CG NEWS: हिंदी दिवस पर विशेषः हिंदी का वर्तमान एवं भविष्य- डॅा. पालेश्वर प्रसाद शर्मा

Chief Editor
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CG NEWS: मुझे उस संकल्प दिवस की याद आती है, जिस दिन जंबू द्वीप के भारत वर्ष में रावी के तट पर राष्ट्र भाषा बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया । इन राजनेताओं में उन पुरूषों का नाम है, जिनकी मातृभाषा हिंदी नहीं रही – राजा राममोहन राय, बाल गंगाधर तिलक, महर्षि दयानंद सरस्वती, बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय, सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गाँधी, चक्रवती राजगोपालाचार्य तथा काका कालेलकर आदि हैं। राष्ट्रीय चेतना, अस्मिता से आप्लावित हिन्दी ही संघर्ष की शक्ति और साम्राज्यवादी अंग्रेजी सत्ता से मुक्ति की भाषा बनी।

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हिंदी इस महादेश की ऐसी गंगा है, जिसमें अनेक विभाषाओं, भाषाओं की सरिताएँ समा जाती हैं । आज हिंदी बोलने वाले पचास करोड़ से अधिक हैं, आज हिंदी के समाचारपत्र देश के दस शिखर के पत्रों में पांच तो हैं ही, और सोलह करोड़ हिंदी समाचार प्रतिदिन छपते हैं, उन दस पत्रों में अंग्रेजी अखबार का नंबर आठवाँ है । आज देश में अंग्रेजी का विरोध नहीं, देशी राष्ट्र भाषा का  विरोध होता है – सच कहा जाये तो हिंदी मातृभाषा है, तो शेष भाषाएं मौसी भाषाएं हैं । दीपक  का संघर्ष अंधकार से है, किसी आंधी या तूफान से नहीं, गाय पूजक प्रदेशों के बाहर हिंदी के प्रति असहिष्णुता बढ़ रही है।

भारत ही संभवतः संसार में ऐसा देश हे, जहां राष्ट्र भाषा के बिना याने अंग्रेजी से काम चल जाता है । यह दुर्भाग्य ही है कि 75 वर्षों में हिंदी राष्ट्र भाषा नहीं बन पायी । यद्यपि हिंदी में क्षमता है, तथापि एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री ने चेन्नई जाकर राष्ट्रभाषा को गुड-गोबर कर दिया, तो एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री ने राष्ट्र संघ में हिंदी का झंडा फहराया था।

एक बात कहूँ – मैकाले का भूत जीत गया, और महात्मा गाँधी का प्रेत हार गया और मजे की बात यह है कि इस प्रेत ने जिसके सिर पर हाथ रखा, वे सब भी अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए, प्रधानमंत्रियों की सूची आपके सामने है।

मुझे पीड़ा होती है, कि मेरे देश की गंगा और देह की गंगा… दोनों प्रदूषित हो गई है । काका हाथरसी ने लिखा है –

“आओ बेटे रूस भली आई आजादी ।

इंगलिश हुई रानी, हिंद में हिंदी बांदी ।।“

यहाँ जितने पादरी आये, उन्होंने अपने धर्म के प्रचार के लिए हिंदी का सहारा लिया, एक पादरी की पंक्ति सुनिये … हिंदी है एक तगड़ी भाषा …

