महात्मा ने आत्मबल को बनाया हथियार…मुख्य अतिथि ने बताया…भ्रमण से दूर किया भ्रम…कुलपति ने कहा..तैयार करेंगे गांधी का वातावरण

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—महात्मा गांधी को पता था कि भ्रमण से भ्रम दूर होता है। उन्होने हिन्दुस्तान को किसी दूसरे के नहीं..बल्कि भ्रमण कर अपने नजरों से देखा।  उन्होने हिन्सुतान के आत्मबल को जगाया। उन्होने अन्य लोगों की तरह समय का इंतजार नहीं किया। बल्कि सत्य अहिंसा,कर्मयोग से आजादी के लिए वातावरण तैयार किया। क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से पता है कि समय होता नहीं तैयार किया जाता है। आज पहले से कहीं ज्यादा गांधी और उनकी विचारधारा प्रासंगिक हैं। आश्चर्य की बात है कि हम सब कुछ जानते हुए भी चूक रहे हैं। यह बातें सीजी वाल के प्रधान संपादक रूद्र अवस्थी ने महात्मा गांधी की पुण्य तिथि और शहीद दिवस पर अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यशाला के दौरान कही। इस दौरान विश्वविद्यालन के कुलपति कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे आचार्य अरूण दिवाकर नाथ वाजपेयी ने कहा..हम इस बात से ना केवल इत्तेफाक रखतें हैं। बल्कि आज यह कहने में खुशी हो रही है कि अटल विश्वविद्यालय में गांधी जैसा सोचते थे वैसा ही वातावरण ना केवल तैयार किया जाएगा। बल्कि गांधी के मूल्यों को सहेजा भी जाएगा। ऐसा कर उन्हें खुशी होगी। कार्यक्रम में हर्ष पाण्डेय ने भी गांधी के जीवन पर प्रकाश डाला।

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गांधी दर्शन पर कार्यशाला

           अटल बिहारी विश्वविद्यालय में महात्मा गांधी की पुण्य तिथि और शहीद दिवस पर विशेष कार्यशाला का आयोजन किया। बतौर मुख्य वक्ता और मुख्यअतिथि के रूप में सीजी वाल प्रधान संपादक रूद्र अवस्थी ने शिरकत किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्याल के कुलपति आचार्य एडीए वाजपेयी ने आनलाइन शिरकत किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथियों ने महात्मा गांधी की चित्र पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया।

गांधी सबसे सशक्त प्रयोगधर्मी

अपने संबोधन में रूद्र अवस्थी ने कहा..महात्मा गांधी जैसा सफल प्रयोगधर्मी आज तक विश्व में नहीं आया। उन्होने वक्त का इंतजार नही किया। बल्कि वक्त को अपने अनुसार संचालन किया। अवस्थी ने बताया कि गांधी पर बहुत पढ़ा सुना और कार्यक्रम का आयोजन किया जाता रहा है। और आगे भी यह प्रक्रिया चलती रहेगी। सवाल उठता है कि हमने गांधी को कितना समझा। गांधी जब अफ्रीका से भारत लौटे तो उन्हें गुलाम भारत की पीड़ा का बहुत अच्छी तरह से अहसास था। उन्हें पता था कि भ्रमण से भ्रम दूर होता है। सब कुछ जानते हुए भी उन्होने भारत को बहुत ही नजदीक से देखा। इस दौरान उन्हें पता चला कि भारत को हथियार नहीं..बल्कि छिपे हुए आत्मबल को जगाने की जरूरत है। और उन्होंने सत्य अहिंसा,और नैतिकता को हथियार बनाया। लोगों में छिपी सबसे बड़ी ताकत आत्मबल को जगाया। फिर कहने की जरूरत नहीं है कि हमें कैसे आजादी मिली।

