छत्तीसगढ़ बीजेपी में गुजरात की तर्ज़ पर बड़े बदलाव की आहट से बढ़ रही बेचैनी…!

Chief Editor
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( गिरिज़ेय ) “पूरे घर के बदल डालूंगा………” । टीवी पर आने वाले एक विज्ञापन में यह जुमला अक्सर सभी ने सुना होगा। यह  बिजली के एक बल्ब का विज्ञापन है। जिसके जरिए यह मैसेज दिया जाता है कि बल्ब की क्वालिटी इतनी अच्छी है कि पूरे घर के बल्ब बदल देना ही फायदेमंद है। इस विज्ञापन का ज़िक्र करने की वजह यही है कि भारतीय जनता पार्टी ने कुछ दिन पहले जब गुजरात में मुख्यमंत्री सहित सरकार में सभी मंत्रियों को एक झटके में बदल दिया और नए चेहरे पेश किए तो कई राजनीतिक विश्लेषकों ने ….पूरे बदल डालूंगा…. वाला ज़ुमला याद किया था। गुजरात को बीजेपी की प्रयोगशाला के तौर पर पहचान दी जाती है। वहां हुए इस प्रयोग को अन्य राज्यों में भी आज़माए जाने की उम्मीद में अब कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या इस तरह का प्रयोग दूसरी जगह भी किया जा सकता है। अगर इस फार्मूले को सामने रखकर छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां भी कुछ ऐसे ही बदलाव की सुगबुगाहट महसूस की जा रही है।

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छत्तीसगढ़ में बीजेपी  2019 के पिछले लोकसभा चुनाव में यह नुस्खा आजमा भी चुकी है और कामयाबी भी दर्ज कर चुकी है। वह ऐसा चुनाव था जो 2018 के विधानसभा चुनाव के करीब तुरंत बाद हुआ था। छत्तीसगढ़ में 2018 में मिली करारी शिकस्त के बाद बीजेपी यहां जीत का रास्ता तलाश रही थी। उस समय कई सर्वेक्षणों के जरिए यह बात भी सामने आई थी कि छत्तीसगढ़ में उस समय के बीजेपी सांसदों के खिलाफ लोगों में असंतोष है और पार्टी को सांसदों के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का नुकसान उठाना पड़ सकता है । शायद इसी वजह से भाजपा ने अपने सभी सांसदों की टिकट एक सिरे से काट दी। जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह ( राजनांदगांव ) की टिकट भी शामिल थी। इसी तरह उस समय केंद्र सरकार में मंत्री रहे विष्णु देव  साय ( रायगढ़ )  को भी दोबारा मैदान में नहीं उतारा गया। इस तरह बीज़ेपी ने ग्यारह के ग्यारह नए चेहरे मैदान में उतारे  ।  जिनमें कुछ चेहरे प्रदेश की राजनीति में बहुत अधिक चर्चित नहीं रहे। हालाँकि  बीजेपी के इस दाँव को उस समय ज़ोख़िम भरा भी माना गया था  । क्योंकि कुछ दिन पहले ही विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एकतरफा जीत हासिल की थी। विधानसभा चुनाव नतीज़ों का सीन कुछ ऐसा था कि  सरगुजा इलाके के भरतपुर – सोनहत से शुरू होने वाले पहले नंबर के विधानसभा क्षेत्र से लगातार 20 वें नंबर यानी कोरबा जिले के रामपुर विधानसभा सीट तक सभी कांग्रेस के उम्मीदवार जीते थे। नतीजे की इस तस्वीर को देखकर लोग बीजेपी के लिए 2019 का लोकसभा चुनाव कठिन मान रहे थे। लेकिन इसे मोदी लहर का नाम दिया जाए या कुछ और…… छत्तीसगढ़ में नए चेहरे पेश करने वाला बीजेपी का दाँव सफल रहा और बीजेपी ने छत्तीसगढ़ की 11 में से 9 लोकसभा सीटें जीत ली।