“अंधकार की कलम तोड़कर….।

पिछले जन की अगड़ी भाषा

बीच सड़क पर झगड़ी भाषा ।।“

इसीलिये हिंदी के विरोध में लोग रेल, बस, पोस्ट आफिस जलाते हैं…। आज अपने देश में लगभग 450 पत्र-पत्रिकायें प्रकाशित होती हैं, जिनमें 25 पत्रिकाएँ विदेशों में नियमित रुप से प्रकाशित हो रही हैं । किन्तु हमारे देश में – संघ लोक सेवा आयोग द्वारा संचालित आई.ए.एस. को छोड़कर शेष सभी परीक्षाएँ अंग्रेजी माध्यम से होती है…. । ऐसा नही है, कि हिंदी में वैज्ञानिक तकनीकी शब्दावली नहीं है…. शासन द्वारा नियुक्त विद्वानों ने दस लाख ऐसे शब्दों का कोश बना दिया है…. हिंदी के शब्द कोश में संभवतः सात-आठ लाख शब्द हैं । महाकवि तुलसीदास ने अपनी रचनाओं में लगभग एक लाख शब्दों का खजाना दिया है और हमारे प्रदेश की राज्य भाषाएँ, लोक भाषाएँ लगातार शब्दों का भंडार बढ़ाती जाती जा रही हैं…। किन्तु…परन्तु… हमारी सरकार-छप्पन कमरों की रानी के हस्ताक्षर से अंग्रेजी … को जीवन दान मिल रहा है । मुझे भय लग रहा है कि आगामी बीस वर्षों में हिंदी का स्थान अंग्रेजी ले लेगी….. गाँव गाँव, नगर नगर, डगर-डगर में अंग्रेजी का बोल बाला है…। गाँव का बालक बोलता है – ‘काउ लेट्रिन कर रही है। विज्ञापन में हिंदी की जगह हिंगलिश का प्रयोग केवल पैसे के लिए किया जा रहा है। बाजार वाद के कारण हिंदी लोकप्रिय हो गई है । इसलिये क्षोभ में रघुवीर सहाय लिखते हैं …..

‘‘हमारी हिंदी दुहाजू की…..।

नई बीबी है…।

बहुत बोलने वाली…

बहुत खाने वाली …।

बहुत सोने वाली….

गहने गढ़ाते जाओ…

सर पर चढ़ाते जाओ ।।

आज हिंदी की समृद्धि और संघर्ष के लिए विद्वानों की नहीं विद्यावानों की आवश्यकता है, क्योंकि ये विद्वान विपथगामी हो जाते हैं…. । भक्तिकाल में रीतिकाल पढ़ाने लगते हैं… और आँखों से… नानवेज…याने माँसाहार परोसने लगते हैं। मेरे देश में तो हिंदी के कुछ अध्यापकों की दृष्टि में सब आचार है… केवल सदाचार नहीं है । इसलिये आचार्य वही है जो आचरण से पवित्र हों और उन्हीं के चरण स्पर्श करना चाहिये…. मेरा कथन है, कि संत और साहित्यकार दो ही सच बोलते हैं ….। ये दोनों ब्रम्ह और अक्षर ब्रम्ह के उपासक हैं… ।एक तेजस्वी हैं तो दूसरा मनस्वी… और कवि तथा विधाता दोनों मन से सृष्टि करते हैं… ।शेष तन से … । इसीलिये शायद राजनेता माननीय होते हैं और साहित्यकार सम्माननीय… ।भभूति और राख में क्या अंतर है ? हूव्य और कव्य में क्या अंतर है ….. ‘‘एक मुट्ठी राख है और चौकीदार हूँ मैं …. ‘‘सामान्य रुप से हमारी हिंदी में क्या विशेषता है?

  1. हिंदी सर्वथा सरल, सहज भाषा है ।
  2. यह सर्वश्रेष्ठ – राजभाषा है ।
  3. उन्नत भाषाओं में सर्वाधिक व्यवस्थित भाषा है ।
  4. एक मात्र ऐसी भाषा – जो नियम से बंधी है, अपवाद एकदम कम है।
  5. सच्चे अर्थ में वैश्विक भाषा बनने की क्षमता है।
  6. देव नागरी लिपि… वैज्ञानिक है।
  7. हिंदी को संस्कृत शब्द संपदा मिली है … नवीन शब्द रचना का                     सामर्थ्य है… 40 धातु से अनेक देशी शब्द भी बनते हैं…
  8. हिंदी बोलने वाला तथा समझने वाले 60 करोड़ से अधिक हैं।
  9. आम जनता से जुड़ी भाषा है… पूरे देश में… पंडे, पुरोहित, आम दुकानदार, पर्यटकों से व्यापार में, इसी भाषा का प्रयोग करते हैं….
  10. स्वतंत्रता के सेनानियों के पावन रक्त से सिंचित…. रक्त कमल है,                        देश प्रेम के लिये उपयुक्त भाषा… वंदे मातरम् एक उदाहरण है ।

