सहायक संचालक पर गंभीर आरोप..शिक्षक पदोन्नति में किया घोटाला,, FIR भी दर्ज…निर्वाचन आयोग ने मांगा जवाब

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर–राज्य निर्वाचन आयोग और शिक्षा संचालनालय ने संभागीय शिक्षा संयुक्त कार्यालय को पत्र लिखकर  सहायक शिक्षा संचालक की जानकारी भेजने को कहा है। आयोग ने तीन लोगों की लिखित शिकायत पर 11 मार्च को डायरेक्टर को आदेश जारी किया। सा थही लौटती डाक से प्रशांत राय पर लगाए गए आरोपों की जानकारी भेजने को कहा है। बावजूद इसके संभागीय संयुक्त संचालक ने ना तो आयोग को जवाब दिया और ना ही डायरेक्टर को लौटती डाक ही भेजा है। आश्चर्च की बात है कि डायरेक्टर ने ही 20 मार्च को कार्यालय से नोटिस जारी भेजने को कहा है।

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  संभागीय संयुक्त संचालक कार्यालय मे सहायक संचालक के पद पर कार्यरत प्रशांत राय के खिलाफ तीन लोगों ने चुनाव आयोग समेत शिक्षा संचालक और सचिव को पत्र ळिखकर शिकायत दर्ज कराया है। शिकायत में बताया गया है कि प्रशांत राय मूल रूप से प्राचार्य है। पिछले 6 साल से संभागीय संयुक्त शिक्षा कार्यालय में सहायक संचालक के पद पर अंगद की पांव की तरह जमे है।

विभाग में प्रशांत राय का 6 साल का कार्यकाल  विवादों से भरा है। शिक्षक पदोन्नति के दौरान उन्होने संशोधन घोटाला को अंजाम दिया है। मामले शिकायत के बाद  घोटाला से जुड़े कमोबेश सभी लोगों के खिलाफ कार्रवाई हुई। लेकिन विवादित सहायक संचालक हमेशा की तरह साफ सुथरा बच निकले। जबकि उन्होने 249 शिक्षकों का पदोन्नत भर्ती के दौरान संशोधन किया। लेकिन उन्हें क्लीन चिट देना तो दूर बल्कि उन्हें जांच पड़ताल से दूर रखा। किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं हुई।

शिकायत कर्ता नरेन्द्र बंजारे, संतोष शुक्ला और विनोद तिवारी ने आयोग को पत्र में बताया कि विभाग से उनका पांच बार स्थानांतरण हो चुका है। आलेकिन हर बार कांग्रेस नेता डॉ.विनय जायसवाल की कृपा से बच जाते हैं। जबकि राय के खिलाफ एक महिला ने शहर के एक थाना में एफआईआर भी दर्ज कराया है। बावजूद इसके अभी तक किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं हुई है।

शासन के निर्देशानुसार ऐसे अधिकारी जो तीन साल से एक ही जगह पर जमे है..उन्हें चुनाव के समय हटा दिया जाना है। मजाल है कि अंगद की पांव की तरह जमे प्रशांत राय को कोई हिला सके। उनके खिलाफ लगे आरोपों की ना केवल जांच हो बल्कि उन्हें नियमानुसार हटाया भी जाए।

मामले मे चुनाव आयोग ने 11 मार्च को डायरेक्टर को पत्र लिखा। साथ ही लौटती डाक से यानी 12 फरवरी को रिपोर्ट पेश करने को कहा। आश्चर्य की बात है कि लौटती डाक से जवाब देना तो दूर डायरेक्टोरेट से आयोग के पत्र का हवाला देकर 20 मार्च को संभागीय शिक्षा कार्यालय को पत्र भेजा गया। 21 मार्च खत्म होने के बाद भी कार्यालय ने जवाब पेश नहीं किया है।

सवाल उठना लाजिम है कि जब निर्वाचन आयोग ने 12 मार्च तक जानकारी देने को कहा था तो डायरेक्टर कार्यालय ने 9 दिन बाद यानी 20 मार्च को संभागीय कार्यालय को पत्र क्यों जारी किया। मतलब साफ है कि यहां भी प्रशांत राय को बचाने का प्रयास किया जा रहा है। देखने वाली बात है कि आयोग के निर्देशों का पालन नहीं करने वाले अधिकारियों पर निर्वाचन आयोग और शिक्षा संचालक किस प्रकार का कदम उठाता है।

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