बिलासपुर–अटल बिहारी वाजपेयी बाजपेयी विश्वविद्यालय अपने जन्मकाल से ही लापरवाही का दूसरा नाम है। नए नामकरण के बाद भी अटल बिहारी वाजपेयी प्रबंधन लापरवाही का पर्याय बना हुआ है। कभी छात्रों की समस्या को लेकर तो कभी व्यवस्था को लेकर। हर सत्र में कोई ना कोई विवाद विश्वविद्यालय में देखने को मिलता है। एक बार फिर प्रबंधन की तरफ से बोर्ड ऑफ स्टडीज यानि अध्ययन मण्डल का विवाद का नया मामला सामने आया है। प्रबंधन ने प्रत्येक विषय में अध्ययन मण्डल गठन के समय यूजीसी नियमों को दरकिनार करते हुए अपनों का विशेष ख्याल रखा है। विरोध के बावजूद प्रबंधन ने महीनों बाद भी भूल सुधार को तैयार नहीं है। आखिर क्या है मामला पढ़ें खबर…
क्या कहता है यूजीसी की गाइड लाइन
यूजीसी गाइड लाइन 1973 के अनुसार प्रत्येक विश्ववि्द्यालय में कमोबेश सभी विषयों के लिए अलग अलग अध्ययन मण्डल यानि बोर्ड ऑफ स्टडीज का गठन किया जाएगा। टीम में कुलपति के निर्देश पर विश्वविद्यालय के मान्यता प्राप्त महावनिद्यालयों के सीनियर प्राध्यापक गाइड लाइन को पूरा करते हुए अध्ययन मण्डल के सदस्य होंगे। प्रत्येक अध्ययन मण्डल में 6- 7 सदस्य होंगे। मतलब विश्वविद्यालय में करीब 40 से अधिक विषयों का पठन पाठन कराया जाता है। जाहिर सी बात है कि चालिस विषयों का अध्ययन मण्डल होगा।
विश्वविद्यालय प्रशासन ने गाइड लाइन के अनुसार अध्ययन मण्डल बाडी का गठन तो किया। लेकिन प्रबंधन ने टीम गठन करते समय चुनिंदा लोगों पर ज्यादा ही मेहरबानी जाहिर किया है। मतलब नियम के खिलाफ ऐसे लोगों को टीम में शामिल किया गया है जो यूजीसी गाइड लाइन के पूरी तरह खिलाफ है। बताते चलें कि अध्ययन मण्डल टीम को संबधित विभाग के बच्चों के लिए सिलेबस तैयार करने से लेकर कई प्रकार के काम छात्र हित में करना होता है।
जानकारी के अनुसार एयू प्रबंधन ने टीम गठन के समय विषय वार सीनियरों पर जूनियर को महत्व दिया है। कई नाम तो ऐसे हैं जिनका मान्यता प्राप्त महाविद्यालय से भी नाता नहीं है। कई चेहरे तो बहुत पहले रिटायर्ड हो गए हैं। तो कई ऐसे भी चेहरे अध्ययन मण्डल में है जो सालो साल से विशेष कृपा हासिल कर अंगद की तरह पांव जमाए बैठे हैं।
क्या होता है अध्ययन मण्डल
जानकारी देते चलें कि अध्ययन मण्डल यानि बोर्ड स्टडीड का कार्यकाल तीन साल का होता है। यूजीसी गाइड लाइन के अनुसार अध्ययन मण्डल में सभी प्राध्यापकों को अवसर मिले। इस बात को ध्यान में रखते हुए तीन साल बाद पुराने चेहरों को बोर्ड में नहीं रखा जाता है। नई बाड़ी में नए चेहरों को प्राथमिकता दी जाती है। लेकिन विश्ववि्द्यालय के बोर्ड में कुछ ऐसे सदस्यों हैं जो पिछले 10-12 से बदले ही नहीं गए हैं। ऐसा नहीं है कि विश्वविद्यालय के पास विषय संबधित प्राध्यापकों की कमी है। बावजूद इसके इंतजार में खड़े प्राध्यपकों को दरकिनार कर ना केवल जूनियर बल्कि रिटायर्ड लोगो को प्रबंधन ने टीम में रखा है। इतना ही नहीं प्रबंधन ने विश्वविद्यालय से बाहर के प्राध्यपकों को अध्ययनन मण्डल में शामिल किया है। अध्ययन मण्डल में कई ऐसे भी चेहरे हैं जो पीजी विभागाध्यक्ष भी नहीं है। उन्हें भी फायदा पहुंचाया गया है।
स्थानीय पर बाहरी यूनिवर्सिटी को प्राथमिकता