जर्मन शासक को भी था..लीजेन्ड बनने का शौक…नगर विधायक ने कहा…प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति ही नहीं..लौह पुरूष का भी किया अपमान..आदिवासी समाज को बनाया चुनावी मोहरा

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—जर्मनी के एक शासक को हमेशा सुर्खियों में रहना पसंद था। और उसने पूरे जीवन में ऐसा ही किया। उसका मानना था कि यदि झूठ बार बार बोला जाए…तो एक ना एक दिन लोग उसे सच मान ही लेंगे। भारत के प्रधानमंत्री का भी ऐसा ही सोचना और समझना है। उन्होने हमेशा जनता से झूठ बोला। जनता अब धीरे धीरे प्रधानमंत्री के ख्याली पुलाव  को समझ चुकी है। कर्नाटक में जनता ने प्रधानमंत्री के लोक लुभावन वादों को दरकिनार कर सच और झूठ का फैसला कर दिया है। एक बार फिर प्रधानमंत्री और केन्द्र सरकार ने भारत के संविधान और राष्ट्रपति का अपमान कर सुद को बड़ा साबित करने का प्रयास किया है। यह बातें नगर विधायक शैलेष पाण्डेय ने प्रेस नोट जारी कर बताया है।

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नगर विधायक शैलेष पाण्डेय ने बताया कि देश के संविधा से बड़ा कोई हो ही नहीं सकता है। संविधान में भारत का राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च नागरिक होता है। संसद की सारी शक्तियां राष्ट्रपति में समाहित है। भारतीय संविधान के धारा 79 में बताया गया है कि देश का एक संसद होगा। संसद राज्यसभा और लोकसभा के अलावा राष्ट्रपति होंगे। संसद की शक्तियां राष्ट्रपति में समाहित होंगी। जाहिर सी बात है कि संविधान में स्पष्ट है कि संसद में सर्वोच्च स्थान राष्ट्रपति का है। प्रोटोकाल में भी राष्ट्रपति देश का पहला स्थान हासिल है। इसके बाद उपराष्ट्रपति,विधानसभा अध्यक्ष और फिर चौथा स्थान प्रधानमंत्री का आता है। 

 

बावजूद इसके हमेशा की तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री ने अपने आप को संसद और राष्ट्रपति होने का बोध हो गया है। साल 2020 में नए संसद का जब शिलान्यास किया गया तो उन्होने राष्ट्रपति से शिलान्यास करना तो दूर बल्कि बुलाया भी नहीं। एक बार फिर दो साल बाद प्रधानमंत्री ने 2020 का पुरनावृत्ति किया है। राष्ट्रपति को दरकिनार कर सेन्ट्रल विष्टा का लोकार्पण करने का एलान किया है। मजेदार बात है कि इस बार भी देश के प्रथम नागरिक को नहीं बुलाया गया है। जबकि यह देश का सरासर अपमान है।

 

शैलेष ने बताया कि राष्ट्रपति चुनाव के समय आदिवासी समाज को खुश करने भाजपा नेताओं ने आदिवासी कार्ड  खेला। अब आदिवासी  समाज का अपमान किया जा रहा है। राष्ट्रपति की गरिमा को चोट पहुंचाया जा रहा है।मा्मले को लेकर संसद की 19 पार्टियों ने  सेन्ट्रल विष्टा का लोकार्पण का सवाल उठाते हुए नए संसद भवन को राष्ट्रपति के हाथों लोकार्पण किए जाने की मांग की है। लेकिन भाजपा के घमंडी सरकार के मुखिया को जर्मनी के शासक की तरह भ्रम हो गया है कि वह देश और संविधान से ऊपर है। इसलिए सेन्ट्रल विष्टा का लोकार्पण नरेन्द्र मोदी के हाथो कराने का फैसला किया है। दरअसल देश के प्रधानमंत्री को लीजेन्ड बनने का शौक है। अहमदाबाद स्थित स्टेडियम इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। देश के पहले उप प्रधानमंत्री और लौह पुरूष सरदार बल्लभ भाई पटेल का नाम हटाकर स्टेडियम का नामकरण नरेन्द्र मोदी किया गया। सच तो यह है कि प्रधानमंत्री अपने से ऊपर किसी को देखना ही नहीं चाहते हैं।

 

सेन्ट्रल विष्टा का लोकार्पण राष्ट्रपति के हाथों नहीं किए जाने से नाराज विपक्ष के सांसदो ने कार्यक्रम का बहिष्कार कर देश के संविधान को बचाने का भगीरथ प्रयास किया है। साथ ही मोदी के अधिनायकवादी सोच का पर्दाफाश भी किया है। कांग्रेस पार्टी फिरकापरस्त और देश विरोधी नीतियों को बर्दास्त नहीं करेगी। 

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