दिशाहीनता पर लगाम

 इस दौरान मुख्यवक्ता ने सुन्दर काण्ड की हनुमान पर लिखी चौपाई का जिक्र किया। उन्होने कहा हनुमान के लिए कुछ भी कठिन नहीं था। लेकिन उन्होने एक पर्वत पर चढ़कर लंका की वस्तुस्थिति का जायजा लिया। इसके बाद लंका में हनुमान ने किया किया बताने की जरूरत नहीं है। और माता सीता हनुमान के पास आ गयी। मुख्यवक्ता ने इस दौरान खरगोश और कछुआ दौड़ का भी जिक्र किया। उन्होने बताया कि आत्मबल और सत्य की जीत हमेशा होती है। कछुआ के साथ भी ऐसा ही हुआ। पहली दौड़ के बाद दूसरी दौड़ में भी कछुआ को जीत मिली। यद्यपि खरगोश ने इस बार ना केवल ज्यादा दौड़ लगाया। बल्कि पिछली बार की तरह कहीं विश्राम नही किया। मतलब गाधी दिशाहीनता के बाद होने आने वाले परिणाम का भी अनुभव था। यही कारण है कि उन्होने अपने हर आंदोलन को नैतिक की तराजू पर तौलकर सभी समाज में आत्मबल जगाया। बल्कि देश को आजाद भी कराया। क्योंकि गांधी जानते थे कि आत्मबल से बड़ी कोई दूसरी ताकत नहीं है।

अर्थ व्यवस्था की उल्टी धारा

मुख्यवक्ता ने कहा कि आज अर्थव्यवस्था की धारा उल्टी है। एक समय शहर का बाजार गांव हुआ करता था।आज गांव का बाजार शहर हो गया। इस व्यवस्था को केवल गांधी के पदचिन्हों पर ही चलकर दुरूस्त किया जा सकता है।

विश्वविद्यालय में तैयार करेंगे वातावरण

इस दौरान विश्वविदाय के कुलपति एडीएन वाजपेयी ने कहा कि मुझे डर्बन समेत उस स्थान पर जाने का अवसर मिला। जहां राष्ट्पिता का अपममान हुआ था। मुझे मुख्यवक्ता रूद्र अवस्थी के बातों से बल मिला है। गांधी जितना तब प्रासंगिक थे..उससे कहीं ज्यादा आज प्रासंगिक हैं। मै देश प्रदेश या जिला नहीं बल्कि विश्वविद्यालय में गांधी प्रभावित युग का वातावरण तैयार करने का संकल्प लेता हूं। हमारे पास 65 एकड़ जमीन है। मजबूत कंधे और पढ़े लिखे लोग हैं। हम विश्वविद्यालय को गांधी के पदचिन्हों के अनुसार तैयार करेंगे। 

विदेशो में भारत का मतलब गांधी का देश

वाजपेयी ने बताया कि यह सच है कि हम उलझनों में उलझे हुए हैं। लेकिन यह जिन्दगी का सामान्य हिस्सा है। हम गांधी के सपनों को विश्वविद्यालय में साकार करेंगे। और इसके बाद परिणाम विश्वविद्यालय परिसर के बाहर भी दिखाई देगा।कुलपति ने कहा विदेश में हिन्दुस्तान की पहचान गांधी से है। एक प्रसंग का जिक्र करते हुए कहा कि घाना में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान यूएनओ महासचिव कोफी अन्नान ने जब परिचय के दौरान मुझे गांधी के देश का कहा..उस समय असीम गर्व का अनुभव हुआ।

 अथितियों ने डाला प्रकाश

कार्यक्रम को सबसे पहले हर्ष पाण्डेय ने संबोधित किया। उन्होने इस दौरान गांधी के जीवन और संघर्ष पर सम्पूर्ण प्रकाश डाला। इस दौरान मुख्य रूप से कुलसचिव शैलेन्द्र दुबे, उपकुलसचिव नेहा यादव, नेहा राठिया, वित्त अधिकारी अलेक्जेंडर कुजुर, डॉ यशवंत पटेल, डॉ पूजा पांडेय, डॉ सीमा बेरोलकर, डॉ लतिका भाटिया, डॉ सुमोना भट्टाचार्य, डॉ कलाधर, डॉ जितेन्द्र गुप्ता, डॉ हैरी जार्ज, डॉ हामिद अब्दुल्ला, डॉ गौरव साहू, डॉ सौमित्र तिवारी, डॉ रेवा कुलश्रेष्ठ, डॉ धर्मेंद्र कश्यप विकास शर्मा, समेत विश्व विद्यालय के समस्त प्राध्यापक, अधिकारी और कर्मचारी गण उपस्थित थे।

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