पढ़िए ख़बर के भीतर की ख़बर- कांग्रेस-प्रो कबड्डी :शैलेष पाण्डेय क्रास पट्टी छूकर लौटेंगे या कैच हो जाएंगे?

Shri Mi
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(गिरिज़ेय ) हम सभी जानते हैं की कबड्डी बहुत ही दिलचस्प खेल है। इस खेल में बहुत बड़े मैदान या दूसरे साजो – सामान की जरूरत नहीं पड़ती। छोटी सी जगह पर बीच में एक लाइन खींच कर दो टीमें अलग-अलग हिस्से में बंट जाती हैं और उनके बीच जोर आजमाइश शुरू हो जाती है। वैसे तो इस खेल में बहुत अधिक दांवपेच की जरूरत नहीं पड़ती । लेकिन क्रॉस पट्टी घेरकर खेलने का दांव बड़ा दिलचस्प माना जाता है। जिसमें एक टीम के लोग क्रॉस पट्टी घेरकर खड़े हो जाते हैं और सर्विस करने वाले खिलाड़ी के लिए चुनौती होती है कि वह क्रॉस पट्टी छूकर नॉटऑउटस वापस लौट जाए। जब भी कबड्डी में क्रॉस पट्टी घेरने का दाँव आज़माया ज़ाता है , तब दर्शक भी सांस रोककर जानना चाहते हैं कि इसका फायदा किस टीम को मिल रहा है। इसकी एक वजह यह भी है कि क्रॉश पट्टी छूने की कोशिश में कई बार सर्विस करने वाला रेज़र खिलाड़ी अपने अपोजिट टीम के डिफेंडर के हाथों हड़बड़ी में कैच हो जाता है या फिर दो – चार लोगों को आउट करके – मारकर वापस लौटता है ।

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कबड्डी के इस सीन को याद रखिएगा……।आज़ के दौर में ज़ब प्रो –कबड्डी का चलन है, ऐसे समय में हम इसलिए इस दाँव का ज़िक्र कर रहे हैं, चूँकि कांग्रेस की राजनीति में इन दिनों जो कुछ चल रहा है उसमें कबड्डी के इस दांव की काफ़ी झल़क मिलती है। जिसकी वजह से बिलासपुर इन दिनों कांग्रेस की सियासी उठापटक का एपिक सेंटर बना हुआ है। जिसमें सामान्य से खेल कबड्डी की तरह दो टीमें आमने – सामने हैं और क्रॉश पट्टी बंद कर खेल रही एक टीम ने अपने अपोनेंट खिलाड़ी के सामने ऐसा चेलेंज़ पेश किया है कि अब आर-पार का मुक़ाबला नज़र आ रहा है। भीतर घुसकर खेलने वाला खिलाड़ी इसमें घिर भी सकता है और इस बार उसने दम दिखाया तो सामने वाली टीम के दो – चार खिलाड़ी आउट कर इस चक्रव्यू से बाहर भी निकल सकता है।

कांग्रेस की राजनीति में चल रही उठापटक में बिलासपुर क्यूं एपिक सेंटर बना ….इस पर पूरी खबर आ चुकी है। सिलसिलेवार घटनाक्रम के बारे में सभी को मालूम भी है। इस बारे में बात करते हुए एक और सीन ज़ेहन मे आता है। याद कीजिए कि किसी सिनेमा हाल या शॉपिंग काम्प्लेस या रेलवे स्टेशन के पास कोई साइकिल स्टैंड है। जिसमें साइकिलें रखी हुई हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि किनारे की एक साइकिल गिरती है तो एक-एक कर उस लाइन की सारी साइकिलें गिरतीं चलीं जाती है । जोड़कर देख़ लीज़िए पूरा घटनाक्रम कुछ ऐसा ही नज़र आएगा….। शुरूआत से देख़िए …. सिम्स में इलाज के लिए पहुंचे मरीज को समय पर सुविधा नहीं मिल सकी…। तो उसने स्वास्थ्य मंत्री के सबसे नजदीकी को नेता को फोन मिलाया।

