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बिलासपुर । प्रदेश का परिवहन विभाग एक ऐसा विभाग है लिये स्वच्छता और शुचिता कोई प्राथमिकता नहीं है। बसों में यात्रा करने वाले महिला – पुरुष खुले में सड़क किनारे ही टायलेट करने को मजबूर होते है।बस यात्री पुरुषों के लिए खुले में शौच करना आसान होता है। महिलाओं के लिए ये काफी शर्मिंदगी भरा समय होता है। एक तरफ देश में सम्पूर्ण स्वच्छता की बात कही जा रही है , वहीं दूसरी तरफ बसों पर सफर करने वाले लोग इसे लेकर अब भी परेशानियों का सामना करने को मजबूर हैं।यात्री बताते है कि प्रतिस्पर्धा के इस दौर में बस मालिक और चालक यात्रियों की सुविधाओ का ख्याल रखतें है। वाया रायपुर से अम्बिकापुर होते हुए झारखंड बिहार आने व जाने वाली यात्री बसे कटघोरा,चोटिया, मोरगा में रुकती है। ऐसा ही रायपुर से माकड़ी या कोंडागांव में चाय नाश्ता भोजन या शौचालय के लिए बस कुछ देर के लिए रोकते है।सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप्प ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करे
बिलासपुर । प्रदेश का परिवहन विभाग एक ऐसा विभाग है लिये स्वच्छता और शुचिता कोई प्राथमिकता नहीं है। बसों में यात्रा करने वाले महिला – पुरुष खुले में सड़क किनारे ही टायलेट करने को मजबूर होते है।बस यात्री पुरुषों के लिए खुले में शौच करना आसान होता है। महिलाओं के लिए ये काफी शर्मिंदगी भरा समय होता है। एक तरफ देश में सम्पूर्ण स्वच्छता की बात कही जा रही है , वहीं दूसरी तरफ बसों पर सफर करने वाले लोग इसे लेकर अब भी परेशानियों का सामना करने को मजबूर हैं।यात्री बताते है कि प्रतिस्पर्धा के इस दौर में बस मालिक और चालक यात्रियों की सुविधाओ का ख्याल रखतें है। वाया रायपुर से अम्बिकापुर होते हुए झारखंड बिहार आने व जाने वाली यात्री बसे कटघोरा,चोटिया, मोरगा में रुकती है। ऐसा ही रायपुर से माकड़ी या कोंडागांव में चाय नाश्ता भोजन या शौचालय के लिए बस कुछ देर के लिए रोकते है।सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप्प ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करे
वही बस यात्रियों से चर्चा के दौरान इसका दूसरा पहलू यह भी सामने आता है कि 100 किलोमीटर का सफर करने में कम से कम दो घंटे लगते है। अगर इस बीच ट्रैफ़िक जाम हुआ सड़कों पर वाहनों का दबाव ज्यादा हो गया तो 200 किलोमीटर की यात्रा पांच घण्टे से अधिक की हो जाती है। ऐसे में बस चालक जहाँ ज्यादा मात्रा में शौचालय बना हो उस जगह बस रोकने में असमर्थ होता है। यात्रियों की मांग पर बसे सुनसान सड़को पर रोक दी जाती है। और महिला पुरुष एक साथ बस से उतर कर जिसे जैसी सुविधा मिले शौच क्रिया करते है। महिलाओं को यह अस्थाई सुविधा बड़ी तकलीफ़ देह होती है। महिलाओं को बस से नजदीकी और सम्मानजनक परदे वाला शौचालय का स्थान नही मिल पाता है।
क्या अमीर क्या गरीब महिला जो सार्वजनिक परिवहन का ज्यादा लंबी दूरी के बसों का उपयोग करती है वह इस सेनिटेशन की समस्या का सामना जरूर करती है। महिलाएं उस वक़्त और असहज हो जाती है जब पुरुष बस के आसपास जहाँ जगह मिली खड़े होकर पेशाब करते खड़े हो जाते है। उनकी भी मजबूरी है क्योंकि बस कंडक्टर का पांच मिनट का समय है, ऐसा निर्देश देते है।
वृद्ध,शुगर पेसेंट, पथरी से पीड़ित और विशेष अवसर के दौरान यात्रा कर रही महिलाओं के लिए लंबी दूरी की यात्रा बहुत कठिन होती है। फिर यात्री बस कितनी ही लग्जरी क्यो न हो..!
