विभाग ने बेंच दी दिव्यांगो की नौकरी

BHASKAR MISHRA
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IMG20170109150036बिलासपुर– चंद कागज के नोट में पशु विभाग ने दिव्यांगों की नौकरी बेंच दी। मामला बिलासपुर पशु विभाग का है। सब कुछ आला अधिकारियों के नाक के नीच हुआ। मजेदार बात है कि यह सब उन लोगों के सामने हुआ जहां अन्याय  की कोई उम्मीद नहीं है। बावजूद दिव्यांगों और आरक्षण नियमों के साथ खिलवाड़ हुआ। सामान्य लोग दिव्यांग बनकर आज भी नौकरी कर रहे हैं। मामले में जब भी संयुक्त संचालक से बातचीत करने का प्रयास किया। वे हमेशा व्यस्त रहे। या यूं कहें कि मामले में सवालों को हर बार टाल दिया।

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                                  पशु चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं विभाग में साल 2012 में परिचारक,सह चौकीदार समेत चतुर्थ वर्ग के लिए 101 पदों का विज्ञापन निकला। पारदर्शिता का हवाला देकर परीक्षा हुयी। लेकिन नौकरी मिली फर्जी लोगों को। परीक्षा संचालक मंडल में तात्कालीन समय के उंचे पदाधिकारी भी शामिल हुए। बावजूद इसके लोगों ने फर्जी विकलांग और जाति बदलकर लोगो ने नौकरी हासिल कर लिया। हो सकता है इसमें गफलत हुई हो..लेकिन इतनी बड़ी गलती की संभावना बिना सांठ गांठ के संभव नहीं है।

                जानकारी के अनुसार 101 पदों की भर्ती में शासन के आरक्षण रोस्टर की गुपचुप तरीके से धज्जियां उड़ाई गयीं। कई लोगों ने फर्जी जाति और मार्कसीट बनाकर नौकरी हासिल कर लिया। दिव्यांग कोटा की नौकरी को सामन्य लोगों ने हथिया लिया। ऐसे लोग जो मेडिकल रूप से पूरी तरह फिट हैं। उन्होने फर्जी विकलांग सर्टिफिकेट के दम पर नौकरी पर कब्जा कर लिया। कई लोग तो ऐसे भी हैं जिन्होंने 60 प्रतिशत मेडिकल अनफिट दिव्यांग सर्टिफिकेट पेश किया है। जबकि वह पूरी तरह से मेडिकल फिट हैं। जानकारी के अनुसार मेडिकल अनफिट सर्टिफिकेट की जानकारी संचालक मंडल को बाद में और कुछ लोगों को उसी समय लग गयी थी। बावजूद इसके विभाग ने ऐसे फर्जी लोगों के खिलाफ किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की। IMG20170109150024

                                                        नाम नहीं छापने की शर्त पर संयुक्त संचालक पशु चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि जब तब विभाग में भर्ती को लेकर मामला उठता जरूर है। लेकिन सक्षम अधिकारी लोग दबा देते हैं। इसका नतीजा यह है कि फर्जी दिव्यांग और जाति के लोग शानदार घर बैंठे पांच साल वेतन उठा रहे हैं। यदि जांच हो जाए तो दूध और पानी अलग हो जाएगा। जांच में लोगों को जानकारी मिल जाएगी कि किस तरह भर्ती के दौरान किस तरह फर्जी मेडिकल सर्टिफेकट बने। कई लोग तो ऐसे भी हैं कि जिनका मेडिकल सर्टिफिकेट भी मान्य नहीं है। बावजूद इसके तात्कालीन संचालक मंडल ने आंख बंदकर उसे मान्य किया। भर्ती के बाद प्रतिभागियों का वेरिफिकेशन भी नहीं कराया गया।

              बहरहाल नौकरी में पात्र लोग इस समय खाक छान रहे हैं। फर्जी लोग नौकरी का लुत्फ उठा रहे हैं। मामले में संयुक्त संचालक ने हमेशा कुछ बोलने से बचने का प्रयास किया। लेकिन इतना तय है कि भर्ती के समय पुराने हजार और पांच सौ के नोट जमकर चले। जिसे प्रधानमंत्री ने करीब पांच साल बाद कागज का टुकड़ा करार दिया है। प्रश्न उठता है कि क्या मामले में अब जांच होगी…बताना फिलहाल मुश्किल है।

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