सिम्स पहुंचने के बाद उस नेता और सिम्स के टेक्नीशियन के बीच कथित विवाद चर्चा में आया। इसके बाद टेक्नीशियन ने कांग्रेस नेता के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी और कांग्रेस नेता के खिलाफ एफ आई आर भी हो गया। एफ आई आर की खबर मिलने के बाद बिलासपुर विधायक शैलेश पांडे अपने साथ पंकज सिंह को लेकर कोतवाली पहुंचे । वहां भीड़ ने थाने का घेराव किया। नारेबाजी की। और इसी समय विधायक शैलेश पांडे ने अपने चर्चित बयान में खुलकर कहा कि वे टी. एस. सिंहदेव के आदमी हैं…. इसलिए पुलिस ठोंक रही है।एक मंत्री के आदमियों को ठोंकने वाला यह बयान सामने आने के बाद बिलासपुर शहर कांग्रेस कमेटी ने मीटिंग बुलाई और एमएलए शैलेश पांडे को 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित करने की सिफारिश वाला प्रस्ताव पारित कर दिया । अब इस पूरे सीन को साइकिल स्टैंड की सीन से मिला कर देखिए समझा जा सकता है कि सिम्स में समय पर इलाज नहीं मिलने से पहली साईकिल गिरी और एक – दो – तीन – चार……. गिरते-गिरते एमएलए के निष्कासन की सिफारिश तक पहुंच गई।फ़िलहाल साइकिलों का गिरना यहीं पर रुक गया है।

अब लोगों की दिलचस्पी इस बात पर है कि आगे क्या होगा….. ? इस सवाल का जवाब तलाश रहे लोगों को दो विकल्प नजर आते हैं। पहला तो यह कि एमएलए के निष्कासन के सिफ़ारिश वाले शहर कांग्रेस के प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाए। या नोटिस – वोटिस देकर मुद्दे को लंबा कर दिया जाए। जिससे पहले के कई मामलों की तरह इस बार भी धीरे धीरे मामला शांत हो जाएगा। तूल पकड़ चुके विवादों से तूल शब्द को अलग करने के लिए अक्सर यह नुस्ख़ा आज़माया ज़ाता है। लेकिन दूसरा विकल्प यह भी है कि हो सकता है प्रदेश कांग्रेस कमेटी इस प्रस्ताव को संज़ीदगी से ले…। एमएलए से ज़वाब तलब़ करे …… उन्हें अपनी सफाई देने का मौका दे और फिर अनुशासन समिति पूरे मामले पर विचार कर कोई फैसला करें। क्योंकि शैलेश पांडे ने खुलकर अपने आप को टी.एस. सिंहदेव का आदमी बताया है।

लिहाजा राजनीतिक प्रेक्षक यह भी मानते हैं कि अब पूरे मामले में टी एस सिंहदेव का रुख भी निर्णायक हो सकता है। हालांकि इस घटना को लेकर अपनी प्रतिक्रिया में टी एस सिंह देव ने संयम की बात भी की है । वे जिस तरह शांत और शोबर अंदाज की राजनीति के लिए जाने जाते हैं , उसे देखते हुए सियासी पंडित यह भी कयास लगा रहे हैं कि वे एमएलए के बचाव में खुलकर आगे आएंगे या नहीं……। वैसे पूरे घटनाक्रम को अनुशासन हीनता के गोलघेरो में रख़कर देख़ने वाले यह भी मान रहे हैं कि अपनी ही पार्टी की सरकार और इसी सरकार की पुलिस के खिलाफ थाने के घेराव ….प्रदर्शन और खुलकर बयान बाजी में बंबइया अँदाज़ में किसी नेता के आदमियों को ऊपर के इशारे पर ठोंकने जैसी बात करके शैलेश पांडे ने क्रॉश पट्टी छूने की कोशिश में अपनी ओर से कोई कमी नहीं की है। ऐसे में दूसरी टीम के डिफ़ेंडर ख़िलाड़ी घेरकर पकड़ लें तो हैरत की बात नहीं होगी ।

सीधे तौर पर कहें तो कोतवाली में सरकार विरोधी नारेबाजी से लेकर बयानबाज़ी तक इतना मसाला ज़मा कर लिया गया है कि अगर पार्टी नेतृत्व एक्शन लेना चाहे तो उसके सामने एक मज़बूत बुनियाद तैयार कर दी गई है। वैसे भी यह कांग्रेस के अँदर की ओपन फ़ाइट है, जिसमें मौक़ा और दस्तूर दोनों की अपनी अहमियत होती है। ऐसे में एमएलए के ख़िलाफ़ कुछ पुराने मामले भी बोनस की तरह इस्तेमाल कर लिए जाएं तो हैरत की बात नहीं होगी । गृह मंत्री ताम्रध्वज़ साहू की मौज़ूदगी में थानों में रेट लिस्ट की बात और ब्लॉक कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष और ट्रैफिक पुलिस कर्मी के साथ हुए वॉयरल विवाद क़ी चर्चा ज़िस तरह से पार्टी के अदरख़ाने मे हो रही है, उसका मतलब तो यही निक़ाला ज़ा रहा है।

