जयंती पर विशेष:पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी,संस्कारों में रचा बसा एक नाम..

Shri Mi
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(तारण प्रकाश सिन्हा)जैसे खैरागढ़ केवल एक शहर का नाम नहीं है, वैसे ही पदुमलाल पुन्ना लाल बख्शी भी केवल एक व्यक्ति का नाम नहीं है। खैरागढ़ और पदुमलाल पुन्ना लाल बख्शी दोनों ही सृजन की परंपराओं के नाम भी हैं, जो हमारे संस्कारों में गहरे तक रचे-बसे हैं। खैरागढ़ और पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी कहते ही उन तमाम रचनाधर्मितयों के नाम भी उच्चारित हो जाते हैं, जिन्होंने इस परंपरा को आगे बढ़ाया है, बढ़ा रहे हैं। यदि यूं कहें कि ये राजानंदगांव जिले की कला-परंपरा के प्रतीक हैं, तो यह बहुत संकुचित बात हो जाएगी, इनके विस्तार के लिए छत्तीसगढ़ और पूरी भारत-भूमि भी छोटी होगी। हिंदी साहित्य और भारतीय कला परंपरा ने आज पूरे विश्व में जहां-जहां तक विस्तार पाया है, वहां-वहां तक खैरागढ़ और पदुमलाल पुन्ना लाल बख्शी जी की परंपरा विस्तृत है।

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सृजन का अर्थ निर्माण जरूर है, लेकिन हर निर्माण को सृजन तो नहीं कहा जा सकता। मूल्यों की मिट्टी को संवेदनाओं से सानकर जो गढ़ा जाता है वही सृजन हो सकता है, वही पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी और खैरागढ़ की परंपरा हो सकती है। हिंदी साहित्य के शीर्ष पर विराजमान खैरागढ़ में जन्म इस तपस्वी की संवेदना का स्तर उनकी एक बाल कविता में देखिएगा-

बुढ़िया चला रही थी चक्की,
पूरे साठ वर्ष की पक्की।
दोने में थी रखी मिठाई,
उस पर उड़कर मक्खी आई।
बुढ़िया बाँस उठाकर दौड़ी,
बिल्ली खाने लगी पकौड़ी।
झपटी बुढ़िया घर के अंदर,
कुत्ता भागा रोटी लेकर।
बुढ़िया तब फिर निकली बाहर,
बकरा घुसा तुरत ही भीतर।
बुढ़िया चली, गिर गया मटका,
तब तक वह बकरा भी सटका।
बुढ़िया बैठ गई तब थककर,
सौंप दिया बिल्ली को ही घर।

पदुमलाल पुन्ना बख्शी जी की यह बाल-कविता बच्चों के सामने दादा-नानी की छवि प्रस्तुत करते हुए उम्र के एक पड़ाव में संबंधों के क्षरण से उपजने वाली मानव की लाचारी के प्रति बच्चों को सचेत भी करती है। 60 साल की उम्र में चक्की पीसती बूढ़ी दादी-नानी के प्रति दया जगाती है। बख्शी जी ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में अपनी कलम चलाई है, लेकिन वे एक निबंधकार के रूप में ज्यादा जाने जाते हैं। उनका एक निबंध है- क्या लिखूं। इसमें वे स्वयं का उदाहरण देकर बताते हैं कि कब लिखना चाहिए, क्या लिखना चाहिए, कैसे लिखना चाहिए और क्यों लिखना चाहिए। कलम को लेकर स्वयं हमेशा सतर्क रहने वाले और दूसरों को भी स-तर्क करने वाले पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी की आज जयंती है।

राजनांदगांव जिले से अलग होकर खैरागढ़ जिले में पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी की रचना परंपरा खूब फले-फूले, राजनांदगांव, छत्तीसगढ़ और देश और दुनियाभर में छितराई उनकी लताओं पर सदैव सुंगधित पुष्प खिलते रहें। यही कामना है।

साहित्य महर्षि पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी को उनकी जयंती पर शत-शत नमन।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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