हाल के दिनों की राजनीति पर नजर डालें तो डी पुरंदेश्वरी को छत्तीसगढ़ भाजपा  का प्रभारी बनाए जाने के बाद भी बदलाव के संकेत लगातार मिल रहे हैं। डी पुरंदेश्वरी ने यह कहकर बीजेपी की शांत और स्थिर नजर आ रही सियासत पर हलचल की शुरुआत कर दी थी कि अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी विकास के मुद्दे को लेकर मैदान में उतरेगी। उन्होंने यह भी साफ कर दिया था कि मुख्यमंत्री के रूप में कोई चेहरा सामने नहीं किया जाएगा। जाहिर सी बात है कि 15 साल लगातार मुख्यमंत्री रहते हुए डॉ रमन सिंह ही बीजेपी के चेहरे के रूप में पेश किए जाते रहे हैं। लेकिन प्रदेश प्रभारी के बयान के बाद यह माना जा रहा है कि पार्टी अब डॉ. रमन के मुकाबले नए चेहरे की तलाश कर रही है। इसकी वजह यह भी हो सकती है कि छत्तीसगढ़ में  पिछड़े तबके के मौज़ूदा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के छत्तीसगढ़िया अंदाज की वजह से जिस तरह समीकरण बदले हैं ।उसके मद्देनजर बीजेपी भी यहां किसी ओबीसी चेहरे को सामने करने की रणनीति पर काम कर रही है। इसके बाद बस्तर के चिंतन शिविर में जिस तरह पार्टी के कुछ पुराने नेताओं को न्योता  नहीं भेजा गया … । उसे भी इस रणनीति का हिस्सा माना गया।

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के लिए अभी करीब 2 साल का वक्त है। पार्टी के अंदरखाने से जो बातें निकल कर आ रही हैं ,उससे लगता है कि  गुज़रात की तर्ज़ पर छत्तीसगढ़ में भी ऊपर से नीचे तक बड़े बदलाव पर विचार मंथन चल रहा है। ऐसी स्थिति में छत्तीसगढ़ के अगले विधानसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ से विधानसभा उम्मीदवारों के रूप में ज्यादातर नए चेहरे सामने आ सकते हैं। खबरें यह भी हैं कि सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में 35 से 45 साल की उम्र के बीच वाले पार्टी के लोगों को तैयार करने की रणनीति पर बीजेपी ने काम शुरू कर दिया है। सभी जगह नए चेहरों की तलाश शुरू हो गई है। ऐसा मानने वालों की दलील यह भी है कि केंद्र में सत्ता में रहते हुए बीजेपी की नजर लगात़ार  सभी राज्यों में बनी रहती है और अलग-अलग नजरिए से समय-समय पर सर्वेक्षण भी कराए जाते हैं। जिसके जरिए शाय़द पार्टी को यह मैसेज भी पहुंच रहा है कि 15 साल की सरकार के दौर में लगातार 15 चेहरे ही सामने नजर आते रहे। जाहिर सी बात है कि इन नेताओं पर से भरोसा उठने की वजह से पार्टी को 2018 के विधानसभा चुनाव में जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा था। और भी कुछ तथ्य हो सकते हैं जिन्हें सामने रखकर भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश कर रहा है कि लगातार 15 साल सरकार में रहने के बाद भाजपा को 2018 में इतनी खराब स्थिति का सामना क्यों करना पड़ा। सभी कड़ियों को मिलाते हुए बीजेपी  नए चेहरों को सामने लाने की रणनीति पर काम कर रही है ।  यदि ऐसा है तो आने वाले समय में भाजपा के नए चेहरे सामने होंगे । जैसा बदलाव गुजरात में किया गया है कुछ वैसा ही प्रयोग छत्तीसगढ़ में भी किया जा सकता है। तब छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पिछले दो दशक से बीजेपी की राजनीति में लगातार छाए हुए बड़े नेताओं के चेहरे भी बदल जाए तो हैरत की बात नहीं होगी। शायद इस तरह के बड़े बदलाव की आहट सुनकर ही छत्तीसगढ़ में बीजेपी के दिग्गज नेताओँ के अँदर बेचैनी की झ़लक मिलने लगी है।

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