मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन.. कहा..लोकतंत्र का दबाया जा रहा गला..खतरे में सुधा भारद्वाज की जिन्दगी

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर– नेहरू चौक में मानवाधिकारी कार्यकर्ताओं ने बायकुला जेल में कैद सुधा भारद्वाज की जिन्दगी खतरे में है। उन्हें मधुमेह, हार्ट की समस्या और गठिया की शिकायत है। जहां कोरोना काल में गंभीर अपराध में जेल की सजा काट रहे अपराधियों को भी जमानत दिया जा रहा है। वहीं गरीबों और देश के सच्चे समर्थक को जानबूझकर जमानत नहीं दिया जा रहा है। ऐसा कर सुप्रीम कोर्ट के उम्मीदों पर पानी फेरने की साजिश की जा रही है।

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               नेहरू  चौक पर आज मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने शांति के साथ शासन के दिशा निर्देशों का पालन करने के साथ विरोध प्रदर्शन किया। मौके पर कतारबद्ध खड़े मानवाधिकार कार्यकर्ता नीलू शुक्ला ने बताया कि मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज का मुम्बई हाईकोर्ट ने जमानत खारिज कर दिया है। जबकि सुधा भारद्वाज रक्तचाप, मधुमेह और हार्ट की समस्या से जूझ रही हैं।  

            नीलू शुक्ला ने बताया कि 21 जुलाई और 3 अगस्त को बायकुला जेल की रिपोर्ट में बताया गया कि सुधा भारद्वाज मधुमेह के अलावा नई बीमारी इस्केमिट हार्ट रोग से पीड़ित हैं। हृदय की धमनियां संकुचित हो चुकी हैं। मांस पेशियों में ठीक से रक्त का प्रवाह नहीं हो रहा है। कभी भी गंभीर हार्टअटैक हो सकता है। नीलू ने जानकारी दी कि 58 वर्षीय मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा को कुछ सालों पहले तपेदिक की शिकायत थी। और बहुत दिनों से गठिया रोग से पीड़ित भी हैं।

              जानकारी आश्चर्य हुआ कि मात्र कुछ दिनों बाद 21 अगस्त को एक रिपोर्ट में बताया कि सुधा स्वस्थ्य हैं। उन्हें किसी प्रकार की बीमारी नहीं है। अब समझ से परे है कि मात्र कुछ दिनों पुराने दो रिपोर्ट में बतायी बीमारियां यकायक ठीक कैसे हो गयीं।

                सुधा भारद्वाज की स्वास्थ्य को लेकर चिंता जाहिर करते हुए प्रदर्शन कर रहे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने बताया कि जेल मेंे 246 बन्दी हैं। कोरोना काल में वहां 175 से अधिक कैदी नहीं रह सकते हैं ।ऐसी सूरत में सुधा भारद्वाज को कोरोना का भी खतरा बना हुआ है।

                 मानवाधिकारी कार्यकर्ताओं ने न्यायिक प्रक्रिया पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि लगता है अब अदालतें भी मानवीयता को भी नजर अंदाज कर रही है। दो साल से बन्द सुधा भारद्वाज की मुख्य मामले पर अभी तक एक भी सुनवाई नहीं हुई है। इतना ही स्वास्थ्य आधार पर सुधा भारद्वाज के लिए जमानत दाखिल करने पर पापड़ बेलने पड़े। बड़ी मुश्किल से दो महीने में जमानत के लिए आवेदन लगाने में कामयाबी मिली। लेकिन उन्हें कोर्ट ने गलत रिपोर्ट के आधार पर जमानत देने से इंकार कर दिया। जबकि दुर्दान्त अपराधियों को भी कोरोना काल में जमानत आसानी मिल रही है।

               मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि आवाज को बहुत दिनों तक दबाया नहीं जा सकता है। सुधा भारद्वाज को जल्द से जल्द रिहा किया जाए।

              

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