वैसे पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद जिस तरह बिलासपुर में कांग्रेस के झगड़े लगातार सुर्ख़ियों में हैं और झगरहा पार्टी की पहचान बनती गई है…इस फ़लैशबैक में ज़ाकर यदि कड़ियों को आपस में ज़ोड़ा गया तो कांग्रेस संगठन बड़ा फैसला भी कर सकती है।लेकिन किसी कड़े और बड़े फ़ैसले से पहले शैलेष पाण्डेय समर्थकों के इस दर्द को भी महसूस करना होगा , ज़िसमें वे मानते हैं कि एमएलए की लगातार उपेक्षा हुई है और उन्हें अनदेखा किया जाता रहा है। कब और कितनी बार उनके साथ ऐसा होता रहा है , इसकी लम्बी फ़ेहरिश्त भी उनके समर्थकों के पास है।

किन परिस्थितियों में बिलासपुर कांग्रेस में यह सब चल रहा है संगठन में ऊपर बैठे लोग शायद इस पर भी गौर कर सकते हैं। अपने सेंटीमेंटल नेता के बारे में उनके समर्थक भी मानते हैं कि क्रॉसपट्टी की घेरेबंदी के बावजूद वे कई बार अपनी ज़ीत दर्ज कर चुके हैं । और कबड्डी के इस दाँव में उन्होने महारत हासिल कर ली है। लेकिन इस बार दूसरी टीम ने भी शिकार को उसके ही ज़ाल में फंसाने के लिए आर-पार के अँदाज़ में दाँव ख़ेला है । गौर करने वाली बात है कि शहर कांग्रेस कमेटी केवल निंदा प्रस्ताव पारित कर रस्मअदायगी कर सकती थी । मगर जिस तरह सीधे छः साल के लिए निष्कासन की सिफ़ारिश वाला प्रस्ताव ही पारित कर दिया गया है, उसस़े देख़कर माना जा रहा है कि प्रदेश और ऊपर के नेताओँ के सामने संगठन ने अपना रुख़ साफ़ कर दिया है।

कबड्डी का यह मैच उस मुक़ाम पर पहुंच गया है ,जिसके नतीज़े पर शहर में कांग्रेस की आने वाली राज़नीति की लाइन तय होगी । शैलेष पाण्डेय क्रॉस पट्टी छूकर नॉटऑउट रहेंगे या घेरकर पकड़ लिए जाएंगे…. यह जानने के लिए आने वाले वक़्त का इंतज़ार करना ब़ेहत़ऱ होग़ा।

कांग्रेस के ताजा विवाद के बीच यह भी याद कर लेना चाहिए कि बिलासपुर की कांग्रेस कमेटी ने 2017 में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और उनके बेटे अमित जोगी के निष्कासन की सिफारिश का प्रस्ताव भेजा था। इसके बाद छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की राज़नीति में किस तरह का बदलाव आया …. यह सबके सामने है…।

चलिए आगे बढ़ते हैं….कांग्रेस पार्टी की रीति – नीति और सियासत के अंदाज को देखते हुए यह कहना कठिन है कि इस बार की जोर आजमाइश में जीत किसके नाम पर दर्ज होगी। जाहिर सी बात है कि कोई ना कोई तो जीतेगा और कोई ना कोई तो हारेगा….।लेकिन इस शहर का आम आदमी अपने आप को ज़रूर ठगा हुआ महसूस कर रहा है। ज़िस बिलासपुर शहर में मध्यप्रदेश के ज़माने में एक ही समय में कांग्रेस के दिग्गज़ चार-चार मंत्री हुआ करते थे । उस समय भी लोगोँ ने सत्ता पार्टी को कभी इस तरह से झगड़ते नहीं देख़ा था । सत्ता में रहते हुए कांग्रेसियों को ना कभी थाना घेरने की ज़रूरत पड़ी और ना ही किसी को सार्वज़निक रूप से बताना पड़ा कि वह किसका आदमी है…. और ठोंकने जैसी बात कहने की नौब़त भी नहीं आई…….। अरपा की तरह भीतर – भीतर बहने वाला यह शहर यह भी देख़ रहा है कि किस तरह हेडलाइन मेनेज़मेंट के भरोसे ही पूरी सियासत चल रही है। मीडिया में मसीहा तो अक्सर दिख़ाई दे ज़ाते हैं । लेकिन यह कहने के लिए लोरमी के विधायक धरमज़ीत सिंह को आगे आना पड़ता है कि स्मार्ट सिटी के नाम पर कोतवाली और तहसीली जैसी आज़ादी के पहले की पुरानी इमारतों को ना तोड़ा ज़ाए….। धरोहर और हेरीटेज़ के रूप में इन इमारतों की हिफ़ाज़त होनी चाहिए ।