“गोरी सोवै सेज पर, मुख पै डारे केस ।

चल खुसरो घर आपने, रैन भई चहुं देस ।।“

सन् 1254 – 28 दिसम्बर को जन्मे अमीर खुसरो ने अपनी माँ को अपनी  लोकप्रियता का कारण… शेर और शायरी बताया तब… माँ ने सुनाने के लिए कहा… खुसरो ने फारसी के तीन शेर सुनाये… भारत में जन्मी उस माता को पसंद नहीं आया… तब हिंदी का एक शेर सुनाया… बस माँ ने कहा… ‘‘इसी जबान में लिखो, तुम्हें सफलता मिलेगी… ये हिंदी की विशेषता खुसरो का यह शेर… अपने गुरु की मृत्यु पर कहा था सुने –

यहाँ लिखा लिखी की बात नहीं, आँखो देखी बात ।

दुलहा दुलही मिल गये…. फीकी पड़ी बारात ।।

कितनी सरल भाषा में रहस्यवाद को कबीर ने समझा दिया…. आधुनिक कवियों ने अपने ढंग से प्रशंसा की है …

“प्रिय हिंदी हो एकता सूत्र

सहचारी और भाषाएँ हों ।

सबके सुख दुख से जुड़ने की

पल्लवित नित्य आशाएँ हों ।।“

सोलह भाषाओं की रानी राष्ट्रभारती हिन्दी ।

मातृभूमि के विशद भाल की यह तो सुंदर बिंदी है ।।

सत्तर वर्ष पूर्व प्रशंसा, परामर्श का युग था, आज अनुशंसा और प्रमर्ष का युग है । शोध की चर्चा करूँ क्या ? कल तक गुरू घासीदास विश्वविद्यालय था, आज दिल्ली दास विश्व विद्यालय हो गया…। वहाँ पंडित बनारसी दास चतुर्वेदी को विषय दिया… हिंदी में अपशब्दों का उद्भव और विकास… ।अब पंडित जी ने एक रेजा को एक कंकड़ उठाकर मार दिया… बस क्या था…. रेजा ने धड़ाधड़ गाली बकना शुरू कर दिया… कि हिंदी में गालियाँ विदेशी आक्रांताओं से आई है… और वेश्यावृत्ति…अंग्रेजी की देन है… और बाइबिल के बाद हिंदी में गीता प्रेस गोरखपुर ने 50 करोड़ … पुस्तकें छाप कर बेची हैं… और चित्रलेखा… उपन्यास के सौ संस्करण बिक चुके हैं, और दिल्ली की अदालतों से आज भी उर्दू में सम्मन आते हैं…। विज्ञप्ति, प्रश्नपत्र… में अंग्रेजी संस्करण को प्रमाणिक माना जाता है । हिन्दी दिवस … हिंदी डे है… अंग्रेजी अंक समाचार पत्र, घड़ी, कैलेण्डर डायरी में छपे रहते हैं… जबकि विदेशों के 165 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही               है …।

देश के धनाढ्य, मध्यम वर्ग के लोग अंग्रेजी के समर्थक हैं… प्रायः सबके बच्चे कान्वेंट… मय है । घरवाली भी… गैस से पीड़ित है… होम हवन के लिए क्या चेन्नई में 250 ग्राम गोबर 10 रूपये में खरीदती है…। नकल में डूबे हैं, हम । महादेश को हिंदी जोड़ सकती है… परन्तु आज हिंदी का नहीं यह हिंदी जाति का संकट है।

