आम आदमी के लिए सुलभ शिक्षा पर सीवीआरयू में मंथन

Chief Editor
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बिलासपुर।     डाॅ.सी.वी.रामन् वि.वि. में नई शिक्षा नीति को गुणवत्ता और रोजगारपरक बनाने के विषय में गहन विचार मंथन किया गया। विचार मंथन में वि.वि. के शिक्षाविदों व प्रशासनिक अधिकारियों ने शिक्षा से जुड़े हर विषय पर विस्तार से अपनी बात रखी। इस आयोजन के बारे में पूरी जानकारी और शिक्षाविदों के विचार व सुझाव केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय भेजा जाएगा।
इस अवसर पर सीवीआरयू के कुलसचिव शैलेष पाण्डेय ने कहा कि देश की शिक्षा व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जो आम आदमी तक सुलभ हो। समाज के हर वर्ग के व्यक्ति को सुलभता से शिक्षा दी जा सके। श्री पाण्डेय ने बताया कि किसी भी देश की शिक्षा नीति समाज की शिक्षा, सभ्यता, संस्कृति और विकास पर सीधा प्रभाव डालती है या ये कहें कि इन बातों को निर्धारित करती है। इसका प्रमाण इस बात से मिलता है कि त्रेता और द्वापर युग में भगवान राम व कृष्ण ने जन्म लिया और समाज की तय व्यवस्था के अनुसार ही शिक्षा ग्रहण की। उस युग में शिक्षा को दो भाग में लेने का प्रचलन था। पहला ज्ञान की शिक्षा और दूसरा कर्म की शिक्षा। उस युग में भी जैसी वर्ण व्यवस्था थी,उसके अनुसार सभी वर्गो के मनुष्य शिक्षा लेते रहे। यानी कि ब्राम्हण धर्म की, क्षत्रिय कर्म की और वैष्य वाण्ज्यि की शिक्षा लेते थे। उन दिनों ज्ञान व कर्म की शिक्षा देने का कार्य सनातन धर्म के अनुसार होता था। इसके बाद युग बदला और शासक आए जिन्होंने देश पर शासन किया। उनकी सोच और निर्देष पर शिक्षा तय होने लगी। श्री पाण्डेय ने कहा कि उन दिनों के प्रशासक की सोच और समाजिक जरूरतों के अनुसार ही शिक्षा दी जाती थी। समय बदला और लोकत्रंत लागू हुआ। नई व्यवस्था के अनुसार जनता के द्वारा चुने गए लोग ही शासन में होते है और उनके अनुसार ही शिक्षा नीति तय होती है।

ऐसे में आज की जरूरत के अनुसार हर शासक का यह कहना है कि शिक्षा का लोक व्यापीकरण होना चाहिए, शिक्षा का आधुनीकीकरण होना चाहिए, मूल्य आधारित शिक्षा होना चाहिए। ऐसे में यह बात सामने है कि जब शासक को ही सब तय करना है और सदियों से आज तक शासक की ही नीति चलाई जा रही है। तो हमारे चर्चा और विचार मंथन करने से क्या होगा..? या इस बात की जरूरत है क्या..? जहां तक उच्च शिक्षा को समाज से जोड़ने की बात है आज भी हम उच्च शिक्षा में नामांकन के प्रतिशत से ही अंदाजा लगा सकते हैं कि हम देश व प्रदेश में क्या स्थिति है। आज भी उच्च शिक्षा में शिक्षा का औसत प्रतिशत लगभग 18 से 20 प्रतिशत ही है। ऐसे में हमें सबसे पहले शिक्षा का प्रतिशत भी बढ़ाए जाने की जरूरत है। इसी तरह ग्रास डेवलमेंट रेशियों को तेजी से बढ़ना के लिए कदम उठाने की जरूरत है। शिक्षा स्तर में गुणवत्ता में बदलाव करने की जरूरत है। इसके लिए कड़ी नीति हो ताकि सभी संस्थान इसका कड़ाई से पालन करें। श्री पाण्डेय ने कहा कि आज शिक्षा के लिए सबसे बड़ी जरूरत है अधोसंरचना की। काॅलेज व विश्वविद्यालयों  में अधोसंरचना ही नहीं है। इसी तरह दूसरी बड़ी जरूरत है च्वाईस बेस सिस्टम की जिससे हम अधिक से अधिक विद्यार्थियों को उनकी रूचि और जरूरत के अनुसार शिक्षा दें सकें। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि शिक्षा का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए। श्री पाण्डेय कहा कि बेहतर शिक्षा नीति में कौशल विकास को आगे बढ़ाना चाहिए। इसके लिए एकीकृत योजना ऐसी हो जिसका लाभ कर वर्ग को मिल सके। श्री पाण्डेय ने कहा कि विदेशी शिक्षा नीति को स्वीकार करके मैन पावर बढ़ाए जाने की जरूरत है।

