थी । जहां उन्होने कामयाब़ी के झंडे गाड़े थे । एक बार फ़िर से इनके हिस्से में कामयाब़ी दर्ज़ हुई है। इसी तरह भानुप्रतापपुर में गिरीश देवांगन और रामकुमार अग्रवाल ने मोर्चा संभाल रखा था। आदिवासी बहुल इलाके में मंत्री कवासी लखमा और अनिला भेड़िया को जिम्मेदारी दी गई। इस इलाके में कलार और सिन्हा समाज के रूप में ओबीसी तबके की भी आबादी है। वहां ओबीसी नेताओं को संपर्क के लिए भेजा गया था। खास बात रही कि इस चुनाव में आदिवासी समाज ने बस्तर इलाके के मंत्री कवासी लखमा पर भरोसा जताया और उनक़ी साख़ मज़बूत हुई है।
कवासी लख़मा ने आदिवासी आरक्षण के मुद्दे पर खुलकर अपनी बात कही थी और यह ऐलान भी कर दिया था कि 32 फ़ीसदी आरक्षण नहीं मिलने पर वे राजनीति से संन्यास ले लेंगे। उनके इस खुले पन का भी असर आदिवासी समाज के बीच दिखाई दिया और कवासी लखमा आदिवासी समाज के बीच से भरोसेमंद नेता के रूप में उभर कर सामने आए। कांग्रेस की इस रणनीति का असर हुआ की पार्टी ने यह उपचुनाव जीत लिया ।
उधर बीजेपी ने पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट की कमान सौंपी थी। पार्टी के नेता चुनाव के दौरान सक्रिय रहे। लेकिन बीजेपी उम्मीदवार ब्रह्मानंद नेताम पर लगे आरोपों की वजह से चुनाव के दौराऩ पार्टी के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई थी। बयानों के जरिए बीजेपी ने इसका मुकाबला किया। बीजेपी ने कुछ महीने पहले छत्तीसगढ़ संगठन में जो बदलाव किए हैं उसकी परीक्षा भी इस चुनाव में हो रही थी। जाहिर सी बात है कि पार्टी की कमान संभाल रहे नेताओं को दिल्ली तक यह मैसेज भेजना था की नई टीम चुनाव जीतने का माद्दा रखती है। बीजेपी हालांकि 2018 के बाद लगातार पांचवा उपचुनाव हार गई । लेकिन उसके लिए संतोष की बात है की बीच चुनाव गंभीर आरोप के बावजूद ब्रह्मानंद नेताम को भानुप्रतापपुर इलाके में वोट कहीं कम नहीं मिले। हालांकि भाजपा को हार का सामना करना पड़ा । लेकिन भाजपा इस इलाके में अपने पुराने वोट बरकरार रखने में करीब-करीब कामयाब रही।
भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट का के चुनाव का सबक कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए यही है कि आदिवासी समाज को अपने साथ जोड़े रखने के लिए उनके मुद्दों पर गौर करना पड़ेगा। दरअसल इस उपचुनाव में अकबर राम कोर्राम सर्व आदिवासी समाज के उम्मीदवार थे। पुलिस विभाग में वरिष्ठ अधिकारी के पद से रिटायर हुए अकबर राम को इस चुनाव में करीब 28,000 वोट मिले हैं। जो 16 फ़ीसदी है। लोगों ने चुनाव के दौरान वरिष्ठ आदिवासी नेता अरविंद नेताम के इस बयान पर भी गौर किया था। जिसमें उनका कहना था कि भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव में जीत हार से अधिक अहम् यह है कि इस बहाने सर्व आदिवासी समाज का टेस्ट हो रहा है। सर्व आदिवासी समाज को मिले वोट से 2023 की रणनीति बनाई जा सकेगी। इस लिहाज से सर्व आदिवासी समाज को मिले वोट संकेत दे रहे हैं कि 2023 के चुनाव में आदिवासी समाज छत्तीसगढ़ की सियासत पर एक नई इबारत लिख सकते हैं। जिसकी बुनियाद भानुप्रतापपुर उपचुनाव में रखी गई है । राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि कांग्रेस ने भले ही आदिवासी नेताओं को अहमियत दी हो। लेकिन बीजेपी में कई नेता अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं ।
लेकिन उन्हें सर्व आदिवासी समाज के रूप में एक मंच मिल सकता है। अरविंद नेताम और सोहन पोटाई जैसे नेता सर्व आदिवासी समाज के अगुआ के रूप में देखे जा रहे हैं। संसद में नुमाइंदगी कर चुके यह नेता अगर बस्तर और फिर सरगुजा, जशपुर, रायगढ़ इलाके में भी आदिवासी समाज को एक साथ जोड़ने में कामयाब रहे तो 1 साल बाद चुनाव में इसकी झलक दिखाई दे सकती है। इस लिहाज से भानुप्रतापपुर उपचुनाव के नतीजे कांग्रेस भाजपा और सर्व आदिवासी समाज को भी कुछ न कुछ सबक दे गए हैं। अब यह आने वाला वक्त बताएगा कि अपने हिस्से क़ा सबक कौन – किस तरह बूझ रहा है।