भूपेश सरकार के अढ़ाई साल पूरे होने से ठीक पहले पहुंचे पुनिया..अब क्या होगा? सियासी हलचल के बीच सुलझेगी पहेली..?या और उलझ जाएगी

Chief Editor
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( गिरिज़ेय ) प्रदेश में भूपेश सरकार के कार्यकाल के ढाई साल 17 जून को पूरे होने वाले हैं। इसे लेकर छत्तीसगढ़ की सियासत में हलचल मची हुई है। जिस समय लोग ढाई साल की इस पहेली को सुलझाने में लगे हैं, ऐसे समय में कांग्रेस प्रभारी पी.एल.पुनिया की छत्तीसगढ़ में मौज़ूदगी पर क्यूं लोगों की नज़रें टिकी हुई हैं…….। कांग्रेस के इस अँदरुनी झगड़े में बीजेपी की दिलचस्पी क्यूं है…..।   इस मामले  के कितने कोने हैं और सियासत की बिसात पर कौन किस दाँव के इंतजार में है……

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हम सभी जानते हैं गणित के हिसाब से अढ़ाई किस जगह पर आता है…..। एक से दस तक की गिनती ज़ानने वाला बच्चा भी ज़ानता है कि दो और तीन के बीच अढ़ाई काक नंबर आता है। इस ढ़ाई अंक की महिमा कई जगह सुनाई देती है। संत कबीर ने लिखा है पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ ,पंडित भया न कोय….. ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय….। उन्होंने अपने इस दोहे में प्रेम के ढ़ाई अक्षरों की महिमा गाई है। इस दोहे का अक्सर बहुत इस्तेमाल भी होता है और इसका बड़ा विश्लेषण भी ख़ूब हुआ है। अढ़ाई के नंबर की ज्योतिष में भी खूब चर्चा होती है। जैसे शनि का अढ़ैया वगैरह… वगैरह….। इस अढ़ाई की पहेली को बूझने के पीछे हमारा मकसद है कि छत्तीसगढ़ में इन दिनों पूरी सियासत इसी अढ़ाई नंबर के इर्द-गिर्द घूम रही है। यहां भी गणित साफ है कि छत्तीसगढ़ में 2018 के चुनाव के बाद बनी भूपेश बघेल सरकार इसी महीने जून की 17 तारीख को अपने अढ़ाई साल पूरे कर रही है।

हम सब जानते हैं कि  किसी भी सरकार का कार्यकाल 5 साल का होता है। और जब सरकार आगे चलती है तो आधे सफर में ढाई साल का वक्त आता है। इस हिसाब से छत्तीसगढ़ की मौजूदा सरकार के कार्यकाल का आधा हिस्सा होने वाला है। जब कोई भी सरकार बनती है और आगे चलती है तो बीच में आधा हिस्सा तो आएगा ही…… । रवायत है कि हम किसी कार्यकाल को 1 साल ..2 साल.. 3 साल.. 4 साल और फिर ढाई साल के टुकड़े में बांटकर यह हिसाब लगाते हैं कि इस बीच सरकार का कामकाज कैसा रहा…..। इस तरह का हिसाब किताब लगाने के लिए एक  केलकुलेटर अलग काम कर रहा है। लेकिन 17 जून को पूरे होने वाले अढ़ाई साल को लेकर एक गुणा – भाग के ख़ेल अलग ही चल रहा है। इस गुणा – भाग को समझने के लिए थोड़ा फ़्लैश बैक में जाना होगा…..।

 याद कीज़िए पिछले विधानसभा चुनाव के तुरत बाद मुख्यमंत्री का नाम तय करने में कई दिन तक संस्पेंस चला और ख़बरिया लोगों को स्पेस मिला तो तरह – तरह की ख़बरों के बीच यह सुर्ख़ी भी सामने आई कि कांग्रेस आला कमान ने ढाई-ढाई साल का फ़ार्मूला तय किया है। इस तरह का फ़ार्मूला सच में तय  हुआ था या नहीं ….इस बारे में पक्के तौर पर किसी को कुछ भी पता नहीं है। अगर ऐसा कोई फ़ार्मुला तय हुआ था तो सचाई वही बता सकते हैं, जिनके बीच ऐसे किसी एग्रीमेंट पर मुहर लगी होगी…..। मगर आज तक किसी ने भी इस बारे में कुछ कहा नहीं है….।

अब तक अधिकारिक तौर पर ऐसी कोई बात सामने नहीं आई है। हां….. पिछले साल सराकर की दूसरी सालगिरह के आसपास इसकी हल्की सुगबुगाहट ज़रूर शुरू हुई थी…..। लोगों को याद होगा बिलासपुर में ही पत्रकारों से बातचीत के दौरान ढाई-ढाई साल का  सवाल उठा तो प्रदेश के स्वास्थ्य और पंचायत मंत्री टी.एस. सिंहदेव ने कूटनीतिक अँदाज़ में जवाब देकर सवालिया निशान की साइज़ और बड़ी कर दी थी……..। मतलब सवाल के ज़वाब में एक और बड़ा सवाल अटैच होने से  ठहरे हुए पानी में पत्थर ऐसी ज़गह पर पड़ा , जहां से लहर दूर तक चलती चली गई । उन्होंने न तो इस तरह के किसी एग्रीमेंट से इनकार किया और ना ही इसे स्वीकार किया। पहेली और कठिन हो गई। उधर जब बात मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक पहुंची तो उन्होंने पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए कह दिया था कि पार्टी आलाकमान जब कहे ….तब इस्तीफा देने को तैयार है…..। उस समय बात आई गई हो गई थी ।

