(रुद्र अवस्थी)अक्सर यह बात कही जाती है और सच भी मानी जाती है कि सत्ता और प्रशासन का काम इकबाल से चलता है। खासकर समाज की व्यवस्था में अपनी मनमानी चलाने वाले लोगों पर काबू पाने के लिए सरकार और प्रशासन को इकबाल की जरूरत होती है । लेकिन यदि कहीं कोई माफिया और अपनी मनमानी चलाने वाला ही दमदार नजर आए तो मान लेना चाहिए कि प्रशासन के इकबाल में कहीं ना कहीं कोई नुक्स जरूर है। न्यायधानी और आसपास के इलाके में पिछले दिनों से जिस तरह खदान माफियाओं की मनमानी चल रही है ,उससे भी कुछ ऐसी ही झलक मिलती है। हाल ही में लोफंदी के प्रतिबंधित के घाट से अवैध तरीके से रेत लेकर आ रहे एक़ ट्रक की चपेट में आने से नौजवान की दर्दनाक मौत हुई । उससे एक बार फिर रेत माफिया की चर्चा आम हो गई है । मजेदार बात है कि सरकार में ऊपर बड़े पदों पर बैठे लोग अक्सर खनन माफियाओं पर लगाम लगाने की बात करते हैं । लेकिन प्रशासन की नाक के नीचे पूरी तरह से खुला खेल चल रहा है। इस तरह के माफियाओं को कितना संरक्षण मिल रहा है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि अरपा में ज़िन रेत खदानों की अनुमति दी गई है वहां से रेत नहीं निकाली जा रही है। उसकी जगह अवैध खदानों से रेत निकल रही है । रेत ढोने वाली बड़ी-बड़ी ट्रकें आम लोगों के लिए बनाई गई सड़कों को टैंकर की तरह रौंदती चलती है और सब कुछ नेस्तनाबूत करते हुए कुछ ही दिनों में सड़क को धूल –मिट्टी- गिट्टी के ढेर में तब्दील कर देती हैं । यहां तक तो फिर भी सहन किया जा सकता है । लेकिन जब बात लोगों की जान पर आती है तो लोगों का गुस्सा लाजिमी है। ऐसा ही गुस्सा लोखंडी हादसे के बाद सामने आया । बार-बार यह बात कही जा रही है कि रेत माफिया अवैध तरीके से रेत का उत्खनन कर रहे हैं। लोफ़ंदी जैसे हादसे में एक मासूम को सड़क पर चींटी की मानिंद मसल देने के बाद यह तो पक्का हो गया है कि कोई – न – कोई तो माफ़िया है , जो प्रशासन की कथित पाबंदी के बाद भी अरपा से रेत निकाल रहा है।वह भी साहब के ऑफ़िस से कुछ ही दूरी पर…. करीब़ – करीब़ नाक़ के नीचे….. । लेकिन सड़क पर खुलेआम मासूम का ख़ून बिख़ेरकर सरासर गायब़ हो जाने वाले वे लोग कौन हैं……? क्या इतने दिन गुज़रने के बाद भी प्रशासन को उनका पता – ठिकाना नहीं मिल सका…… ? उनके तक पहुंचने से रोकता कौन है….? और दिनदहाड़े अपनी मनमानी चलाने वाले इन लोगों तक पहुंचने का रास्ता क्यों बंद है ।अभी इस पहेली को समझ पाना मुशकिल है। लगता है शायद व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों को उनके इकबाल की याद फिर दिलानी पड़ेगी …….तब जाकर माइनिंग माफिया तक पहुंचने का रास्ता खुल सकेगा ।
नए साल में नई मुहिम़
