विश्वविद्यालयों में राज्य सरकार का कंट्रोल ! क्या कुलपतियों की नियुक्तियों में गवर्नर के दखल को कम करने की है तैयारी ?

Shri Mi
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राजस्थान सरकार 28 राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपति (वीसी) नियुक्त करने के लिए मुख्यमंत्री को अधिकार देने वाला एक विधेयक लाने पर विचार कर रही है जहां बिहार, तमिलनाडु, गुजरात और तेलंगाना के बाद राजस्थान ऐसा विधेयक लाने वाला पांचवां राज्य होगा. जोधपुर की जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति पीसी त्रिवेदी की अध्यक्षता वाली एक समिति ने राजस्थान सरकार (rajasthan government) को इससे संबंधित विधेयक का एक मसौदा पेश किया है जिसके बाद यह माना जा रहा है कि राज्य सरकार स्टेट यूनिवर्सिटीज में राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र को सीमित कर दिया जाएगा. समिति से जुड़े सदस्यों ने सरकार से सिफारिश की है कि कुलपति (vice chancellor) की नियुक्ति मुख्यमंत्री की तरफ से की जानी चाहिए और राज्यपाल (governor) की भूमिका एक विजिटर के तौर पर होनी चाहिए जैसे केंद्रीय विश्वविद्यालयों में भारत के राष्ट्रपति की भूमिका होती है. वहीं इस बिल को कुलपतियों की नियुक्ति और प्रशासन के कामकाज को लेकर उनके और राज्यपाल के बीच कलह को समाप्त करने की दिशा में भी देखा जा रहा है.

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वहीं समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की तरह, राज्य में भी प्रत्येक विश्वविद्यालय के लिए एक अलग चांसलर होना चाहिए. बता दें कि राज्य सरकार का यह ड्राफ्ट राज्य में कुलाधिपति और वीसी की भूमिकाओं को अलग तरीके से परिभाषित करता है. वहीं राज्य सरकार के इस विचार के बाद विपक्षी दल बीजेपी का कहना है कि यह करना विश्वविद्यालय की स्वायत्तता पर हमला है.

केंद्र और राज्य के बीच दूर होगी खींचतान ?

वर्तमान में राज्यों के विश्वविद्यालय के लिए कुलाधिपति का पद राज्यपाल के लिए आरक्षित है. वहीं राजस्थान की 28 स्टेट यूनिवर्सिटीज में से, 13 वीसी का कार्यकाल 2022 तक खत्म होने जा रहा है जिसके बाद माना जा रहा है कि राज्य सरकार सभी 13 वीसी की नियुक्ति नए अधिनियम की मदद करना चाहेगी.मसौदे में कहा गया है कि किसी क्षेत्र विशेष के योग्य विशेषज्ञों को कुलपति के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए जैसे कि एक डॉक्टर को एक चिकित्सा विश्वविद्यालय के लिए और एक सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश या कानून विश्वविद्यालय के लिए न्यायाधीश पर विचार किया जाना चाहिए. वहीं कुलाधिपतियों और कुलपतियों की नियुक्ति के अलावा, समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि सरकार से प्रभावी समन्वय सुनिश्चित करने के लिए शिक्षा मंत्री को प्रो-चांसलर के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक समिति से जुड़े एक सदस्य का कहना है कि मसौदे में दी गई सिफारिशें राजनीतिक नहीं हैं बल्कि बेहतर चयन और नियुक्ति के लिए एक पहल है, अगर वीसी की नियुक्ति सीएम करेंगे तो जवाबदेही सरकार तय करेगी.गहलोत सरकार के इस मसले पर बिल लाने को वरिष्ठ पत्रकार राजन महान केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शिक्षा के क्षेत्र में आई भरोसे की कमी के तौर पर देखते हैं. वह कहते हैं कि, पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि यूजीसी नॉमिनी और राज्यपाल नॉमिनी से राज्य के विश्वविद्यालयों में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच कई मौकों पर तकरार देखने को मिली है और राज्यों में केंद्र के जरिए अपने नजदीकी लोगों को नियुक्त किया जाता रहा है.

