बलौदाबाजार..जिले में प्रतिभावानों को कोचिंग देने और अधिकारी बनाने की मुहिम में एक नई योजना शुरू हुई है। कलेक्टर फरमान के बीच लोगों को आज भी याद है कि दो साल पहले नई दिशाएं अभियान चलाया गया था। अभियान में डीएमएफ फण्ड से लाखों रूपये खर्च हुए। लेकिन कलेक्टर बदलते ही अभियान दिशाहीनता का शिकार हो गया। एक बार फिर कलेक्टर ने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता जाहिर करते हुए पुरानी योजना की तर्ज पर नव प्रेरणा कोचिंग अभियान का एलान किया है। फरमान के साथ ही प्रशासन में कानाफूसी का दौर शुरू हो गया है। अब देखते है कि नव प्रेरणा अभियान से किसकी तकदीर बदलती है। और पुरानी योजना में खर्च डीएमएफ फण्ड घोटाला की जांच कर रही टीम अपने आप को कैसे क्लीन चिट देती है।
नई दिशाएं के बाद नव प्रेरणा
बलौदाबाजार कलेक्टर डोमन सिंह ने फरमान जारी कर बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता जाहिर किया है। इसके साथ ही नई योजना नव प्रेरणा का एलान भी किया है। अभियान में बच्चों को नई दिशाएं योजना की ही तरह प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार किया जाएगा। योजना का संचालन सप्ताह में 4 दिन जिला और विकासखंड स्तर पर सुबह 6 से 9 बजे के बीच होगा। इस दौरान प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियां कराई जांएगी। जिला कलेक्टर और जिला पंचायत सभा भवन में 60- 60 और जनपद मुख्यालय में 30-30 विद्यार्थियों को प्रवेश दिया जाएगा। कोचिंग का संचालन आईएएस प्रतिष्ठा मामगोई के मार्गदर्शन में किया जाएगा।
अधिकारियों की बदल गयी तकदीर
जानकारी देते चलें कि चार साल पहले जिले में नव प्रेरणा अभियान से मिलती जुलती नई दिशाएं अभियान को धूम धाम से लांच किया गया। योजना पर डीएमएफ फण्ड से लाखों करोड़ों ख़र्च किया गया। बच्चे अफसर तो नहीं बन सके..लेकिन अफसर मालामाल जरूर हो गए। कलेक्टर बदलने क साथ ही योजना ठंडे बस्ते में चली गयी।
डीएमएफ फण्ड से लाखों करोड़ों खर्च
बताते चलें कि तत्कालीन पूर्व कलेक्टर राजेश सिंह राणा ने मेधावी बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए प्रशासनिक अधिकारी तैयार करने नई दिशाएं कोचिंग क्लासेस चलाया। योजना के तहत प्रत्येक विकासखंड में नई दिशाएं के नाम से कोचिंग संस्थाएं खोली गयी। सस्थाओं पर डीएमएफ फंड से लाखों करोड़ो रुपए खर्च किया गया। प्रत्येक ब्लॉक में शासकीय भवनों में आवासीय कोचिंग सुविधा और निशुल्क लाइब्रेरी सुविधा की व्यवस्था की गयी। देखरेख की कमी और प्रशासनिक नजरअंदाजी के चलते कुछ महीनों के बाद ही कार्यक्रम जिला स्तर पर सीमित हो कर रह गया था।
बच्चों के भविष्य पर लटका ताला
ब्लॉक स्तर पर खोली गई कोचिंग संस्थाओं में कलेक्टर बदलने के साथ ही संस्थाओं पर ताला लटक गया। कुछ दिनों बाद जिले के छह ब्लाक में लाखों करोड़ रुपयों की अध्ययन सामग्री फर्नीचर, फ्रीज, टीवी, कूलर पंखे, दर्जनों कंप्यूटर , लाइब्रेरी में हजारों की संख्या में खरीदी की बहुमूल्य किताबें और हॉस्टलर्स को मिलने वाली अन्य सुविधाएं प्रशासनिक व्यवस्था की भेंट चढ़ गयी।
अफसर बनना दूर बच्चे बाबू भी नहीं बन पाए
समय के साथ कुछ ही महीनों में अफसर बनाने वाली नई दिशाएं योजना अफसरों की भेंट चढ़ गयी। करोड़ों रूपयों का सामान अफसरों के घर पहुंच गया। नतीजन योजना से अफसर बनना तो दूर, बच्चे बाबू बनने के काबिल नहीं रह गए।
कामचलाऊ ब्रिगेड को आईएएस बनाने की जिम्मेदारी
नई दिशएं योजना संचालन की जिम्मेदारी जिला शिक्षा अधिकारी और एसडीएम के साथ विकास खंड शिक्षा अधिकारियों को दिया गया था। स्कूल शिक्षा विभाग की कामचलाऊ ब्रिगेड.. जो किसी तरह बच्चों को ऐन केन प्रकारेण 12वीं पास करा पाती है। उन्हें केंद्र और राज्य में होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग की जिम्मेदारी दी गयी। योजना का वही हाल हुआ जो होना था। मतलब सरकारी खर्च पर प्रयोजित सभी कोचिंग दुकानों में ताला लटक गया।
चार्वाक सिद्धान्त का किया पालन
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