लेकिन पहेली अपनी जगह बनी हुई थी। जो लोग इस तरह की पहेलियों को बूझने में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं, वे भी अपना मन मार कर वक्त का इंतजार करने लगे…… । उन्हें लगा कि जिस दिन सरकार के ढाई साल पूरे होंगे उस दिन जरूर गांठे खुल जाएंगी और सब कुछ साफ हो जाएगा…..। अब वही 17 जून की तारीख नजदीक आ रही है। तब पहेली में दिलचस्पी रखने वालों की बेचैनी भी बढ़ती जा रही है।

इस पहेली के साथ और भी क्या-क्या चीजें चिपकती रही हैं…. आइए… इस पर भी थोड़ी बात कर लेते हैं….। सीधी सी बात है कि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर आलाकमान और प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं के बीच हुई बातचीत पर आधारित इस स्क्रिप्ट के साथ कई चीजें जुड़ी हुई है। यही वजह है कि जब भी सीएम की कुर्सी को लेकर इस तरह के सवालों पर बात होती है तो मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में जाने ….कमलनाथ सरकार के ढ़हने… राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की रस्साकशी ……और हाल के दिनों में पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच जो कुछ चल रहा है…. कुछ उसी तरह  के सीन को भी छत्तीसगढ़ से जोड़ दिया जाता है। जिससे यह सवाल भी नत्थी हो जाता है कि क्या इन प्रदेशों  का घटनाक्रम छत्तीसगढ़ में भी दोहराया जाएगा….।

हालांकि विधानसभा में सदस्यों की संख्या के लिहाज से इस तरह का कोई गणित फिलहाल फिट बैठता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। लेकिन 17 जून की तारीख नजदीक आते-आते छत्तीसगढ़ में यह पहेली फिर से मीडिया और सोशल मीडिया में घूमने लगी है। मजेदार बात है कि छत्तीसगढ़ में लगातार 15 साल तक राज चलाने के बाद पिछले विधानसभा चुनाव में 15 सीटों पर सिमट गई बीजेपी को  भी इस तरह का पॉलिटिकल आइटम सूट करता है। छत्तीसगढ़ में अस्थिरता की स्थिति कभी नहीं रही। फिर भी दूसरे राज्यों की देखा देखी यहां भी कुछ इसी तरह के गेम प्लान को आजमाने के लिए बीजेपी के लोग भी ढाई साल की इस पहेली को अपनी सियासत के टूल के रूप में शामिल करने में पीछे नजर नहीं आते। बीजेपी के कई नेताओं ने चुटकी लेते हुए यह सवाल छत्तीसगढ़ की सियासी फिजा में उछाल दिया है कि ढाई साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद क्या कुछ बदलाव होने वाला है…..। दिलचस्प तस्वीर यह भी है कि बीजेपी ने छत्तीसगढ़ सरकार के 5 साल पूरे होने से पहले सरकार को सवालों में घेरने के लिए जो मुहिम चला रखी है उसमें नरेटिव यही दिया गया है कि भूपेश बघेल जवाब दो ……ढाई साल का हिसाब दो….। इस जुमले में अढ़ाई साल का टाइम पिरियड  अहम् नजर आता है। ढाई साल का हिसाब मांगने के बहाने बीजेपी मुख्यमंत्री पद के बंटवारे के मुद्दे पर टी. एस. सिंहदेव की तरफदारी कर उनके ख़ाते में अपनी ओर से दया,कृपा,अनुकंपा,संवेदना,करुणा,अनुग्रह, सांत्वना जैसे सहानुभूति के पर्यायवाची शब्दों की सम्मान निधि जोड़ने की पेशकस कर दी है…..।

और उन्हे शायद यह भी लग रहा है कि यह दवाई स्वास्थ मंत्री के अँदर भूख़ बढ़ाने में मददगार भी हो सकती  है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि बीजेपी के लोग विधानसभा में विधायकों की संख्या का गणित अच्छी तरह से समझते हैं। वहां कोई ऐसी बारीक लकीर नहीं है…. जिसका फायदा उठाकर बीजेपी छत्तीसगढ़ में कोई बड़ा खेल कर सके। लेकिन उन्हे लगता है कि अगले चुनाव की तैयारी का आगाज़ करते हुए  कांग्रेस के अंदर की चिंगारी को हवा देने से उन्हें फायदा मिल सकता है। वैसे भी छत्तीसगढ़ में बीजेपी पिछले ढाई सालों में कांग्रेस सरकार को घेरने  के मामले में कितनी कामयाब रही , यह सबके सामने  है। खासकर किसानों के मुद्दे….. भूपेश बघेल के छत्तीसगढ़िया अंदाज …और प्रदेश के कल्चर को लेकर मुख्यमंत्री की रणनीति की वजह से भाजपाइयों को पिछले लंबे समय से किसी ऐसे मुद्दे की बेशक तलाश है ……जिसके जरिए वे भूपेश बघेल की सियासत के इस अंदाज का कोई तगड़ा जवाब दे सके। ऐसी सूरत में छत्तीसगढ़ में सीएम बदले … या न बदले… कांग्रेस के भीतर इस तरह की तनातनी को ज़िंदा रखने की रणनीति बीज़ेपी को फ़ायदेमंद लगेगी ही……।  

