बिलासपुर।व्यापार विहार स्थित त्रिवेणी परिसर में परमहंस स्वामी शारदानंद सरस्वती के सानिध्य में चल रहे रूद्रातिरूद्र महायज्ञ में आयोजित संत सम्मेलन के तीसरे दिन रविवार को अयोध्या, हैदराबाद, पिहोवा कुरूक्षेत्र, जोधपुर, जगन्नाथपुरी, अमरकंटक सहित अन्य स्थानों से आए संतों ने अपने विचार रखे। संतों ने कहा कि सत्कर्म के लिए गुरु का चरण जरूरी है। गुुरु के बिना एक अच्छे साधक नहीं बन सकते । सद्गुरु कुछ करने, समझने के लिए दृष्टि देते हैं। उनकी अनंत महिमा है। अंर्तमुखी होना आसान नहीं है। गुरु द्वारा बताए मंत्र की साधना करने से अंर्तमुखी बनते हैं।कार्यक्रम का संचालन कर रहे मानस मर्मज्ञ चन्द्रप्रकाश कौशिक ने कहा कि संसार भगवान राम का ऋणी है, तो भगवान राम वानर के ऋणी रहे। राम मंगलों के भवन है। संकट मोचन हनुमान मंगलों के मूर्ति हैं। सबसे ज्यादा महत्व मूर्ति के होते हैं। अमंगल का हरण करने वाली मूर्ति के बिना मंदिर की शोभा नहीं होती है। हनुमानजी अमंगलों को उखाड़ फेंकने वाले हैं। हनुमानजी ने अपने मन राम को तो तन राम काज के लिए दिया। दुनिया राम भगवान का जप करती है, पर राम हनुमानजी का जप करते हैं। उन्होंने कहा कि संतों के प्रति हमेशा प्रेम की भावना रखें।
लक्ष्य की ओर चले निरंतर
आचार्य महामण्डलेश्वर विशोकानंद ने अपने उद्बबोधन में कहा कि इंसान को अपने लक्ष्य की ओर निरंतर चलना चाहिए। कछुए की गति से चलने पर अवश्य सफल हो जाएंगे। मन चंचल है। मन जम जाता है तो दिव्य रूपी घी की प्राप्ति होती है। विवेक ही साधना का लक्ष्य है। महापुरुषों ने विवेक को सुंदर ढ़ंग से प्रतिपादित किया है। ज्ञान तो गुरु रूपी संत से ही मिलता है। उन्होंने बताया कि भारत में जितनी आध्यात्म, वेद पुराण की बात हुईं, उतनी कहीं नहीं हुईं हैं। हमारे देश में धर्म को जानने वाले बहुत हैं, पर मानने वाले कम हैं। जिस दिन रामचरित मानस को मानना शुरू कर देंगे, उस दिन से उनकी प्रशंसा होने लगेगी।
मनुष्य की सोच होती है आनंद, शांति की प्राप्ति
स्वामी परमानंद महराज ने कहा कि संसार में कोई भी वस्तु से पवित्रता का संबंध हो। सभी प्राणी अपनी योनियों के हिसाब से जो प्रक्रियाएं करते हैं, उसके पीछे सोच, शांति व आनंद की रहती है। यदि इसमें उसे अपने लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं दिखती, तो वह इससे अपने को अलग कर सकता है। उन्होंने कहा कि गलत रास्ते से कितनों भी प्रयास कर चलते रहें, पर यथार्त शांति नहीं मिलती है। शास्त्रों के अनुसार हम सब पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानने वाले हैं। पुनर्जन्म के माध्यम से साधक अपने कर्माे को कैसे करता है? इसका स्वरूप बनते चले जाता है। अच्छाई के लिए बहुत बाधाएं हैं, इसलिए हमेशा अपना निर्माण करने व अपने संस्कारों को परिवर्तित करने निरंतर प्रयास हो। लौकिक लक्ष्य प्राप्त करने लंबी प्रतीक्षा से गुजरना पड़ता है। अंदर जन्म-जन्म के संस्कार होते हैं। अच्छे भावों को एक जगह केन्द्रित करें। मन के लिए साधना की दृष्टि होनीचाहिए। जिस अभ्यास में लगे हैं, उसे दीर्घकाल तक करें। मजबूती सफलता दिलाती है। मनुष्य का जीवन मंगल से जुड़ने, शाश्वत आनंद के लिए मिला है। इसके लिए परमात्मा से जुड़कर अपने को धन्य बनाएं।