न्यायधानी के लोगों को अपने नुमाइंदों को भी अपनी जिम्मेदारी की याद दिलानी पड़ रही है। इस शहर के लोगों का इकबाल अपने हक के इंकलाब को लेकर हमेशा ही बुलंद रहा है। इतिहास गवाह है कि बिलासपुर को अब तक जो कुछ भी मिला है वह जन संघर्ष से ही मिला है। इसे याद करते हुए शहर के लोग एक बार फिर हवाई सेवा की मांग को लेकर सड़क पर आ रहे हैं। पिछले करीब 220 दिनों से चल रहे अखंड धरना प्रदर्शन के बाद भी अब तक इस मांग को लेकर कोई ठोस पहल नजर नहीं आ रही है। इसे देखते हुए हवाई सुविधा जन संघर्ष समिति ने नए साल में आंदोलन तेज करने का हलफ़ लिया है। इसी सिलसिले में नए साल के पहले दिन हवाई सुविधा के लिए सांसद के निवास पर जन बंधन आंदोलन किया गया। इस दौरान सांसद के बंगले का घेराव कर प्रतीक स्वरूप तालाबंदी की गई। आंदोलन में लगे लोगों का कहना है कि लंबे संघर्ष के बावजूद कोई ठोस पहल नहीं होने पर जनता के नुमाइंदों को जगाने के लिए मजबूरन इस तरह का कदम उठाया जा रहा है। रेलवे जोन की मांग को लेकर हुए ऐतिहासिक आंदोलन के साथ ही अन्य कई आंदोलनों में बिलासपुर के लोग अपने जनप्रतिनिधियों को सजग करने के लिए मुहिम चला चुके हैं और घटनाएँ इतिहास में दर्ज़ हैं। संघर्ष समिति के साथ ही तमाम राजनीतिक -सामाजिक -व्यवसायिक संगठनों को उम्मीद है कि नए साल में लिया गया यह संकल्प पूरा हो सकेगा और जनप्रतिनिधि बिलासपुर शहर को यह सौगात हवाई सुविधा की सौगात दिला कर जनप्रतिनिधि भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर सकेंगे।
शांत फ़िंज़ां में गोलियों की गूँज़
जिम्मेदारी तो अब न्यायधानी पुलिस की भी बढ़ गई है। तेजी से बढ़ रहे शहर में अपराधों पर काबू पाने के लिए पुलिस के सामने फिर चुनौतियां नजर आ रही है। चोरी – गिरहकटी जैसे अपराधों के साथ ही हत्या के मामले भी सामने आ रहे हैं। न्यायधानी का लाल खदान वाला इलाका जो पिछले कुछ अर्से से शांत माना जा रहा था। वहां एक बार फिर गोलियों की धाँय – धाँय सुनाई दे रही है। हाल के दिनों में लाल खदान के दो आदतन अपराधियों के बीच झगड़े में गोली चली । जिसमें एक आदतन अपराधी की मौत हो गई। वारदात के बाद आरोपी मौके से भाग गए। फिर वारदात के कई दिनों बाद पुलिस का दबाव बढ़ने पर उन्होंने सरेंडर कर दिया । हालांकि जिस तरह ग्रीन पार्क कॉलोनी मैं हुई लूटपाट के मामले में घर के पुराने नौकर और एक आदतन अपराधी तक पहुंच कर पुलिस में अपनी मुस्तैदी का प्रमाण दे दिया है। लेकिन आधुनिक तकनीकी और चाक-चौबंद इंतजाम के बीच न्यायधानी के लोग उम्मीद कर रहे हैं कि वारदात से पहले ही उस पर रोक लगाने की दिशा में पुलिस कामयाबी हासिल करें तो बेहतर होगा। जिससे शांति के टापू में जुर्म – जरायम करने वालों को पनाह ना मिल सके और वारदात से पहले ही अपराध करने वालों की पोल खुल सके।
उनके लिए अब तरस रहीं कुर्सियां
वैसे इस हफ्ते प्रदेश के सबसे प्रमुख विपक्षी दल और लगातार 15 साल तक छत्तीसगढ़ में सत्ता संभालने वाली भारतीय जनता पार्टी संगठन की भी पोल खुल गई। पार्टी की ओर से कार्यकर्ताओं का 2 दिन का ट्रेनिंग प्रोग्राम रखा गया था। 