इस अवसर पर शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ.पी.के.नायक, इंजीनियरिंग विभाग के विभागाध्क्ष डाॅ. सुरेंद्र तिवारी, वाणिज्य विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. प्रभाकर पाण्डेय, गणित विभाग के विभाग डाॅ. ए.के.ठाकुर, केमेस्ट्री विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. मनीष उपाध्याय, फिजिक्स विभाग के विभागध्यक्ष डाॅ. ए.के.श्रीवास्तव, कला विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ.वेद प्रकाश मिश्रा, लाइफ सांइस विभाग की विभागाध्यक्ष डाॅ. श्वेता साव,सहित डाॅ.के.एन सिंह,डाॅ. पी.के गौरहा, डाॅ.काजल मोइत्रा,डाॅ.गुरप्रीत बग्गा, डाॅ. जयशंकर यादव,डाॅ.अमित शर्मा, सहित सभी विभाग प्राध्यापक सहित प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित थे।

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पीपीपी माॅडल अपनाना आज की आवश्यकता-कुलसचिव
शिक्षा के क्षेत्र में सभी कार्य सरकार के लिए करना संभव नहीं है, इसलिए शिक्षा के विषय में पीपीपी के माध्यम से नीति बनाई जानी चाहिए। निजी क्षेत्रों को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है और उनके लिए नियम सरल किए जाएं। अमरिका, चीन,जापान की शिक्षा नीति को समझकर अपनाने की जरूरत है, ताकि हम वैश्वीवकरण की ओर आगे बढ़ें। श्री पाण्डेय का कहना है कि सही मायने में आज शिक्षा में वैश्वीकरण को अपनाएं जाने की जरूरत है। विकसित राष्ट्रोँ की शिक्षा के स्तर के बराबर हमारी शिक्षा व्यवस्था हो। श्री पाण्डेय ने कहा कि इस बात में कोई दो मत नहीं कि देश ने तकनीकी शिक्षा में प्रगति की है। जरूरत है तो इसे बनाए रखने की और समय समय पर अपडेट करने की। श्री पाण्डेय ने कहा कि संस्थानों की रैंक व मूल्यांकन विश्व स्तरीय मापदंडों में किया जाना चाहिए। ताकि हम एक बेहतर शिक्षण संस्थान समाज को दे सके ।

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नीति का पालन हो तभी सफलता-कुलपति
इस अवसर पर सीवीआरयू  के प्रभारी कुलपति डाॅ. आर.पी.दुबे ने बताया कि नई शिक्षा नीति में विचार मंथन बेहद जरूरी है, लेकिन यह तय करने की जरूरत है कि नीति बनने के उसका कितना पालन किया जा रहा है। इसके साथ इसमें सर्वप्रथम इनोवेटिव पाठ्यक्रम शुरू करने की जरूरत है ताकि विद्यार्थियों की रूचि पढ़ाई में अधिक से अधिक हो। यदि ऐसा होता है तो हम उच्च शिक्षा का प्रतिशत बढ़ाने में सफल हो पाएंगे। इसी तरह कोर्स मानवीय गुणों का विकास करने वाला तैयार किया जाना चाहिए। सिर्फ व्यावसायिक शिक्षा से विद्यार्थी को रोजगार तो मिल जाएगा, लेकिन मानवीय गुण विकासित नहीं होंगे। डाॅ. दुबे ने बताया कि नई शिक्षा नीति ऐसी हो कि उच्च शिक्षण संस्थान को पूर्ण स्वायतता जो नियम व बंधन से मुक्त हो।

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