राजभाषा अंग्रेजी के पक्ष में है… वे क्षुद्र हैं, और राष्ट्रभाषा के पक्ष में हैं वे रूद्र हैं – ।अंग्रेजी के पक्ष में स्वार्थ, लाभ अर्थ है, तो हिंदी सत्य, शुभ, परमानन्द है । यह साहित्यकार का अहं है, अहंकार नहीं । ऐसी भाषा है… जिसमें प्रणय से प्रलय तक अभिव्यक्ति है – कवि अप्रकाशित सत्य को प्रकाशित करने के लिए प्रतिबद्ध है, अमूर्त सृष्टि को मूर्त रुप देने के लिए प्रभु से प्रेरित है – कवि का कंठ कोकिल ही नीलकंठ भी हो । यहाँ तो महाकवि की वाणी में सत्य, शिव, सुंदर त्रय-तीनों सन्निहित है – हिंदी का महाकवि नर को नरोत्तम, पुरूष को पुरूषोत्तम बनाता है – चाहे तुलसीदास हों, चाहे सूरदास या मलिक मुहम्मद जायसी हों । कवि अमृत पुत्र है…चाटुकार और साहित्यकार में अंतर है… आज चाटुकार हिंदी की पीठ में छूरा भोंक रहे हैं… वक्रतुंड विनायक के बदले खलनायक की पूजा करते हैं । आज प्रेमचंद का हंस राजेन्द्र यादव कामी काक बन गया है। ज्ञानोदय सरीखी पत्रिकाएँ … चार चार प्रेम विशेषांकों से पेट नहीं भरा, तो बेवफाई विशेषांक निकालने लगी। हाय ! हिंदी की वर्णतूलिका वेश्या बन गई, और कलम-कुलटा। दुर्भाग्य कि बड़े बड़े नेता, विश्व विद्यालय लेखकों से भीख माँगते हैं और बिलासपुर सरीखे महानगर में एक भी श्रेष्ठ ग्रंथालय नहीं हैं। सबसे दरिद्र दिल्ली दास विश्वविद्यालय है….।

हिंदी के पंडित चेतावनी देते हैं, कि बेटे व्याकरण पढ़ लो नहीं तो स्वजन, श्वजन में अंतर समझ नहीं पाओगे – सच की पीढ़ी में न छंदानुशासन है न शब्दानुशासन । कृपा करके साहित्यकार के प्रभाव को नहीं स्वभाव को देखें – राजनेता तो कवि के बदले कूल्हे मटकाने वाले को माला पहनाने के लिये लालायित रहते हैं । उधर एशिया, यूरोप, अमरीका भूमंडलीकरण के नाम पर देवनागरी को… रोमनलिपि के रूप में परिणत करना चाहते हैं-यह बहुत बड़ा खतरा है और हम राष्ट्र संघ में हिंदी को मान्यता दिलाने के लिए विश्व हिंदी सम्मेलन में प्रस्ताव पारित कर रहे हैं – कम से कम 96 देशों का समर्थन – वैश्विक भाषा के लिए जुटाना होगा – हम तो अपने देश में गौ पूजन प्रदेशों में अटके पड़े हैं…. और बछिया के ताउ आक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज को दामाद बनाने के लिए आतुर हैं। देश का दुर्भाग्य है कि प्रारंभ से हिंदी विरोधी प्रधानमंत्री, शिक्षा मंत्री मिले… पुरूषों ने विदूषक को, सिनेमा में स्वैरिणी नायिका को पद्मश्री मिलती है… और इस विश्वसनीय छत्तीसगढ़ के चार चार आई.ए.एस. साहित्यकला में निष्णात, पात्रों का चयन करते हैं… केशव कहि न जाय क्या कहिये ? दिल्ली में विश्व हिंदी सम्मेलन में वीणा वादिनी वर दे …. गीत के बाद उद्घोषक ने घोषणा की- अभी आपने सोहन लाल व्दिवेदी का गीत सुना …..।

हिंदी के बहुमुखी राष्ट्रीय स्तर पर विकास हेतु विचार करके कदाचार को सदाचार में परिणत करना चाहते हैं तो राजनेतागण भाषा की सेवा में गोबर गणेश को न बिठाये, जो लालबत्ती की कार में बैठने के लिये लालायित हों, और ग्राम, नगर में हिंदी के अच्छे ग्रंथालय की व्यवस्था परम् आवश्यक है ।

अंत में मेरे विचार से हिंदी के साहित्यकार को मूंगफल्ली के समान होना चाहिये … पुष्प आकाशोन्मुखी तथा फल धरती पुत्र हो… । पदुम पुन्नालाल बख्शी जी से मैं असहमत हूँ ।आज चुपचाप साहित्य सृजन संभव नहीं, चारों ओर विपदा की घटा घेर रही हो तो बादल बनकर गरजना होगा, विद्युत बनकर कड़कना होगा । आप अक्षर के आराधक हैं, अमृत पुत्र हैं, डरिए मत… चुपचाप रहने का अर्थ आत्मपीड़न नहीं आत्म हत्या है ।

 

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