यह तो हुई सियासत की बात। अब थोड़ी सी बात इस पर भी कर लेते हैं कि बिलासपुर शहर के आम लोगों का इससे क्या नाता है । सियासतदानों के लिए यह ज़ोरआज़माइश का ठिकाना होगा। लेकिन आम आदमी के लिए तो यह ज़िंदगी से ज़ुड़ा हुआ मसला है। ज़िस पर कोई बात नहीं कर रहा है और कोई यह भी नहीं देख़ रहा है कि झुंडों की लड़ाई में आम आदमी की उम्मीदें चकनाचूर हो रहीं हैं……। कांग्रेस के इस ताजा विवाद में सबसे अधिक चिंता और चिंतन करने वाली बात यह है कि जिस जगह से पहली साईकिल गिरी यानी जहां से इस नए विवाद की शुरुआत हुई वह जगह सिम्स है। और सिम्स में सही समय पर इलाज नहीं होने की वजह से इस विवाद की शुरुआत हुई।

सभी को मालूम है कि सिम्स मेडिकल कॉलेज का अस्पताल है। मेडिकल कॉलेज और ऐसे अस्पताल की सहूलियत मिले इस नाम पर बिलासपुर के लोगों ने लंबे समय तक लड़ाई लड़ी थी। छत्तीसगढ़ बनने के बाद बिलासपुर को मेडिकल कालेज की सौगात मिली। लेकिन दो दशक बाद भी धरम अस्पताल की इस पुरानी इमारत के सामने खड़े होकर कोई डंके की चोट पर यह नहीं कह सकता कि जिन उम्मीदों को लेकर यह संस्था खड़ी की गई थी वह उम्मीदें पूरी हो रही है। बदहाली की चर्चाओं- खबरों, विवादों, मनमानी, भ्रष्टाचार जैसे शब्दों से इस संस्था का शुरू से नाता रहा है। इसे दुरुस्त करने की तमाम कोशिशें नाकाम रही है।

जानकारों से पूछिए तो बता देंगे कि पिछले दो दशक में सिम्स के नाम पर सरकारी खजाने से इतना रुपया खर्चा हुआ है कि अपोलो जैसे दो – चार ठो बड़े अस्पताल खड़े किए जा सकते हैं। मरीजों की सहूलियत से लेकर मशीनें तक यहां मुहैया कराने की कोशिश होती रही है। लेकिन पता नहीं कौन सा ग्रहण लगा है कि यह अस्पताल अपेक्षाओं के अनुरूप काम नहीं कर पा रहा है। जबकि बिलासपुर इलाके के आम लोगों के इलाज के लिए यही एक उम्मीदों का बड़ा केंद्र है।

बहुत पीछे नहीं तो सन 2000 के आसपास के माहौल को ही याद कर लीजिए। उस समय के कलेक्टर शैलेंद्र सिंह ने सिम्स के पुराने एडिशन यानी धरम अस्पताल को दुरुस्त कर दिया था। उस समय सब कुछ सही ढंग से चल रहा था। बिलासपुर शहर में पुराने लोग आज़ भी मिल जाएँगे, ज़ो धरम अस्पताल के डॉक्टरों की सेवाओँ को आज़ भी पूरी इज़्जत से याद करते हैं और उसे सलाम करते हैं…..। क्या उस सिस्टम को अपनाते हुए आज के दौर में भी ऐसा इंतजाम नहीं किया जा सकता ….जिससे सिम्स को दुरुस्त कर उसे आम लोगों की उम्मीदों के अनुरूप बनाया जा सके।

व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों को नहीं भूलना चाहिए कि गरीब और आम लोग आज भी इलाज के लिए पहले सिम्स ही जाना चाहते हैं। आप कहेंगे कि इन बातों का कांग्रेस के इस विवाद से क्या संबंध है। सीधी और सरल रेखा की बात यह है कि अगर सिम्स में समय पर इलाज की सहूलियत मिल जाती तो विवाद ही नहीं होता। पूरे मामले को सियासत के नजरिए से देखने वाले लोग कभी इस एंगल से भी इस पूरे मसले को देख पाएंगे या नहीं यह कहना मुश्किल है…..। लेकिन बुजुर्ग कह गए हैं कि दुनिया गोल है और विवाद की जड़ गोल घूम कर फिर सिम्स के रास्ते इसकी व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों तक ही पहुंच जाती है ।

और यह सवाल भी जवाब का इंतजार कर रहा है कि आम आदमी के इलाज की बात हो या टेक्नीशियन के साथ हुए कथित विवाद की बात हो….. आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है… ? सियासत में शह और मात का खेल तो चलता रहेगा । लेकिन इसी आपाधापी के बीच ठहर कर इस सवाल का जवाब भी व्यवस्था में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को देना चाहिए।

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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