यात्री महिलाओं की सेनिटेशन की …. चर्चा नही होने वाली इस दशा का जिम्मेदार कौन सा ऐसा सिस्टम है। जो इस ओर ध्यान नही देता है। इसे सामने आना चाहिए। यह भी नारी अस्मिता से जुड़ा हुआ है। यात्री बसों में महिलाओं से भी ज्यादा तकलीदेह सफर 60 वर्ष से अधिक के यात्रियों को होता है। ऊपर से यात्री अगर बीमार है या अस्पताल से छूट कर घर जा रहा है तो समस्या और गंभीर हो जाती है। वृद्ध यात्री को उम्र के इस दौर में हर दो घण्टे में शौचालय जाने की व्यवहारिक दिक्कत होती है। इस उम्र के ज्यादतर लोग मजबूरन ही बसों में लंबी दूरी की यात्रा करते है।
प्रदेश में लंबी दूरी पर चलने वाली अंतरराज्यीय बसे जो बिहार, झारखंड उत्तरप्रदेश ,मध्यप्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश सहित प्रदेश के एक छोर जगदलपुर से अम्बिकापुर, कवर्धा से जशपुर के बीच लंबी दूरी पर चलने वाली बसे जो आठ से अठारह घंटे का सफर करती है। जिसमे दुर्ग से जशपुर , दुर्ग व रायपुर से जगदलपुर, दुर्ग और रायपुर व बिलासपुर से अम्बिकापुर मार्ग में राज्य सीमा के अंतर्गत चलने वाली लग्जरी व साधारण बसों की संख्या सबसे ज्यादा है।
राजधानी रायपुर से जशपुर, जगदलपुर, अम्बिकापुर के लिए रेल यातायात की व्यवस्था बहुत अच्छी नही है। ट्रेन से रायपुर से जशपुर जाने के लिए निकटतम रेल्वे स्टेशन रांची या रायगढ़ है । जबकि अम्बिकापुर सिर्फ एक मात्र पैसेंजर एक्प्रेस ट्रेन है । वही जगदलपुर के लिए एक ही ट्रेन हफ्ते में सिर्फ़ तीन दिन चलती है। इस लिए सहारा सबसे ज्यादा यात्रियों का बसों पर रहता है। एक प्रकार ये निजी यात्री बसें इन मार्गो की लाइफ लाइन है।देश मे स्वच्छ भारत अभियान, हर घर में शौचालय , सुलभ शौचालय जिस तेजी से आगे बढ़ रहा है उसे देखते हुए प्रमुख मार्गो में सार्वजनिक यात्री शौचालय भी बनना चाहिए ।
यात्री बसों चालक और मालिकों के लिए इस दिशा में कड़े गाइडलाइन जारी होने चाहिए । । संभव है जब मौजूदा सिस्टम इस ओर ध्यान देगा। प्रमुख सड़कों के किनारे निश्चित दूरी पर सार्वजनिक शौचालय बनेंगे। तो यात्री बसों के अलावा निजी वाहन से यात्रा करने वाले लोग भी इसका उपयोग करेंगें।
अब तक प्रदेश का परिवहन विभाग की ओर से इस मामले को लेकर किसी तरह के पहल की जानकारी नहीं है। यात्रियों का कहना है कि जिस तरह से प्रदेश में सड़कें बन रही हैं, उससे आने वाले समय में सड़क होकर आने – जाने वालों की संख्या बढ़ेगी । इसे देखते हुए विभाग को इस दजिशा में भी पहल करना चाहिए ।