2 दिन चले इस कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर में जिले के पांच मंडलों के कार्यकर्ता और पदाधिकारियों को शामिल होना था। लेकिन इस आयोजन का कवरेज करने पहुंचे पत्रकारों ने यह भी देख लिया कि प्रशिक्षण शिविर स्थल में कुर्सियां 2 दिनों तक कार्यकर्ताओं को तरसती रही। जितने लोगों के आने की उम्मीद थी , वे नहीं आए । एक राजनीतिक समीक्षक की ओर से इस पर की गई टिप्पणी दिलचस्प कही जा सकती है। जिसमें उन्होंने कहा कि जिस पार्टी के लोग 15 साल तक कुर्सियों में जमे रहे ,अब प्रदेश की जनता ने उनकी कुर्सी छीन ली है और कुर्सियों से वे इतने दूर हो गए हैं कि अब कुर्सियां ही कार्यकर्ताओं के लिए तरसने लगी हैं। ज़मीनी लोगों के साथ हो रहे सलूक़ की वज़ह से लोग दूरी बनाकर अपनी इज़्ज़त बचाने में लगे हैं। नतीज़ा यह है कि सफ़ेद कबूतर पालने के शौक़ में हाथ से तोते ही उड़ते जा रहे हैं…..। वैसे पिछले कुछ समय से पार्टी संगठन के कार्यक्रमों के दौरान जो नजारे देखने को मिल रहे हैं , उसकी रोशनी में यह भी माना जा रहा है कि पार्टी में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। फिर भी जिस तरह छत्तीसगढ़ के संगठन प्रभारी को बदले जाने के साथ ही ऊपर के स्तर पर बदलाव की जो शुरुआत हुई है , उसका असर नीचे के स्तर पर भी होगा और हालात सुधारने के लिए ज़मीनी कार्यकर्ताओं की भावनाओं के अनुरूप व्यवस्था की जाएगी । ऐसी उम्मीद पार्टी का भला चाहने वाले लोग कर रहे हैं।
पुरानी पेंशन बहाली के लिए एकजुट कर्मचारी
व्यवस्था में सुधार की उम्मीद तो छत्तीसगढ़ सरकार के कर्मचारियों को भी है । प्रदेश के ढाई लाख से अधिक कर्मचारी उम्मीद कर रहे हैं कि नए साल में उन्हें पुरानी पेंशन योजना का लाभ मिलेगा। राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा के राष्ट्रीय आह्वान पर कर्मचारियों ने नए साल की 1 तारीख को ब्लैक डे मनाया। एनपीएस के कर्मचारियों ने तख्ती लेकर प्रदर्शन किया और पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर एकजुटता का संदेश दिया । कर्मचारियों ने काली पट्टी और काला मास्क लगाकर प्रदर्शन करते हुए अपनी मांग को प्रदेश सरकार तक पहुंचाने में की कोशिश की। मांग पूरी ना होने पर संगठन की ओर से आंदोलन का विस्तार किए जाने की भी बात कही गई है। अब देखना यह है कि सरकार की ओर से उनकी मांगों को पूरा करने के लिए कब तक ठोस कदम उठाया जाएगा।
क्या नेताओँ के लिए नहीं हैं…गाइडलाइन …. ?
ठोस कदम उठाने की ज़रूरत उन जनप्रतिनिधियों के लिए भी है , जो समय – समय पर ख़ुद भी सरकारी गाइडलाइन को ठेंगा दिख़ाने से नहीं चूकते । नए साल का जश्न हर बार मनाया जाता है। लेकिन इस बार यह जश्न कुछ अलग तरह का था । लोगों ने प्रशासन की निगरानी में नया साल मनाया। नए साल के जश्न को देखते हुए प्रशासन की ओर से गाइडलाइन जारी की गई थी। जिससे करोना काल में सामाजिक दूरी का पालन करते हुए लोग नए साल का स्वागत करें। लोगों से जितना हो सके उतना पालन किया। लेकिन इस दौरान खबर यह भी आई कि एक नेता ने सरकारी निर्देशों की खुलेआम धज्जियां उड़ाते हुए सड़क पर अपना बर्थडे मनाया। इसे रोकने के लिए किसी तरह की कोशिश नजर नहीं आई। नेताजी के जन्मदिन समारोह का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होता रहा। अपन यह तो नहीं कह सकते कि इस तरह के सड़क छाप आयोजन से लोग किस तरह की प्रेरणा लेंगे । लेकिन सरकारी नियमों का सम्मान करने वाले आम लोग इस सवाल का जवाब जरूर तलाश रहे हैं कि क्या नियम – कायदे – गाइडलाइन नेताओं के लिए नहीं है …. ?