भक्ति, ज्ञान, कर्म का जरूरी है समायोजन
जोधपुर से आए विनयदास महराज ने कहा कि जीवन में भक्ति, ज्ञान, कर्म मार्ग का समायोजन करना पड़ेगा। परमात्मा को पाने से पहले भक्त बनना होगा। ज्ञान प्राप्त करने सद्गुुरु की जरूरत पड़ती है। सद्गुरु के चरणों में जाकर जिज्ञासु बनकर बैठने से प्रमाणिक बातें जानने को मिलती हैं। जब तक मंत्र सिद्ध नहीं होता, तब तक आनंद की प्राप्ति नहीं होती। जप करने की आदत बन जाएगी, तो निरंतर जप चलता रहेगा। महापुरुषों ने भजन, साधना द्वारा सिद्धि को प्राप्त किया। वे विलक्षण आनंद को बांटना चाहते हैं। पूरा संसार उनका घर बन जाता है। यह भी उनका प्रयास रहता है कि जीव दुख-सुख से परे हो जाए। जहां आनंद है, वहां परमानंद है। उनकी कोई इच्छा, तृष्णा नहीं होती है। उन्हें जड़, चेतन में परमात्मा के दर्शन होते हैं। साधक जनकल्याण चाहते हैं, इसी लक्ष्य से वे सत्कर्म करते हैं। वे सब जीवों को समझाना चाहते हैं कि संसार नाशवान है।
किया गया रूद्राभिषेक, की गई प्रार्थना
महायज्ञ के तीसरे दिन रविवार को भी सुबह स्वामी शारदानंद सरस्वती ने शिवार्चन व रूद्राभिषेक किया । इसमें श्रद्धालुओं ने बड़े श्रद्धा के साथ भाग लिया। वहीं दैवी संपद मण्डल की प्रार्थना भी की गई। आचार्य राममूर्ति मिश्र ने श्रीमद भागवत कथा का वाचन किया। इसे सुनने श्रद्धालुजन भारी संख्या में उपस्थित थे। लोग सुबह से शाम तक यज्ञ कुण्ड की परिक्रमा करते रहे।
रहा मेले जैसा माहौल, सजी दुकानें
महायज्ञ स्थल में रविवार शाम को मेले जैसा माहौल रहा। यहां खिलौने, आईस्क्रीम सहित खाद्य सामग्रियों की कई दुकानें सज गईं हैं। लोग खाने-पीने का लुत्फ उठाते रहे। कार्यक्रम स्थल में लगाई गई झांकियों का दर्शन का क्रम भी चलता रहा। संतों की वाणी, भागवत कथा, वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ हवन किए जाने से पूरा माहौल आध्यात्ममय बना हुआ है।
सांसद साव शामिल हुए यज्ञ में
रविवार को भी यज्ञ मंडप में आहुतियां डलती रहीं। सांसद अरुण साव परिवार सहित यज्ञ करने पहुंचे। छत्तीसगढ़ की सुख समृद्धि की कामना के साथ उन्होंने आहुतियां डाली। इसके अलावा डॉ एल सी मढरिया ने भी यज्ञ किया। महामंडलेश्वर स्वामी हरिहरानंद सरस्वती ने विधि विधान से सारी प्रक्रिया पूरी कराई।इस दौरान बृजेश अग्रवाल,शिव कुमार अग्रवाल, गिरधारी अग्रवाल, हर्षवर्धन अग्रवाल, पंडित दिनेश पांडे, हर्ष द्विवेदी, संकल्प शुक्ला सत्यनारायण पांडे सहित आयोजन समिति के सदस्य मौजूद थे।