जहां तक कांग्रेस का सवाल है …..कांग्रेस के लोग इस बारे में खुलकर कोई बात नहीं कर रहे हैं। पत्रकारों की ओर से जब भी यह सवाल उठाया जाता है तो कुछ खबरें सुर्खियों में आती है। मिसाल के तौर पर कुछ दिनों पहले ही प्रदेश सरकार के मंत्री रविंद्र चौबे ने पत्रकारों से कहा कि ढाई ढाई साल के मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई है। वे यह भी जोड़ते हैं कि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार बहुत अच्छी चल रही है। जब इस बारे में पूछा गया था तो टी.एस. सिंहदेव ने डिप्लोमेटिक अंदाज में यही जवाब दिया था कि रविंद्र चौबे कह रहे हैं तो सही ही होगा। कांग्रेस कवर करने वाले  कई राजनीतिक पंडित भी मानते हैं की कांग्रेस में वही लोग इस तरह की खबरों को हवा देते हैं जिन्हें लगता है कि अगर ऐसा कुछ हुआ तो उन्हें फायदा मिलेगा। इस नजरिए से ही वे इस मुद्दे को जिंदा रखने की कोशिश में लगे हुए हैं। लेकिन ऐसे किसी हालात के संकेत नहीं मिल रहे हैं। राजनीति के पंडित इस बात को भी कसौटी पर रखकर देखते हैं कि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार के खिलाफ पार्टी में कोई असंतोष नजर नहीं आता। भूपेश बघेल ओबीसी तबके से आते हैं और मुख्यमंत्री बनने से पहले भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में वे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के  ओबीसी चेहरे के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं।

इसके साथ ही छत्तीसगढ़िया अंदाज में जिस तरह उन्होंने अपनी सियासत की लाइन को आगे बढ़ाया है….. उससे बीजेपी के सामने भी बड़ी चुनौती खड़ी हुई है । इन कसौटियों के हिसाब से देख़ने वालों को भी  छत्तीसगढ़ में किसी तरह के बदलाव की गुंजाइश नजर नहीं आती। ऐसा कुछ तभी मुमकिन हो सकता है जब आलाकमान ने वाकई मुख्यमंत्री का फैसला करते समय ढाई -ढाई साल के किसी फार्मूले का वचन दिया होगा । ऐसे किसी एग्रीमेंट की बुनियाद़ पर सीएम पद को लेकर सहमति बनी होगी और ढ़ाई साल बाद अब कांग्रेस आलाकमान उसके मुताबिक फैसला करे….. तभी छत्तीसगढ़ में कोई बदलाव हो सकता है।

आइए अब बात करते हैं की इस तरह की चर्चाओं के बीच 17 जून से ठीक पहले छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी पीएल पुनिया 3 दिन के दौरे पर पहुंच गए हैं। वह रायपुर में नेताओं से भी मिलेंगे …..कांग्रेस के बूथ प्रबंधन समिति की बैठक भी ले रहे हैं। विधायक दल के साथ भी उनकी मीटिंग है। प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी के साथ जिला अध्यक्षों के साथ भी बैठने वाले हैं। उनके साथ प्रभारी सचिव चंदन यादव भी रायपुर पहुंच चुके हैं। जाहिर सी बात है कि अढ़ाई साल की पहेली को लेकर पीएल पुनिया से भी सवाल होंगे। लोग यह जानना चाहेंगे कि वाकई कोई वादा हुआ था …..एग्रीमेंट हुआ था और छत्तीसगढ़ में क्या कुछ बदलाव होने वाला है। ऐसे तमाम सवालों के जवाब की उम्मीद पीएल पुनिया से है ।भाजपाइयों की ओर से उठाए जा रहे सवालों के जवाब के लिए भी लोगों की नजरें पी.एल.पुनिया के दौरे पर टिकी हुईं हैं।  हालांकि करीब 2 महीने पहले पीएल पुनिया यह साफ कर चुके हैं कि भूपेश बघेल 5 साल तक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहेंगे। फिर भी क्योंकि मानसूनी बादलों के साथ ही छत्तीसगढ़ के सियासी फ़िंज़ा  में ढाई साल का सवाल भी घुमड़ रहा है। ऐसे में उलझी हुई गुत्थी सुलझाने के लिए लोगों की नजरें पुनिया के दौरे पर टिकी हुई है। गुत्थी सुलझेगी या  और उलझ जाएगी…… यह आने वाले घंटों में ही साफ हो सकेगा।

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