शिक्षा विभाग का यह कैसा सिस्टम…? चालीस दिन बाद भी नहीं हुआ आदेश का पालन..

Chief Editor
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कोरबा । सरकारी कर्मचारी के स्थान परिवतर्न का आदेश निकलने के चालीस दिन बाद भी उस आदेश की तामील नही हो पाना सिस्टम की खामी को दर्शाता है कि राज्य सरकार में व्यवस्था के जिम्मेदार लोगो की सिस्टम में कितना पकड़ है। मामला कोरबा के दो विकास खण्ड शिक्षा अधिकारी की व्यवस्था के तहत स्थान परिवर्तन को लेकर है। कोरबा जिले के जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से 27 अगस्त को एक आदेश जारी होता है। जिसमे लिखा होता है कि पोड़ी उपरोड़ा के विकास खण्ड शिक्षा अधिकारी लोकपाल सिंह जोगी को व्यवस्था के तहत विकास खंड शिक्षा अधिकारी पाली का प्रभार दिया जाता है । वही पाली विकास खंड के शिक्षा अधिकारी दिनेश लाल को पोड़ी उपरोड़ा के विकास खण्ड शिक्षा अधिकारी का प्रभार दिया जाता है।
दोनों अधिकारियों के ब्लॉक बदल दिए जाते है। जिसका जिला कलेक्टर रानू साहू ने अनुमोदन किया होता । ये दोनों अधिकारी आज 40 दिन गुजर जाने के बाद खबर लिखे जाने तक टस से मस नही हुए है। और व्यवस्था पर कुछ ऐसे सवाल खड़े कर दिए है जिसका सरोकार हर आम शासकीय अधिकारी व कर्मचारी से है ..!

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जानकारों का कहना है कि राज्य सरकार के कर्मचारी जिनके तबादले का आदेश जिला प्रशासन को नही है लेकिन व्यवस्था को बनाये रखने के लिए जिले के कर्मचारियों और अधिकारियों को विभागों के प्रमुखों का कलेक्टर से अनुमोदित आदेश इस बदलाव को मंजूरी दे देता है। परन्तु इस आदेश का पालन करना चाहिए …. ? या फिर नही ..! इस पर अब सवाल उठने लगे है ! जो इस उठते हुए सवाल … आदेश और उस को अनुमोदन करने वाले पद के महत्व की गुत्थी को उलझा कर रख दिए है।

यही नही विभागों से जारी होने वाले आदेश में प्रतिलिपि के औचित्य पर सवाल भी खड़े होने लगे है कि चालीस दिन से अधिक हो जाने के बाद आदेश की तामील नही होने पर वरिष्ठ कार्यलय ने जबाव तलब क्यो नही किया ..?

भविष्य में अगर प्रदेश भर में व्यवस्था के तहत हटाये जाने वाले अधिकारी कर्मचारी अगर कोरबा जिला शिक्षा अधिकारी के आदेश जो कलेक्टर से अनुमोदित है । उसे नाजिर मान कर चले और ऐसे आदेशो को अपनी जेब मे रख ले तो जिले का प्रमुख रबर स्टांप होगा क्या ऐसा माना जाये ..?

कहते है कि जिले का सबसे बड़ा प्रशासनिक अधिकारी जिले के कलेक्टर को माना जाता है। जिले की सारी प्रशासनिक व्यवस्था की कमान इनके हाथों में होती है। जिले स्तर पर शासकीय विभाग प्रमुखों को व्यवस्था को बनाये रखने के लिए महत्वपूर्ण निर्णयों पर कलेक्टर का अनुमोदन लेना पड़ता है । इसे कोरा सत्य समझा जाये ….?

सवाल यह भी उठता है कि पोड़ी उपरोड़ा के विकास खण्ड शिक्षा अधिकारी और पाली विकास खंड शिक्षा अधिकारी क्या कोरबा के जिला शिक्षा अधिकारी से पीड़ित है ..? किस आधार पर किस नियम के तहत इन अधिकारियों का प्रभार बदला गया है ..! वर्तमान में यदि गुपचुप रूप से 27 अगस्त के आदेश से पूर्व की स्थिति यथावत रखी गई है तो क्यो ..?

बीते दिनों अम्बिकापुर में एसबीआई के एटीम के पास हुई कार्यवाही प्रमाण है कि
विकास खंड शिक्षा अधिकारी का पद बहुत खास होता है।इस लिए एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) और राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) दोनों की नजर इस पद पर बने रहती है। इस बात को नजर अंदाज नही किया जा सकता कि पद में बने रखने और इसे पाने के लिए जोड़ तोड़ का जुगाड़ जंतर सब को समझ आता है । तभी तो इस पद पर अधिकांश प्रभारी बैठे हुए हैं जो इस पद के लिए राजपत्र के नियमों से मेल नहीं खाते है।

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