महान इस बिल को केंद्र सरकार की भूमिका राज्य में सीमित करने की कोशिश मानते हुए कहते हैं कि विश्वविद्यालयों को लेकर बीजेपी शासित राज्यों में तो कोई टकराव नहीं देखने को मिलता है लेकिन जिन राज्यों में नॉन-बीजेपी सरकारें हैं वहां की सरकारें विश्वविद्यालयों के जरिए इस बिल से व्यापक स्तर पर एक संदेश देना चाहती है.

गहलोत सरकार और गवर्नर हाउस के बीच खींची तलवारें !

गौरतलब है कि कुलपतियों की नियुक्ति और प्रशासनिक कामकाज को लेकर राज्यपाल और सरकार कई बार आमने-सामने आ चुकी हैं. बीते दिनों राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने जयपुर में पत्रकारिता विश्वविद्यालय की प्रबंधन बोर्ड (बीओएम) और सलाहकार समिति की दो बैठकें रद्द कर दी जिसके बाद हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय (HJU) के कुलपति के कार्यालय और राजभवन के बीच कई पत्रों का आदान-प्रदान यह दिखाता है कि दोनों पक्षों के बीच पिछले एक साल से हालात तनावपूर्ण रहे हैं.इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक ओम थानवी, जिनका कुलपति के रूप में तीन साल का कार्यकाल हाल में समाप्त हुआ है ने राज्यपाल के बैठक रद्द करने के आदेशों पर चिंता व्यक्त करते हुए “मनमाना निर्णय” कहा था. थानवी ने यह भी कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि विश्वविद्यालय के भविष्य के कुलपतियों को कुछ विपक्षी विधायकों की आधारहीन शिकायतों के आधार पर परेशान नहीं किया जाएगा.

वहीं एक अन्य घटना में 30 मार्च, 2021 को राज्यपाल के सचिव की ओर से लिखे गए एक पत्र में थानवी को उनके “ट्वीट और राजनीतिक बयानों” के बारे में विस्तृत स्पष्टीकरण देने के लिए कहा गया था. पत्र में कहा गया था कि थानवी को उनके पद से हटाया जाना चाहिए क्योंकि वह राजनीतिक बयानबाजी करते हैं.वहीं थानवी ने राजभवन को जवाब देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय के कर्मचारी और कुलपति सरकारी कर्मचारी नहीं हैं और HJU राजस्थान सरकार का कोई विभाग नहीं होकर एक स्वायत्त निकाय है और सभी को राजनीतिक मुद्दों और चर्चा में भाग लेने और अपनी राय रखने का अधिकार है.

इसके अलावा गवर्नर हाउस और सरकार के बीच ताजा विवाद मोहन लाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अमेरिका सिंह की सीकर की फर्जी गुरूकुल यूनिवर्सिटी में कथित संलिप्तता को लेकर भी सामने आया.

इस बारे में हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ अनिल मिश्र कहते हैं कि विश्वविद्यालयों में गर्वनर के जरिए केंद्र सरकार का कंट्रोल रहा है जिसे अब राज्य सरकार अपने हाथ में लेना चाह रही है, ऐसे में इसके हमें यह सोचना चाहिए कि इस फैसले के दूरगामी परिणाम क्या होंगे. मिश्र कहते हैं कि यह बिल किसी एक या दो विश्वविद्यालय के वीसी के साथ गर्वनर हाउस की टकराहट का नतीजा भर नहीं है बल्कि बड़े परिप्रेक्ष्य में देखें तो विश्वविद्यालयों को लेकर नॉन-बीजेपी सरकारें केंद्र को एकजुट होकर संदेश दे रही है. हालांकि मिश्र आगे जोड़ते हैं कि अगर गहलोत सरकार इस बिल को शुरुआती सालों में लेकर आती तो इसका नतीजा कुछ और निकल सकता था, चूंकि, अगले साल चुनाव है और चुनावों के बाद की अनिश्चिन्तता के संदर्भ में देखें तो इस क़वायद का उल्टा असर भी हो सकता है.

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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