माफियों ने पांच पहाड़ियों को किया जमीदोज..प्रशासनिक रिश्तों ने किया वनांचल को नंगा…पहाड़ माफियों पर तीन पर नजर

BHASKAR MISHRA

तखतपुर(दिलीप तोलानी)— माफिया कितना भी दबंग क्यों ना हो..देवी देवताओं से जरूर डरता है। प्रशासन से डरने का…सवाल ही नहीं उठता।  यदि डरता तो आज से दो दशक पहले सात पहाडियों की श्रृंखला सिमटकर तीन पहाडियों तक नहीं पहुंचती। मतलब माफियों के प्रशासनिक रिश्तों ने हरी भरी पांच पहाड़ियों को मैदान बना दिया है। लेकिन बांसाझाल और अन्य गांव के लोगों को विश्वास है कि माता धुंधी की कृपा से एक पहाड़ी जरूर बच जाएगी…जिस पर खुद आदिशक्ति विरोजमान है। हां दूसरी पहाड़ी का तेजी से उत्खनन हो रहा है। शायद दो तीन साल के भीतर वहां भी  मैदान नजर आने लगेगा।

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खतरे में मता धुधी की पहाड़ी

तखतपुर से मात्र 20 किलोमीटर और कोटा मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर स्थित किसी जमाने में सात पहाड़ियों का एक जंगल हुआ करता था। पहाड़ माफियों की कृपा से धुंधी की सात पहाड़ियों में से आज मात्र तीन पहाडियां जीवित हैं। किसी जमाने में शायद प्रशासन ने यहां पहाड़ तोड़ने का ठेका दिया रहा होगा। और आज भी लायसेंसधारियों के साथ बिना अनुमति वालों का भी ठेका जारी है। जिसके चलते सात में चार पहाड़ गायब होकर मैदान में बदल गये हैं। तीन पहाड़ियों से पत्थर माफिया बेधड़क गिट्टियो की चोरी कर रहे हैं। इसमें एक पहाड़ी पर माता धुंधी विराजमान है। उम्मीद लगाया जा रहा है कि शायद यह पहाड़ी बच जाए।

गायब हो गयी पांच पहाड़ियां

एक समय धुंधी पहाड़ी को रमणीय स्थल में गिना जाता था। यहां के घने जंगल और जंगली जानवरो की चर्चा गुजरे समय में आम बात थी। हरी भरी वादियों के बीच आदिवासियों का गांव किसी पिकनिक स्पाट से कम नहीं हुआ करता था। आदिवासियों का जीवन यापन इन्हीं जंगलों से चलता था। लेकिन पहाड़ों की अधाधुंध खुदाई से जानवर गायब हो गए। अब इंसान पलायन को मजबूर हैं। क्योंकि जंगल और पहाड़ ने अब मैदान का रूप ले लिया है। ऐसे में लकड़ी,जंगली फल और जानवरों का गायब होना स्वाभाविक है।

स्थानीय लोगों ने बताया कि धुंधी पहाड़ को सालों साल से तोड़ा जा रहा है। गिट्टी माफिया रात दिन क्रेशर से पहाड़ों को गिट्टी में बदल रहे हैं। किसी जमाने में लाईसेंसी ठेकेदार धुंधी पहाड़ो को अपनी जागीर समझते थे। और आज कमोबेश सभी लायसेंसी और गैर लायसेंसी पहाड़ माफिया स्टोन क्रेशर से गिट्टी तैयार कर बैंक बैलेंस बढ़ा रहे है।

पहाड़ियों के खिलाफ संगठित अपराध

स्थानीय जानकरों ने बताया कि वनांचल ग्राम तेंदुआ, बाँसाझाल, ननचुई वनक्षेत्र के पहाड़ कभी बुलंदियों को छूते थे। आज धराशायी होकर मैदान चूम रहे हैं। एक समय धूंधी पहाड़ के घने जंगलों की चर्चा दूर दूर तक हुआ करती थी। दिन में भी स्थानीय लोग जंगलों में जाने से बचा करते थे। गांव वासियों को हमेशा जंगली जानवरों से भय रहता था। बावजूद इसके वनवासियों को धुंधी के पहाड़ो,जानवरों और जंगलों से कोई शिकायत नहीं थी।

 पहले लाइसेंस से अब बिना लायसेंस के पहाड़ों को तेजी से खत्म किया जा रहा है। चार पहाड़ खत्म हो गए हैं। एक पहाड पर माता धुंधी विरोजमान है। दो पहाड़ों का तेजी से उत्खनन हो रहा है। पहाड़ माफिया पहाड़ को गिट्टी बनाकर बेच रहे हैं। रोज विस्फोट हो रहा है। आदिवासियो का वन संसाधन खत्म हो रहा है। जाहिर सी बात है इस विनाशकारी खेल के पीछ प्रशासन की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है। बार बार शिकायत के बाद भी स्थानीय प्रशासन की चुप्पी समझ से परे है।

स्थानीय लोगों ने पीड़ा जाहिर करते हुए बतया कि लगातार विस्फोट से खेत बराबद हो रहे हैं। घरों की दरारें दिनो दिन बढ़ रही है। शिकायत के बाद भी ना तो प्रशासन सुन रहा है। फिर माफियों से दर्द पर मरहम की उम्मीद…खुद के साथ अन्याय है। जंगल के साथ जल के स्रोत भी सूख रहे हैं।

आस्था की देवी धुंधी माई

पहाड़ो के बीच वनवासियों की देवी माता धुंधी का मंदिर बांसाझाल में है। कहा जाता है कि यहां सच्चे मन से की गयी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती है। बुधवार और रविवार को मंदिर में भक्तों का तांता लगता है। कुछ देवी भक्तों की कृपा से श्रद्धालुओं के बीच भोजपन प्रसाद का वितरण किया जाता है। लेकिन क्षेत्र वासियों को तकलीफ है कि माता धुंधी सबकी मनोकामनाएं पूरी करती है। लेकिन अपने आदिवासी बेटों की दर्द कब हरेंगी… समझ नहीं आ रहा है। चिंता इस बात की है कि क्या पहाड़ माफिया एक दिन माता धुंधी की पहाड़ी को भी तोड़कर मैदान बना देंगे। यह आने वाला समय ही बताएगा।

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